First time Pearl farming in Jammu Kashmir retired police officer made pond in Samba ANN
Jammu and Kashmir News: जम्मू के सांबा जिले में भारत और पाकिस्तान सीमा पर हालात बदल रहे हैं. समय के साथ लोगों की जिंदगी बेहतर हो रही है. बॉर्डर से मात्र एक किलोमीटर दूर दो किसानों ने मिलकर मोती की खेती शुरू कर दी है. बता दें कि चिल्यारी इलाका भारत पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज एक किलोमीटर दूर है. कुछ साल पहले तक दोनों देशों के बीच हो रही गोलाबारी का इलाका केंद्र बिंदु बना हुआ था. गोलीबारी से लोगों के साथ खेती को क्षति हो रही थी. किसानों ने खेतों में जाना छोड़ दिया था. अब युद्ध जैसे हालात बदल गये हैं.
चिल्यारी इलाके में खेतों के बीचो-बीच तालाब बना हुआ है. जम्मू कश्मीर में पहली बार पर्ल फार्मिंग के कारण तालाब की चर्चा हो रही है. सीमावर्ती इलाके के रिटायर्ड पुलिस अफसर देस राज को पर्ल फार्मिंग का आइडिया यूट्यूब से आया. देस राज रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर यूट्यूब पर समय बिताते थे. यूट्यूब वीडियो देखने के दौरान पर्ल फार्मिंग से रूबरू हुए. उन्होंने बताया कि अब तक मोती के समंदर में मिलने की बात सुनी थी. लेकिन मोती की खेती के बारे में जानकारी मिलने पर आश्चर्यचकित रह गये. इसलिए मोती की खेती करने की ठानी. पर्ल फार्मिंग की तकनीक आईवीएफ से लगभग मिलती-जुलती है.
पर्ल फार्मिंग में मोतियां कैसे किया जाता है तैयार?
सीप के अंदर मोती को इंसर्ट किया जाता है. इंसर्ट करने के बाद करीब 2 साल तक सीप को पानी में रखा जाता है. दो सालों में पानी की मात्रा का ख्याल रखना होता है. रोजाना सीप को देखने के साथ दाना डालना होता है. देस राज के तालाब में करीब सवा लाख सीप है. हर सीप में एक से दो मोती होते हैं. उन्होंने बताया कि हर मोती को कंपनी करीब 100 में खरीदती है. देस राज ने एक कंपनी से टाइअप किया है. कंपनी पर्ल फार्मिंग के लिए तालाब बनाने और अन्य सहयोग देने का काम करती है. सीप से मोती बाहर आने के बाद कंपनी खरीदारी भी करेगी.
रिटायर्ड पुलिस अफसर ने यूट्यूब देखकर सीखा
देस राज के पार्टनर यशपाल का कहना है कि पहली बार मोती की खेती के बारे में सुनने पर यकीन नहीं हुआ. जम्मू कश्मीर से बाहर मोती की खेती देखकर हैरान रह गये. तालाब देखने के बाद उन्होंने भी मन बना लिया. दोनों किसान पाकिस्तान की तरफ से शेलिंग को बड़ा खतरा मानते हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल सीमा पर शांति है. उम्मीद है दिवाली के बाद सीप तालाब से निकल जाएंगे. किसानों को भी मोती की खेती के लिए प्रेरणा मिलेगी.
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