India France Indo Pacific Roadmap Balance Of Power In The Region Keeping An Eye On China Nefarious Intentions
India France Indo Pacific Roadmap: इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन के बढ़ते आक्रामक और विस्तारवादी रुख को देखते हुए दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देश चिंतित हैं. इनमें भारत समेत अमेरिका और बाकी के कई पश्चिमी देश भी शामिल हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय फ्रांस यात्रा पर भी इसकी छाप दिखाई दी.
पीएम मोदी की इस यात्रा के दौरान भारत और फ्रांस ने स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए आपसी गठजोड़ को नया आयाम देने का फैसला किया है. इसके लिए दोनों ही देशों ने 14 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के बीच वार्ता के बाद ‘भारत-फ्रांस इंडो-पैसिफिक रोड’ का मसौदा जारी किया. इसे दोनों देशों का इंडो-पैसिफिक रीजन के लिए भविष्य में सहयोग का रोडमैप बताया गया.
‘भारत-फ्रांस इंडो-पैसिफिक रोडमैप’
भारत और फ्रांस के बीच का ये पहल इंडो-पैसिफिक रीजन में शक्ति के संतुलन को बनाए रखे जाने के लिहाज तो बेहद महत्वपूर्ण है ही, ये चीन को भी स्पष्ट संदेश है कि उसकी गतिविधियों को रोकने के लिए तमाम मुल्कों के बीच सहयोग की डिप्लोमेसी अब और भी ज्यादा मजबूत होगी.
इंडो-पैसिफिक रीजन के लिए रोडमैप के जरिए भारत और फ्रांस ने ये स्पष्ट किया है कि दोनों ही देश स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अस्तित्व में भरोसा करते हैं. ये संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान से जुड़ा मुद्दा है, इसलिए भारत और फ्रांस सामरिक नजरिए से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक एक संतुलित और स्थिर व्यवस्था कायम करने में सहयोग बढ़ाएंगे.
महत्वपूर्ण हिस्सेदारी वाले प्रमुख साझेदार
‘भारत-फ्रांस इंडो-पैसिफिक रोडमैप’ में कहा गया है कि इस क्षेत्र में भारत और फ्रांस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ‘रेजिडेंट पावर’ (निवासी शक्तियां) है, साथ ही इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी वाले प्रमुख साझेदार भी हैं.
इस रोडमैप के जरिए भारत और फ्रांस दोनों ने ही स्पष्ट कर दिया है कि द्विपक्षीय संबंधों के एक महत्वपूर्ण केंद्र के तौर पर हिंद महासागर में भारत और फ्रांस के बीच की साझेदारी को देखा जाना चाहिए. इसके साथ ही भारत और फ्रांस ने चीन समेत हर उन मुल्कों को भी संदेश दिया है, जो महासागरों में वैश्विक कायदे कानूनों का उल्लंघन करते रहते हैं या उसकी ताक में रहते हैं. यहीं वजह कि मसौदे में कहा गया है कि अब भारत और फ्रांस प्रशांत क्षेत्र में सहयोग का विस्तार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
2018 में इंडियन ओशन रीजन में सहयोग पर सहमति
इंडो-पैसिफिक रीजन में सहयोग बढ़ाने के मकसद से पहली बार 2018 में दोनों देशों की ओर से ठोस पहल की शुरुआत की गई थी. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मार्च 2018 में भारत की राजकीय यात्रा की थी. उस वक्त दोनों देशों के बीच इंडियन ओशन रीजन में भारत-फ्रांस सहयोग पर संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण पर सहमति बनी थी. उसी की अगली कड़ी में दोनों देशों ने अब ‘भारत-फ्रांस हिंद-प्रशांत रूपरेखा’ का मसौदा जारी किया है.
आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हितों की रक्षा
दोनों देशों की ओर से जारी साझा बयान में कहा गया है कि द्विपक्षीय सहयोग का फोकस आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हितों की रक्षा करना है. इंडो-पैसिफिक सहयोग का लक्ष्य इस रीजन में वैश्विक और निःशुल्क पहुंच सुनिश्चित करना के साथ ही क्षेत्र में समृद्धि और स्थिरता की साझेदारी बनाना और अंतरराष्ट्रीय कानून के शासन को आगे बढ़ाना है. इससे रीजन में संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता बढ़ेगा, जिससे संतुलित और स्थिर व्यवस्था का निर्माण करने में मदद मिलेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) का नजरिया और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के फ्रांस की हिंद-प्रशांत रणनीति के तहत सुरक्षा और सहयोग का दृष्टिकोण कमोबेश एक समान है . यही भारत-फ्रांस के इंडो-पैसिफिक रीजन में सहयोग का आधार है.
समुद्री सहयोग को बढ़ाने का फैसला
दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग समुद्र तल से लेकर अंतरिक्ष तक बढ़ रहा है. इसी अध्याय को आगे बढ़ाते हुए भारत और फ्रांस ने समुद्री सहयोग को बढ़ाने का फैसला किया है. इसके लिए नौसैनिक सहयोग को बढ़ाया जाएगा. फ्रांस ने भारत में रक्षा औद्योगिक क्षमताओं को विकसित करने में भी सहयोग बढ़ाने का भरोसा दिया है.
इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत और फ्रांस दोनों ही आर्थिक तौर से बड़ी ताकत हैं . भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तो फ्रांस दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम के बाद फ्रांस यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके साथ ही भारत और फ्रांस दोनों ही इंडो पैसिफिक रीजन में बड़ी समुद्री शक्ति भी हैं.
इंडो-पैसिफिक रीजन में दोनों देशों का साझा हित
इंडो-पैसिफिक रीजन में दोनों देशों के साझा हित जुड़े हैं, जो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही इस रीजन में आने वाले तमाम देशों के साथ सहयोग को देखते हुए भी इस रीजन की अहमियत है.
मूल्य के संदर्भ में (in value terms) भारत का करीब 70% व्यापार समुद्री परिवहन से जुड़ा है. वहीं मात्रा यानी वॉल्यूम के हिसाब से ये आंकड़ा 90% तक पहुंच जाता है. ये पूरा व्यापार इंडो-पैसिफिक रीजन से जुड़ा हुआ है.
यूरोप और इंडो-पैसिफिक रीजन का पुल
दूसरी तरफ फ्रांस को यूरोप और इंडो-पैसिफिक रीजन का पुल (Bridge) माना जाता है. पिछले कुछ सालों से इंडो-पैसिफिक रीजन में फ्रांस की नौसेना की गतिविधियां बढ़ी है. ये बताता है कि फ्रांस इस रीजन में एक भरोसेमंद मुल्क बनना चाहता है, जिससे इस रीजन में होने वाले व्यापार में कोई बाधा नहीं आए. सक्रिय राजनयिक जुड़ाव, ताकतवर नौसैनिक क्षमता और व्यापक क्षेत्रीय मौजूदगी के साथ फ्रांस इंडो-पैसिफिक रीजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका वाला प्रतिबद्ध देश बनना चाहता है. यही वजह है कि फ्रांस, यूरोप और सामरिक महत्व के क्षेत्र इंडो पैसिफिक के बीच एक पुल के रूप में काम करना चाहता है.
फ्रांस के पास रीजन में कई विदेशी क्षेत्र
फ्रांस हिंद महासागर में पांच और प्रशांत महासागर में 12 देशों के साथ सीमा साझा करता है. फ्रांस की भौगोलिक स्थिति भी इंडो पैसिफिक रीजन के हितों से मेल खाता है. फ्रांस के पास इंडो-पैसिफिक रीजन में कई विदेशी क्षेत्र मैयट (Mayotte), ला रियूनियन (La Réunion), न्यू कैलेडोनिया (New Caledonia) और फ्रेंच पोलिनेशिया (French Polynesia) हैं. जैसे मैयट के उदाहरण से समझें तो ये हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में अफ्रीका की मुख्य भूमि के पास स्थित एक छोटा-सा द्वीपों का गुट है. यह फ्रांस का हिस्सा है. उसी तरह से न्यू कैलेडोनिया दक्षिण प्रशांत महासागर में कई द्वीपों का एक समूह है जो फ्रांस का हिस्सा है. इन द्वीपों की वजह से फ्रांस खुद को इंडो-पैसिफिक में एक ‘द्वीप राज्य’ के तौर पर देखता है. इन द्वीपों में बड़ी संख्या में फ्रांसीसी नागरिक रहते हैं. इन क्षेत्रों की वजह से ही फ्रांस 11 मिलियन वर्ग किलोमीटर के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zone)वाला देश है. इस मरीन फुटप्रिंट की वजह से समझा जा सकता है कि इंडो-पैसिफिक रीजन में फ्रांस की व्यापक उपस्थिति के साथ ही व्यापक हित निहित हैं.
फ्रांसीसी विदेशी क्षेत्र में बढ़ेगा सहयोग
भारत और फ्रांस के बीच इंडो पैसिफिक रीजन में बढ़ते सहयोग को इन पहलुओं से भी समझा जा सकता है. यही कारण है कि 14 जुलाई को जिस रोडमैप को लेकर दोनों के बीच में सहमति बनी है , उसके तहत दोनों देशों ने प्रशांत क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देने और अपना सहयोग बढ़ाने का फैसला किया है. इके तहत न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पोलिनेशिया के फ्रांसीसी क्षेत्रों के साथ करीबी भागीदारी को भी शामिल किया गया है. ये भी कहा गया है कि हिंद और प्रशांत महासागरों में फ्रांसीसी विदेशी क्षेत्र (French overseas territories) दोनों देशों के बीच इंडो-पैसिफिक साझेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर ज़ोर
इस रोडमैप में समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ त्रिपक्षीय सहयोग को इंडो पैसिफिक रीजन में सहयोग का एक प्रमुख स्तंभ बताया गया है. इसके तहत भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के बीच त्रिपक्षीय सहयोग पहल को लेकर इस साल 4 फरवरी को बनी सहमति को महत्वपूर्ण माना गया है. इसके अलावा भारत, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सितंबर 2020 से शुरू हुए सहयोग का भी प्रमुख स्तंभ माना गया है.
रोडमैप में कहा गया है कि त्रिकोणीय विकास सहयोग के एक अनूठे मॉडल के जरिए भारत और फ्रांस इंडो-पैसिफिक त्रिकोणीय सहयोग (IPTDC) फंड की स्थापना पर भी काम करेंगे. इसका मकसद इंडो-पैसिफिक रीजन के आर्थिक तौर से कमजोर देशों के जलवायु और एसडीजी केंद्रित नवाचारों और स्टार्टअप का समर्थन करना है. इसके तहत इन इंडो-पैसिफिक रीजन में विकसित की जा रही हरित प्रौद्योगिकियों के विस्तार को सुविधाजनक बनाया जाएगा. भारत और फ्रांस दोनों देश संयुक्त रूप से आईपीटीडीसी फंड के माध्यम से समर्थित परियोजनाओं की पहचान करेंगे. इस पहल को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 2021 में शुरू की गई भारत-ईयू कनेक्टिविटी साझेदारी का एक प्रमुख स्तंभ बताया गया है.
इंडो-पैसिफिक रीजन में संतुलन जरूरी
भारत और फ्रांस के बीच इंडो पैसिफिक रीजन में बढ़ते सहयोग चीन से इस रीजन को मिल रहे खतरों के लिहाज से समझना होगा. चीन हमारे साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तो उलझ ही रहा है. इसके साथ ही चीन इंडो-पैसिफिक रीजन में अपने सैन्य अड्डों के विस्तार में भी तेजी से जुटा हुआ है. चीन अरब सागर के तीन तरफ तीन नौसैनिक अड्डों को स्थापित करने में जुटा है. ग्वादर में नौसैनिक अड्डा बना रहा है. लाल सागर के मुहाने पर स्थित जिबूती में पहले से ही नौसैनिक अड्डा ऑपरेशनल है. इसके साथ ही चीन की नजर मॉरीशस पर भी टिकी हुई है.
चीन के बढ़ते सैन्य दखल पर नज़र
दूसरी ओर चीन का साउथ चाइना सी में भी सैन्य दखल लगातार बढ़ रहा है. पिछले साल नवंबर में अमेरिका के रक्षा विभाग की ओर जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन, कंबोडिया और दूसरे देशों में अपने नेवी, एयरफोर्स और आर्मी की सहायता के लिए ज्यादा से ज्यादा मिलिट्री लॉजिस्टिक सेंटर बनाने की योजना पर लगातार आगे बढ़ रहा है. चीन का कंबोडिया के साथ काफी लंबे वक्त से बेहतर संबंध रहा है. कंबोडिया की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाकर चीन, साउथ चाइना सी और गल्फ ऑफ थाईलैंड में अपना प्रभाव बढ़ाना चाह रहा है. अमेरिका बार-बार कहता रहा है कि गल्फ ऑफ थाईलैंड में मौजूद कंबोडिया के रियम नौसैनिक ठिकाना (Ream naval base) चीन के दूसरे विदेशी सैन्य अड्डे और इंडो-पैसिफिक रीजन में इसके पहले सैन्य अड्डे में बदला जा रहा है.
रीजन में पावर ऑफ बैलेंस में मिलेगी मदद
पहले से ही भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर जारी तनातनी के बीच चीन का इंडो-पैसिफिक रीजन में इस तरह का आक्रामक और विस्तारवादी रुख भारत के नजरिए से सही नहीं कहा जा सकता है. चीन का पूरा जोर भारत के दोनों ओर अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में नियंत्रण बढ़ाने पर है. ऐसे में भारत के लिए सुरक्षा से जुड़ी चिंता बढ़ जाती है. भारत का फ्रांस के साथ समुद्री सहयोग बढ़ना इस लिहाज से भी कूटनीतिक महत्व रखता है. अब जब दोनों देशों ने ‘भारत-फ्रांस हिंद-प्रशांत रूपरेखा’ का मसौदा जारी कर दिया है, तो उम्मीद है कि भविष्य में भारत-फ्रांस सहयोग से इस रीजन में पावर ऑफ बैलेंस में काफी मदद मिलेगी. इसके साथ ही इस शक्ति संतुलन में अफ्रीका, हिंद महासागर क्षेत्र, दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र समेत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों में आपसी सहयोग बढ़ाने में भी भारत-फ्रांस की दोस्ती कारगर होने के साथ ही मील का पत्थर साबित होगी.
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