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India Clerifies Factual Position Of IMF Report On General Government Debt – अभी भी 2002 के कर्ज लेवल से नीचे…: भारत ने IMF की रिपोर्ट से असहमति जताते हुए दिए सही आंकड़े



भारत सरकार ने IMF की रिपोर्ट पर कुछ आपत्तियां जाहिर करते हुए फैक्ट्स भी सामने रखे हैं. भारत सरकार ने कहा कि IMF के लेटेस्ट आर्टिकल IV कंसल्टेशन में कुछ अनुमान लगाए गए हैं, जो तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं. भारत ने कुछ पॉइंट्स भी गिनाए हैं:-

1. सामान्य सरकारी कर्ज में केंद्र और राज्य सरकार दोनों की हिस्सेदारी शामिल होती है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत में सामान्य सरकारी कर्ज बड़े पैमाने पर भारतीय करेंसी रुपये में लिया गया है. ऐसे में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सोर्सेस का योगदान न्यूनतम होता है.

2. IMF की रिपोर्ट को लेकर सरकार ने कहा कि मुख्य रूप से सरकारी बॉन्ड के रूप में घरेलू स्तर पर लिए गए कर्ज ज्यादातर मिडियम या लॉन्ग टर्म वाले होते हैं. इसमें केंद्र सरकार के कर्ज की एवरेज मेच्यौरिटी का वक्त 12 साल होता है. लिहाजा घरेलू कर्ज के लिए रोलओवर जोखिम कम है. इसमें एक्सचेंज रेट में अस्थिरता का जोखिम भी निचले स्तर पर होता है.

3. सरकार ने कहा कि IMF की ओर से दिए गए प्लस और माइनस हालात के बीच बहुत बड़ी संभावना है कि  कोविड-19 महामारी जैसे हालातों में सरकार का सामान्य कर्ज जीडीपी का 100 फीसदी हो सकता है. IMF की रिपोर्ट वित्तीय वर्ष (FY2028) तक सिर्फ सबसे खराब स्थिति की बात करता है, जो सच नहीं है.

4. अन्य देशों के लिए IMF की ऐसी रिपोर्ट उनके लिए बहुत ज्यादा खराब स्थितियों को दिखाती हैं. मसलन अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के लिए IMF की रिपोर्ट में ‘सबसे खराब स्थिति’ के आंकड़े दिए गए. रिपोर्ट के तहत अमेरिका के लिए ‘सबसे खराब स्थिति’ का प्रतिशत 160, ब्रिटेन के लिए 140 और चीन के लिए 200 प्रतिशत हैं. ये भारत के 100 प्रतिशत की तुलना में कहीं ज्यादा खराब है.

5. सरकार ने कहा कि IMF की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि वाजिब परिस्थितियों में उसी अवधि में सामान्य सरकारी कर्ज यानी जीडीपी का अनुपात घटकर 70 प्रतिशत से नीचे आ सकता है. रिपोर्ट यह बताती है कि मध्यम अवधि में सामान्य सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 100% से अधिक हो जाएगा, जिसे गलत समझा गया है.

6. सरकार ने कहा कि इस सदी में भारत को जो झटके महसूस हुए, वो वैश्विक भी थे. उदाहरण के लिए वैश्विक वित्तीय संकट, टेपर टैंट्रम, कोविड-10 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध… इन झटकों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को समान रूप से प्रभावित किया. हालांकि कुछ देश इससे अप्रभावित भी रहे. इसलिए, किसी भी प्रतिकूल वैश्विक झटके या  घटना से परस्पर जुड़े विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने की उम्मीद है.

7. सरकार ने कहा कि इन परिस्थितियों में भारत ने अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन किया है. सामान्य सरकारी कर्ज (राज्य और केंद्र दोनों) वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग 88 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में लगभग 81 प्रतिशत हो गया है. केंद्र अपने घोषित राजकोषीय घाटे को कम करने के लक्ष्य को हासिल करने की राह पर है. वित्त वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 प्रतिशत से नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया है.

8. सरकार ने कहा कि राज्यों ने भी व्यक्तिगत रूप से अपना राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून बनाया है. जिसकी निगरानी उनके संबंधित राज्य विधानमंडल करते हैं. इसलिए, यह उम्मीद की जाती है कि मध्यम से लंबी अवधि में सामान्य सरकारी कर्ज में जल्द काफी गिरावट आएगी.

भारत पर कुल कितना कर्ज?

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सितंबर 2023 में देश पर कुल कर्ज 205 लाख करोड़ रुपये हो गया है. इसमें से भारत सरकार पर 161 लाख करोड़ रुपये, जबकि राज्य सरकारों पर 44 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है.

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