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Himachal Pradesh Uttarakhand Landslides Due To Heavy Rain Why Mountains Sinking – Explainer : दरकते पहाड़, विकराल होती नदियां… ये कुदरत का कहर या इंसानी लापरवाही का नतीजा?



शिमला के कृष्णानगर इलाके में मंगलवार शाम को देखते ही देखते आठ मकान बह गए. पहाड़ी ढाल पर बने इन बड़े मकानों के बुनियाद की मिट्टी बारिश की वजह से लगातार खिसक रही थी. मकानों के ठीक नीचे की ढाल पर बारिश के कारण लगातार कटाव हो रहा था. हालात को देखते हुए शिमला नगर निगम ने इन मकानों को सुबह ही खाली करवा दिया था. बावजूद इसके इस हादसे में 2 लोगों की मौत हो गई. लैंडस्लाइड में शिमला का इकलौता स्लॉटर हाउस भी तबाह हो गया. इन मकानों का मलबा स्लॉटर हाउस पर गिरा, जहां कुछ लोग काम कर रहे थे. 

शिमला में इस हादसे से एक दिन पहले सोमवार को भी एक बड़ा हादसा हुआ. शिमला के समर हिल इलाके का एक पुराना शिव बावड़ी मंदिर भारी बारिश के बाद लैंडस्लाइड में ढह गया. इस हादसे में अब तक 13 शव बरामद हो चुके हैं. कुछ और लोगों के भी मलबे में दबे होने की आशंका है. सोमवार को ही शिमला के फागली में इलाके में लैंडस्लाइड से 5 लोगों की मौत हो गई. इसी दिन सोलन जिले में भारी बारिश के बाद लैंडस्लाइड में 7 लोगों की जान गई थी.

शिमला-कालका रेल लाइन पर हुई डैमेज

हिमाचल में भारी बारिश से यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में शुमार की गई शिमला-कालका रेल लाइन पर डैमेज हो गई. शिमला-कालका रेल लाइन पर समरहिल के करीब रेल पटरी के नीचे 50 मीटर का एक पुल लैंडस्लाइड में बह गया. इसकी वजह से वहां पर रेल की पटरियां हवा में झूलती दिखीं. ये जगह शिमला से 6 किलोमीटर दूर है. इस हेरिटेज ट्रैक को 5 से 6 जगहों पर नुकसान पहुंचा है. 

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शिमला और शोघी के बीच सबसे ज्यादा नुकसान

बारिश और लैंडस्लाइड से सबसे ज्यादा नुकसान शिमला और शोघी के बीच हुआ. सोलन-कालका ट्रैक पर धरमपुर और परवानु के बीच भी रेलवे ट्रैक को काफी नुकसान पहुंचा है. 96 किलोमीटर लंबी कालका-शिमला नैरो गेज ट्रेन 120 साल से इस ट्रैक पर चल रही है. ये ट्रेन 103 सुरंगों, 800 पुलों और 919 मोड़ों से होकर गुजरती है. इस बार की बारिश ने इसे कई जगह नुकसान पहुंचाया है.

कांगड़ा में भी जनजीवन अस्त-व्यस्त

भारी बारिश से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में भी जनजीवन अस्त-व्यस्त है. ब्यास नदी पर बने पौंग डैम में पानी का स्तर काफी बढ़ गया है. 1974 में पौंग डैम के बनने के बाद से अभी तक सबसे ज्यादा पानी इस डैम में आ रहा है. सोमवार को यहां 7.30 लाख क्यूसेक पानी आ रहा था. यानी 7.30 लाख क्यूबिक फुट प्रति सेकंड पानी आ रहा था. इस कारण पौंग डैम से पानी को तेजी से छोड़ा जा रहा है. ताकि डैम पर दबाव कम किया जा सके. इस वजह से कई निचले रिहायशी इलाकों में पानी भर रहा है. इसे देखते हुए लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा रहा है. इस काम में भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों की मदद ली जा रही है. करीब एक हज़ार लोगों को अब तक सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा चुका है.

ब्यास नदी का पानी हिमाचल से पंजाब में जाता है. इसे देखते हुए पंजाब सरकार ने भी ब्यास नदी के किनारे के पांच जिलों गुरदासपुर, अमृतसर, होशियारपुर, कपूरथला और तरनतारन जिलों में लोगों को सावधान कर दिया है. नदी में पानी बढ़ने पर तुरंत किनारे के रिहायशी लोगों की मदद के लिए तैयार रहने को कहा गया है. कई अस्थायी राहत शिविर भी बनाए गए हैं, ताकि प्रभावित लोगों को तुरंत मदद मिल सके.

 

800 जगहों पर सड़कों को नुकसान


हिमाचल प्रदेश में बारिश और लैंडस्लाइड के कारण करीब 800 जगहों पर सड़कों को नुकसान पहुंचा है. सड़कों की मरम्मत के लिए हेवी अर्थ मूविंग मशीनें जैसे बुलडोज़र वगैरह की जरूरत है. सड़कें टूटने के कारण ऐसी भारी मशीनों को अब वायुसेना के बड़े चिनूक हेलीकॉप्टरों की मदद से अलग-अलग जगहों पर पहुंचाया जा रहा है. 

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 एनडीआरएफ की दो टीमें राज्य में तैनात

फिलहाल एनडीआरएफ की दो टीमें राज्य में तैनात हैं. एक शिमला और एक कांगड़ा में. वायुसेना, सेना और आईटीबीपी की टीमें भी कई जगह राहत और बचाव के काम में पुलिस प्रशासन की मदद कर रही हैं. हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के मद्देनजर 19 अगस्त तक स्कूल-कॉलेजों को बंद कर दिया गया है. 

क्लाइमेट चेंज का असर-सीएम

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, “क्लाइमेट चेंज का असर है. लाहौल स्फीति में कभी बारिश नहीं होती थी. माइनस डिग्री में तापमान रहता था. शिमला की स्थिति भी इंसानों की वजह से बिगड़ी है. लोगों ने तेजी से निर्माण करा लिए हैं. पहाड़ों पर मकान बनाने के साथ-साथ इसे कमर्शियल एंगल भी दिया गया. इसमें ये नहीं देखा गया कि पहाड़ी की लोड लेने की क्षमता कितनी है? पहाड़ के स्ट्रेटा की जांच-परख नहीं की गई. और हमारे घरों से जो पानी निकलता है-किचन का हो या बाथरूम का या फिर बारिश का पानी उसका ड्रेनेज सिस्टम भी सही नहीं था. अब इतनी तेज बारिश हुई और लगातार हो रही है. ज्यादा पानी की वजह से मिट्टी खिसकने लगी है. एक वक्त के बाद बिल्डिंगें पेड़ों की चपेट में आकर गिर जाती हैं.” 

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क्या है इस तबाही की वजह?

बारिश के दौरान इन हादसों की संख्या इसीलिए ज्यादा हो गई है, क्योंकि पानी की निकासी के रास्तों पर अंधाधुंध निर्माण हो गए हैं. नदियों के किनारों पर बेतहाशा निर्माण हो चुका है. सड़कों को फोर लेन करने की कोशिशों में पहाड़ों को कई जगह बेतरतीब और लापरवाही से काटा गया है. सड़कों को चौड़ा करने पर ध्यान ज़्यादा है. सड़कों की मजबूती पर फोकस कम हो गया है. इसीलिए इस तरह के हादसे हो रहे हैं. 

जाने माने जियोलोजिस्ट ने दिखाई हकीकत

जाने माने जियोलोजिस्ट डॉ. नवीन जुयाल ने हिमाचल प्रदेश की बारिश के बाद कुछ इलाकों का दौरा किया. उन्होंने वहां हुए नुकसान के वजहों को समझने की कोशिश की. वो हिमाचल के भुंटर में जिया गांव में पार्वती नदी के किनारे भी पहुंचे, जिसने 9 जुलाई को भारी कहर बरपाया.

NDTV से बातचीत में डॉ. नवीन जुयाल कहते हैं, “9 जुलाई की शाम पार्वती नदी विकराल रूप लिए हुए थी. लोकल लोगों के मुताबिक, इस नदी में पत्थरों और पेड़ों का काफी मात्रा में बहाव हो रहा था. पानी के तेज बहाव में जिया पुल को भी नुकसान पहुंचा. अब इस पुल के सिर्फ अवशेष रह गए हैं. लोगों के मुताबिक ये पुल अंग्रेजों के जमाने से था.”

मनाली-लेह फोर लेन हाइवे पर भी हुआ काफी नुकसान

हिमाचल की बारिश से मनाली-लेह फोर लेन हाइवे पर भी काफी नुकसान हुआ है. कुल्लू में ऐसी ही एक जगह से डॉ. जुयाल ने हमें बताया कि यहां सड़क बनाने में क्या गलतियां हुई हैं. डॉ. नवीन जुयाल ने बताया, “मनाली-लेह फोर लेन हाइवे को ठीक तरीके से प्लान नहीं किया गया है. एक तरफ टू लेन बना है, बाकी के टू लेन के लिए पहाड़ को काटकर हाइवे को चौड़ा किया जा रहा है. हाइवे के दूसरे साइड आपको पहाड़ काटने के बाद बड़े-बड़े पत्थर दिखाई देंगे. दरअसल, जब इस हाइवे का अलाइंमेंट हुआ, तो पहाड़ की ऊंचाई और उसकी क्षमता का ध्यान नहीं रखा गया. रोड बनाते समय हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि ओल्ड लैंड साइड स्टेबल होने के लिए लंबा वक्त लेते हैं. अगर हमें इसे वास्तव में स्टेबल रखना है, तो हमें एडुकेडेड इंजीनियरिंग के साथ ही जूलॉजिकली काफी सेंसेटिव होना पड़ेगा.”

मलाना डैम पर भी संकट

हिमाचल में जुलाई के दूसरे और तीसरे हफ्ते में हुई भारी बारिश से पार्वती नदी पर बने 86 मेगावॉट के मलाना डैम पर भी संकट आ गया था. डैम के चारों गेट भारी सिल्ट के कारण जाम हो गए थे. इस वजह से पानी डैम के ऊपर से बहने लगा था. पानी ने करीब की पहाड़ी को भी काट दिया था. ये खुशकिस्मती रही कि ये किसी बड़े नुकसान में तब्दील नहीं हुआ. कुल्लू के भुंटर से डॉ. नवीन जुयाल ने बताया कि उच्च हिमालयी इलाकों में ऐसे बांध बनाते वक्त क्या ध्यान रखना ज़रूरी है.

हिमाचल सरकार ने ड्रेनेज सिस्टम पर की मीटिंग

हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में बारिश से जुड़े हादसों के बाद हिमाचल सरकार ने एक बैठक बुलाकर इमारतों के बनावट से जुड़े नियमों और ड्रेनेज सिस्टम पर बात की. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने भी इस हादसे के बाद कहा कि अंधाधुंध निर्माण ही ऐसी आपदाओं को बड़ा करने के लिए ज़िम्मेदार है. 

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उत्तराखंड में बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त

हिमाचल प्रदेश ही नहीं उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में भारी बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त है. राज्य में इस मॉनसून सीज़न में अब तक बारिश के कारण हुई अलग-अलग घटनाओं में कम से कम 65 लोगों की मौत हो चुकी है. 41 लोग घायल हुए हैं. 24 लोग लापता बताए जा रहे हैं.

चार धाम यात्रा रोकी गई

ताज़ा हालात को देखते हुए चार धाम यात्रा रोक दी गई है. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में मदमहेश्वर की यात्रा पर गए ऐसी ही 200 से ज़्यादा श्रद्धालु रास्ते में फंस गए. क्योंकि गौंडार गांव के पास एक पुल भारी बारिश से टूट गया था. फंसे हुए लोगों के रेस्क्यू के लिए एनडीआरएफ और हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया. ख़ास बात ये है कि यहां हेलीकॉप्टर उतर सके इसके लिए स्थानीय गांव की महिलाओं ने कुछ ही घंटों में कुदाल और फावड़ों से एक अस्थायी हैलीपैड तैयार कर दिया.

चमोली में ढहा 2 मंजिला मकान

उत्तराखंड में ही बारिश से जुड़े एक हादसे में चमोली के हेलंग इलाके में दो मंजिला एक मकान ढह गया. हादसे में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि चार लोग घायल हैं. उत्तराखंड में गंगा और उसकी सहायक नदियों अलकनंदा, मंदाकिनी, भागीरथी और भिलंगना में जब भी पानी बढ़ता है, तो मैदान में सबसे पहले उसका असर ऋषिकेश में दिखाई देता है. पिछले कुछ दिन ऋषिकेश में गंगा ख़तरे के निशान के ऊपर बह रही थी.

पानी के बहाव से टूट गया भगवान शिव के शेर का मुंह

ऋषिकेश में गंगा के पानी का स्तर दिखाने के लिए अक्सर परमार्थ निकेतन घाट के पास बनी भगवान शिव की इस मूर्ति को दिखाया जाता है, जो गंगा के चढ़ने पर डूब जाती है. अब जब पानी घटा है, तो दिख रहा है कि शिव की मूर्ति जिस पत्थर के शेर के ऊपर बिठाई गई, उस शेर का मुंह बारिश के साथ आई चट्टानों से टूट गया है. वैसे ये बताना बहुत ज़रूरी है कि गंगा के बीचों बीच इस तरह के निर्माण अवैध हैं. कानून के हिसाब से ऐसी मूर्तियां गंगा के कैचमेंट में नहीं बननी चाहिए. ये तो बिलकुल गंगा के अंदर बनाई गई है.

भारी बारिश और लैंडस्लाइड से राज्य में करीब 250 जगहों पर सड़कें कट गई हैं ,जिन्हें ठीक करने का काम चल रहा है. कई इलाकों का संपर्क टूट गया है. देहरादून से 22 किलोमीटर दूर टिहरी ज़िले के कई गांवों का सड़क संपर्क टूट गया है. सवाल ये है कि अगर हम अब भी नहीं संभलें, तो आखिर कब समझेंगे? कब संभलेंगे?


 



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