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Indepth: क्रीमी लेयर पर क्या डर? SC-ST के उप वर्गीकरण के सुझाव से इस कारण किनारा कर रही सरकार




नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग में उप वर्गीकरण और पिछड़ों में भी अति पिछड़ों के हक की बात कही और इसी आधार पर राज्यों को आरक्षण (Reservation) के कोटे में कोटा तय करने का सुझाव दिया. लेकिन कोटे में कोटे का यह मामला सियासी तौर पर इतना संवेदनशील है कि सरकार ने संविधान का हवाला देते हुए क्रीमी लेयर (Creamy Layer) से किनारा कर लिया है. आखिर क्या कारण है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को स्वीकार करने में डर रही है? जबकि सैद्धांतिक रूप से सुप्रीम कोर्ट का सुझाव पूरी तरह व्यवहारिक है और इसमें किसी भी तरह का पूर्वाग्रह भी नहीं है.  

सरकार में शामिल तेलगू देशम पार्टी, एनडीए का हिस्सा केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के अलावा  बीजेपी के कई सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का स्वागत किया है लेकिन पार्टी के ही करीब सौ एससी-एसटी सांसदों ने इसका विरोध किया है. यह सांसद आज पीएम मोदी से मिले और सुप्रीम कोर्ट के सुझाव लागू नहीं करने की मांग की. एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी कोर्ट के सुझाव से सहमत नहीं हैं.       

राज्यों को कोटा में कोटा तय करने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अगस्त के फैसले में कहा था कि, “राज्यों के पास अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण का सार्वभौमिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण मिल सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी हुई हैं.” कोर्ट ने सुझाव दिया कि राज्य एससी-एसटी के आरक्षण के कोटे में कोटा तय कर सकते हैं. 

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया था कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के ‘मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों’ के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, न कि ‘मर्जी’ और ‘राजनीतिक लाभ’ के आधार पर.’ 

पीएम मोदी से मिले 100 सांसद

अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के करीब सौ सांसदों ने शुक्रवार को पीएम मोदी से मुलाकात की. उन्होंने पीएम को ज्ञापन दिया जिसमें मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राज्य सरकारों को एससी-एसटी के आरक्षण में कोटे में कोटा देने वाले फैसले और एससी-एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर वाली सिफारिश का पालन न हो.  

ज्ञापन में सांसदों ने पीएम से अपील की कि कोर्ट के फैसले को लेकर एससी एवं एसटी समाज में भ्रम है. बताया जाता है कि पीएम मोदी ने सांसदों को विश्वास दिलाया है कि क्रीमी लेयर के तहत वे वर्गीकरण नहीं होने देंगे.

पीएम मोदी ने सांसदों से कहा है कि क्रीमी लेयर को लेकर जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है वह सिर्फ जजों का सुझाव है और उनकी व्यक्तिगत राय है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि केंद्र सरकार क्रीमी लेयर को लेकर कोर्ट के सुझाव लागू नहीं करेगी. केंद्र सरकार की तय आरक्षण व्यवस्था जारी रहेगी. कोर्ट के सुझाव का आरक्षण व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

फैसले के विरोध और समर्थन को लेकर सियासत

सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को फैसला दिया था. तभी से इस फैसले के विरोध और समर्थन को लेकर सियासत गर्मा रही है. बीएसपी की प्रमुख मायावती, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, रामदास आठवले और चंद्रशेखर जैसे दलित नेता अदालत के फैसले का विरोध कर रहे हैं. हालांकि सरकार में शामिल तेलगू देशम पार्टी, केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी और बीजेपी के ही कई सांसद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन कर रहे हैं और कोर्ट के सुझावों पर अमल करने के पक्ष में हैं. 

सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर अमल को लेकर एनडीए में शामिल दल ही एकमत नहीं हैं.  एलजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का कहना है कि एससी वर्ग को आरक्षण इसमें शामिल जातियों को अस्पृश्यता की पीड़ा झेलने के कारण दिया गया. आर्थिक कारण इस आरक्षण का आधार नहीं है, इसलिए क्रीमी लेयर के आधार पर वर्गीकरण की जरूरत नहीं है. उनका कहना है कि, ”हम लोग इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि अनुसूचित जाति का आधार अस्पृश्यता (untouchability) है. इसका कोई शैक्षणिक या आर्थिक आधार नहीं है.”   

दूसरी तरफ एनडीए के घटक दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत हैं. उनका कहना है कि, ”जो आदमी बढ़ गया है वह बढ़ते रहे और जो आदमी पीछे है उसकी केयर नहीं की जाए… इसलिए हम हर हालत में सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश है उसका स्वागत करते हैं.”         

राज्यों के मनमानी करने का संदेह

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के सुझावों को अस्वीकार करते हुए कई तर्क दिए हैं. उनका कहना है कि, फैसले में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि किसे क्रीमी लेयर माना जाएगा और किसे नहीं. अगर उपवर्गीकरण हुआ तो कई पद खाली रह जाएंगे. राज्य मनमाने तरीके से कई जातियों को लाभ दे सकते हैं और कुछ को नकारा जा सकता है. यह संविधान के मूल के विरुद्ध होगा. यह पूरी तरह से असंवैधानिक है. एसी/एसटी को दिया जाने वाला आरक्षण खत्म होने का खतरा हमेशा बना रहेगा. आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक उत्थान है, इसलिए जाति के आधार पर इसका बंटवारा गलत है. 

सुप्रीम कोर्ट का सुझाव तर्कसम्मत है लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार इससे किनारा कर रही है. शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने सांसदों से मुलाकात के बाद साफ कर दिया कि क्रीमी लेयर का सुझाव दिया गया है जिसे स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह कहकर पीएम मोदी और उनकी सरकार ने दलितों को वह संदेश दे दिया है जो मौजूदा राजनीतिक स्थिति में बेहद जरूरी था. 

”…तो आरक्षण खत्म कर देगी बीजेपी”

याद कीजिए कुछ माह पहले हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संविधान की प्रति हाथ में लेकर लोगों से कहा था कि यदि बीजेपी फिर से 300 से अधिक सीटें लेकर सत्ता में आई तो वह संविधान बदल देगी, आरक्षण खत्म कर देगी. राहुल की यह चेतावनी इतनी असर कर गई कि बीजेपी को दलित वोटों और सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.    

बीजेपी की नजर अगले विधानसभा चुनावों पर

लोकसभा चुनावों के बाद से बीजेपी हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है. बीजेपी सांसदों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से देश में वही नैरेटिव बनाने की कोशिश हो रही है. यही वजह है कि बीजेपी सांसदों ने पीएम मोदी से मिलकर कोर्ट के सुझाव स्वीकार नहीं करने की मांग की है.

निकट भविष्य में झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों में एससी-एसटी वोटरों की खासी संख्या है. बीजेपी को भय है कि यदि विपक्ष के नैरेटिव को काउंटर नहीं किया गया तो इन चुनावों में बीजेपी को नुकसान हो सकता है.

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