HP News SFD’s National Seminar On Disaster Dynamics, Important Suggestions Given To Reduce Losses Ann
Himachal Pradesh: जुलाई-अगस्त के महीने में हिमाचल प्रदेश में ऐसी आपदा आई, जिसे आज तक के इतिहास में कभी देखा नहीं गया था. प्रदेश भर में न केवल भारी संपत्ति का नुकसान हुआ बल्कि 500 से ज्यादा लोगों को अपनी जान भी गवानी पड़ी. इसके बाद अब हिमाचल प्रदेश में भविष्य के लिए ऐसी आपदा से बचाव के लिए गंभीरता से विचार हो रहा है. सरकारी स्तर पर भी इस बारे में विचार हो रहा है और अलग-अलग क्षेत्र के एक्सपर्ट भी इस बारे में गंभीरता के साथ ध्यान देने की बात कह रहे हैं.
शिमला में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन
आपदा की गतिशीलता पर विकासार्थ विद्यार्थी (SFD Shimla) की ओर से शिमला में राष्ट्रीय संगोष्ठी (National level Seminar on Himachal Floods) का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी में हिमाचल प्रदेश में आई आपदा से हुए नुकसान पर सारगर्भित चर्चा की गई. इस संगोष्ठी में कई एक्सपर्ट्स ने हिस्सा लिया. इस संगोष्ठी में NIT हमीरपुर के डायरेक्टर हरिलाल मुरलीधर रघुवंशी, इंडियन इंस्टीट्यूट का जैमोनिटिज्म मुंबई के निदेशक प्रोफेसर एपी डिमरी, बागवानी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर चंदेल, सीएसआईआर रुड़की से डॉ. अनिंद्या, मंडी विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर डीडी शर्मा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री आशीष चौहान समेत कई बड़े एक्सपर्ट्स शामिल हुए.
शहरी इलाकों में वृक्षारोपण की जरूरत पर जोर
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी (National Seminar Shimla) में एनआईटी हमीरपुर के डायरेक्टर हरिलाल मुरलीधर रघुवंशी ने कहा कि अन्य पहाड़ी राज्यों की तुलना में हिमाचल प्रदेश की मिट्टी अधिक रेतीली है. ऐसे में यहां घर बनाने के वक्त मिट्टी की टेस्टिंग बेहद जरूरी है. मिट्टी की क्षमता के मुताबिक ही इसका ट्रीटमेंट किया जाता है, ताकि घर गिरने से बचाए जा सके. बेतरतीब शहरीकरण से आपदा में नुकसान कई गुना बढ़ जाता है. सड़कों, पुलों और बहुमंजिला इमारत का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए, ताकि वह आपदा के बोझ को झेल सके. इसके अलावा उन्होंने रिहायशी इलाकों में ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण की जरूरत पर भी जोर दिया.
राज्य सरकार के साथ साझा करेंगे चर्चा
वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय संगठन मंत्री आशीष चौहान ने कहा कि यह वह वक्त है, जब आपदा की समीक्षा की जानी चाहिए. भविष्य में हिमाचल प्रदेश में ऐसा नुकसान दोबारा न हो, इसके लिए इस संगोष्ठी में मंथन किया गया. सेमिनार में जो निष्कर्ष निकलेगा, उसे राज्य सरकार के साथ साझा किया जाएगा. उन्होंने कहा कि राजधानी शिमला में लगातार डिकंजेशन बढ़ रहा है. ऐसे में यहां लगातार दफ्तरों को बाहर शिफ्ट किए जाने की चर्चा भी जोरों पर रहती है. उन्होंने कहा कि भूकंप की दृष्टि से भी शिमला और हिमाचल प्रदेश के अन्य इलाके बेहद संवेदनशील हैं. ऐसे में आपदा के वक्त यहां होने वाले नुकसान को कम से कम किया जा सके. इस संदर्भ में सभी एक्सपर्ट ने अपनी राय दी है. यह महत्वपूर्ण सुझाव राज्य सरकार के साथ साझा किए जाएंगे, ताकि इसका फायदा प्रदेश के लोगों को मिले.
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