Internal Complaint Committee in Government departments Supreme Court on POSH Act for women
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का देशव्यापी अनुपालन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मंगलवार (3 दिसंबर, 2024) को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सभी सरकारी विभागों और उपक्रमों में आंतरिक शिकायत समिति गठित करने का निर्देश दिया.
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम को पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 दिसंबर, 2024 तक प्रत्येक जिले में एक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया, जो 31 जनवरी, 2025 तक एक स्थानीय शिकायत समिति का गठन करेगा और तालुका स्तर पर नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने उपायुक्तों/जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया कि वे अधिनियम की धारा 26 के तहत आंतरिक शिकायत समिति अनुपालन के लिए सार्वजनिक और निजी संगठनों का सर्वेक्षण करें और रिपोर्ट प्रस्तुत करें. न्यायालय ने कहा कि वे आंतरिक शिकायत समिति के गठन और वैधानिक प्रावधानों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए निजी क्षेत्र के हितधारकों के साथ बातचीत करेंगे.
पीठ ने अपने निर्देशों के अनुपालन के लिए 31 मार्च, 2025 तक का समय दिया और मुख्य सचिवों को क्रियान्वयन की निगरानी करने का निर्देश दिया. यह निर्देश न्यायालय के मई 2023 के आदेश के क्रियान्वयन से संबंधित एक याचिका पर आया, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को यह सत्यापित करने के लिए समयबद्ध कवायद करने का निर्देश दिया गया था कि क्या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए सभी मंत्रालयों और विभागों में समिति गठित की गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतने लंबे समय के बावजूद 2013 के यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के प्रवर्तन में ‘गंभीर खामियां’ देखना ‘चिंताजनक’ है. इसे ‘दुखद स्थिति’ बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सभी राज्य पदाधिकारियों, सार्वजनिक प्राधिकारों और निजी उपक्रमों पर खराब प्रभाव डालता है.
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश गोवा विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष ऑरेलियानो फर्नांडीस द्वारा दायर याचिका पर आया, जिन्होंने अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों पर बंबई हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने गोवा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (अनुशासनात्मक प्राधिकरण) के उस आदेश के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उन्हें सेवाओं से बर्खास्त कर दिया गया था और भविष्य में नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने जांच कार्यवाही में प्रक्रियागत खामियों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन को देखते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया.
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