Haryana Election Result 2024 Congress Defeat By BJP INDIA Alliance Allies Targeted Rahul Gandhi
INDIA Allies Targeted Rahul Gandhi: साल 1964 में एक फिल्म आई थी संगम. उसमें मुकेश का गाया हुआ एक गीत था दोस्त…दोस्त न रहा, प्यार…प्यार न रहा. जिंदगी हमें तेरा ऐतबार न रहा. अब 60 साल बाद इस गाने के बोल में थोड़े बदलाव किए जाएं और इनके राजनीतिक मायने निकाले जाएं तो गाना कुछ यूं भी हो सकता है कि दोस्त…दोस्त न रहा, प्यार…प्यार न रहा. राजनीति हमें तेरा ऐतबार न रहा. और ऐतबार हो भी क्यों? चुनाव जीतने के लिए नए-नए दोस्त बनते हैं, नए-नए गठबंधन बनते हैं और चुनाव खत्म होते ही दोस्ती खत्म. गठबंधन खत्म. सब कुछ खत्म.
इसके सबसे हालिया उदाहरण हैं राहुल गांधी, जिन्होंने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विपक्षी पार्टियों का गठबंधन बनाया. INDIA नाम दिया और जब लोकसभा का चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव भी खत्म हो गए तो ऐसा लगता है कि अब INDIA का मतलब सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस है, जिसमें कंधा समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का ही लगा हुआ है.
आम आदमी पार्टी-कांग्रेस के बीच नहीं बनी बात
लोकसभा चुनाव के खात्मे के बाद INDIA ने बीजेपी को 240 पर समेट तो दिया, लेकिन लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बनाने से रोक नहीं पाए. तो सबसे पहले अलगाव की घोषणा की आम आदमी पार्टी ने, जिसने हरियाणा में अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. आप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर दी. हरियाणा के लिए केजरीवाल की गारंटी दी और केजरीवाल को हरियाणा का लाल भी बता दिया. फिर उतर गए चुनावी समर में.
लेकिन चुनाव करीब आए तो राहुल गांधी ने कोशिश की कि आप के साथ गठबंधन हो जाए. रोड़ा बने राहुल के ही लोग. भूपिंदर सिंह हुड्डा से लेकर सुरजेवाला तक और गठबंधन नहीं हुआ. नतीजा आम आदमी तो हरियाणा में डूबी ही डूबी, कांग्रेस को भी इतना नुकसान पहुंचा दिया.
जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला दिखा रहे आंखें
ये तो चुनाव से पहले की बात है. चुनाव के बाद राहुल गांधी के साथ औऱ बड़ा खेल हो गया है. ये खेल हुआ है जम्मू-कश्मीर में जहां कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. दोनों ने मिलकर जीत भी हासिल की है, लेकिन जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 सीटों पर जीत मिली है, वहां कांग्रेस 6 पर सिमट गई है. अब यूं तो गठबंधन का तकाजा और दोस्ती का तकाजा यही कहता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस मिलकर सरकार बना ले, लेकिन शायद यही राजनीति है. और तभी तो उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस को आत्ममंथन करना चाहिए कि उनके साथ हुआ क्या.
लेकिन उमर अब्दुल्ला जिस दिन ये बात कह रहे थे, वो नतीजों का दिन था. उमर अब्दुल्ला के पास बहुमत नहीं था तो उन्हें कांग्रेस की दरकार थी, लिहाजा सुर नरम थे लेकिन अब तो जम्मू क्षेत्र के जीते हुए चार निर्दलीय विधायकों ने उमर अब्दुल्ला का समर्थन कर दिया है. आम आदमी पार्टी के इकलौते विधायक ने भी उमर अब्दुल्ला का साथ देने का फैसला किया है. ऐसे में उमर अब्दुल्ला के लिए कांग्रेस के जीते हुए 6 विधायकों से ज्यादा निर्दलीय विधायक काम के हैं, क्योंकि ये सब के सब जम्मू रीजन के हैं.
उमर अब्दुल्ला को अपने पिता फारुख अब्दुल्ला के साथ कांग्रेस का धोखा भी याद ही होगा, जिसमें उमर अब्दुल्ला के पिता फारुख को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर उनके फूफा गुल मुहम्मद शाह को मुख्यमंत्री बना दिया गया था. तो अब उमर अब्दुल्ला भी इस दोस्ती को शायद ही कायम रख पाएं.
क्या महाराष्ट्र के साथी देंगे राहुल का साथ?
बाकी दोस्ती तो अभी महाराष्ट्र में भी टूटनी तय है. क्योंकि कमजोर हो रही पार्टी के साथ न तो उद्धव ठाकरे राब्ता रखना चाहेंगे और न ही शरद पवार. तभी तो बगावत के सुर इस महाविकास अघाड़ी में भी उठने शुरू हो गए हैं, जिनके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस और राहुल गांधी ही हैं.
बाकी टूट महाराष्ट्र में होगी तो झारखंड भी इसके प्रभाव से अछूता तो नहीं ही रहेगा. हेमंत सोरेन के सामने सरकार बचाने की चुनौती है और इस चुनौती में वो एक और कमजोर पार्टी को साथ लेकर और भी ज्यादा कमजोर तो नहीं ही होना चाहेंगे. उनका कोई बयान आया नहीं है, लेकिन कांग्रेस का रवैया यही रहा तो झारखंड में भी राहुल गांधी को नुकसान होना तय है.
आप-कांग्रेस हरियाणा में रहे दूर क्या दिल्ली में आएंगे पास?
बाकी दिल्ली तो है ही अगले साल. जब हरियाणा में आम आदमी पार्टी की ज़मीन नहीं है और वहां भी वो कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं कर पाई तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन का हश्र देख चुकी आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता में होने और दिल्ली में मज़बूत होने के बावजूद कांग्रेस के साथ गठबंधन करेगी, इसमें भी शंका तो है ही.
और जब इतने दोस्त छूटेंगे तो क्या 2025 में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव राहुल गांधी के सारथी बने रहेंगे, ये अपने आप में बड़ा सवाल है. लेकिन इसके जवाब के हासिल होने में थोड़ा वक्त है तो अभी कुछ भी कहने में जल्दबाजी होगी. हां, एक नेता है जो कांग्रेस की राहुल गांधी की इतनी फजीहत के बाद भी साथ देने को तैयार है और वो हैं अखिलेश यादव, जिन्हें यूपी में अभी चंद दिनों में ही उपचुनाव लड़ना है 10 सीटों पर, लेकिन उम्मीदवार 6 सीटों पर ही उतारे हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस से गठबंधन कायम रहेगा.
लेकिन इस गठबंधन के बावजूद इतना तो तय है कि राहुल गांधी से अभी और भी दोस्त बिछड़ेंगे बारी-बारी और इस गाढ़े वक्त में कांग्रेस को नए दोस्त मिलना लगभग नामुमकिन है.
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