Explainer: Due To These Reasons, 93,000 Pakistani Soldiers Surrendered To India In 1971 – Explainer: इन कारणों से 1971 में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के सामने किया था आत्मसमर्पण
कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं ने भारत के पक्ष में ये युद्ध कर दिया था. जिसके कारण पाकिस्तान को हार देखने को मिली था. इस युद्ध के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –
भारत का थल, समुद्र और वायु ऑपरेशन
पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवादी आत्म निर्णय की लंबे समय से मांग कर रहे थे. 1970 के पाकिस्तानी आम चुनावों के बाद ये संघर्ष बढ़ा. नतीजतन 25 मार्च, 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया. इससे पूर्वी पाकिस्तान में इस तरह की मांग करने वालों को निशाना बनाया जाने लगा. पूर्वी पाकिस्तान में विरोध भड़का और बांग्लादेश मुक्ति बाहिनी नामक सशस्त्र बल बनाकर ये लोग पाकिस्तान की सेना से मोर्चा लेने लगे.
इस क्रम में भारत ने बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों को कूटनीतिक, आर्थिक ओर सैन्य सहयोग दिया. नाराज पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हवाई हमला कर दिया.
पाकिस्तान ने ऑपरेशन चंगेज खान के नाम से भारत के 11 एयरेबसों पर हमला कर दिया था. नतीजतन तीन दिसंबर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया. भारत ने पश्चिमी सीमा पर मोर्चा खोलते हुए पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश मुक्ति बाहिनी का साथ दिया.
भारत द्वारा पाकिस्तानी विमानों के लिए नो-फ़्लाई ज़ोन की घोषणा के बाद पूर्वी पाकिस्तान अपने पश्चिमी हिस्से से अलग हो गया था. पश्चिम में नौसैनिक नाकेबंदी ने राहत और गोला-बारूद की आपूर्ति के सभी मार्गों को बंद कर दिया.
युद्ध शुरू होने के तीन दिनों के अंदर ही भारतीय वायु सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में हवाई संचालन शुरू कर दिया था. जिससे बांग्लादेश के अंदर सेना को तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिली. आईएनएस विक्रांत, नौसेना का विमानवाहक पोत और नौसैनिक विमानवाहक की मदद से भागने के रास्ते और संचार की समुद्री लाइनें (एसएलओसी) कट गईं थी.
भारतीय थल सेना की 4, 33 और 2 कोर ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में तीन दिशाओं से मार्च किया. इसका उद्देश्य पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बनाए गए “किले शहरों (fortress cities)” पर कब्ज़ा करना था. ताकि दुश्मनों के लिए भागने का कोई रास्ता न छोड़ा जाए.
मनोवैज्ञानिक युद्ध
पाकिस्तानी सैनिकों का मानना था कि भारत सीमा के साथ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लेगा. इस गलत धारणा ने पाकिस्तान को ढाका के चारों ओर “किले शहर” बनाने के लिए मजबूर कर दिया. ऐसा करने से राजधानी में अपर्याप्त सैनिक रह गए.
भारत के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ (बाद में फील्ड मार्शल) ने 8 दिसंबर को जेसोर के पतन के बाद पाकिस्तानी सैनिकों के लिए एक संदेश भेजा था. जिसमें पाकिस्तानी सैनिकों को आश्वासन दिया गया कि “एक बार जब आप आत्मसमर्पण कर देंगे, तो आपके साथ जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार सम्मानजनक व्यवहार किया जाएगा”. 10 दिसंबर को एक अन्य संदेश में जनरल मानेकशॉ ने कहा, “आपका प्रतिरोध वीरतापूर्ण है लेकिन निष्फल है… आपके कमांडर झूठी उम्मीदें दे रहे हैं.”
अमेरिका, चीन से समय पर नहीं मिली मदद
लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी ने कथित तौर पर आत्मसमर्पण के बाद मेजर जनरल जेएफआर जैकब से कहा कि उन्होंने सैनिकों के हथियार छोड़ने से कम से कम सात दिन पहले हार मान ली थी. पाकिस्तान ने अपनी उम्मीदें अमेरिका और चीन पर लगा रखी थीं. लेकिन किन्हीं वजहों से ये दोनों देश पाकिस्तान की मदद नहीं कर सके.
पाकिस्तान ने किया समर्पण
13 दिसंबर को, पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने पश्चिमी पाकिस्तान में रावलपिंडी को संकेत भेजते हुए लड़ाई जारी रखने और जितना संभव हो उतना क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कहा. एक दिन बाद, भारतीय वायु सेना ने ढाका में गवर्नर हाउस पर उस समय बमबारी कर दी, जब इमारत में एक बैठक चल रही थी. हवाई हमले ने पूर्वी पाकिस्तान सरकार को हिला कर रखा दिया, जिसके बाद नियाज़ी ने लड़ाई के बजाय शांति को चुनी.
नियाज़ी ने पराजय स्वीकार करते हुए 93 हजार पाक सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष ढाका में सरेंडर किया. भारतीय सेना की अगुआई जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा कर रहे थे.