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Explainer : 40 साल से पड़े भोपाल गैस कांड के जहरीले कचरे की पूरी कहानी, जानिए अब कैसे लगाया जाएगा ठिकाने



नई दिल्ली:

भोपाल गैस त्रासदी के लगभग 40 साल बाद, मध्य प्रदेश सरकार आखिरकार यूनियन कार्बाइड के 337 मीट्रिक टन (एमटी) जहरीले कचरे को ठिकाने लगाने की कार्रवाई शुरू कर रही है. 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने में पड़े इस कचरे को इंदौर के पास पीथमपुर की एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में नष्ट किया जाएगा. केंद्र सरकार ने इसी साल 4 मार्च को कचरा निपटारा के लिए 126 करोड़ रुपये आवंटित किए थे.

भोपाल में दो और तीन दिसंबर 1984 के दौरान रात में जहरीली गैस ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ का रिसाव हुआ था. दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में गिनी जाने वाली इस घटना में 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और दीर्घकालिक विकलांगताओं से पीड़ित हो गए थे.

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राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद से बंद पड़े ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने के 337 टन रासायनिक कचरे को पीथमपुर में एक निजी कंपनी की अपशिष्ट निपटान इकाई तक पहुंचाने के लिए व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है. पीथमपुर, राज्य का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है.

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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने के जहरीले कचरे का निपटारा नहीं होने पर नाराजगी जताते हुए तीन दिसंबर को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि इस कचरे को तय अपशिष्ट निपटान इकाई में चार हफ्तों के भीतर भेजा जाए.

कचरा निपटारा मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?

2004 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई. कोर्ट ने भारत सरकार के रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के विशेषज्ञों ने 2005 में कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए गुजरात के अंकलेश्वर में भरूच एनवायरो-इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (बीईआईएल) के स्वामित्व वाले एक विश्व स्तरीय भस्मक की पहचान की गई. लेकिन 2007 में गुजरात में विरोध प्रदर्शन और 2009 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद, इसे रोक दिया गया.

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टास्क फोर्स ने हैदराबाद में डुंगीगल और मुंबई में तलोजा सहित अन्य उपचार, भंडारण और निपटान सुविधा (टीएसडीएफ) साइटों की पहचान की. 2010 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक सफल परीक्षण के बाद मध्य प्रदेश के पीथमपुर में टीएसडीएफ में 346MT कचरे को जलाने की अनुमति दी. इस फैसले को दो साल बाद राज्य ने चुनौती दी और 2012 में सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की जिसमें तर्क दिया गया कि “भोपाल गैस के जहरीले कचरे को जलाने के लिए यह सुविधा तकनीकी रूप से उपयुक्त नहीं है, जो औद्योगिक कचरे की तुलना में अधिक खतरनाक है.”

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डॉयचे गेसेलशाफ्ट फर इंटरनेशनेल ज़ुसामेनरबीट जीएमबीएच (जीआईजेड), जिसने जर्मनी में कचरे के निपटान के लिए 24.56 करोड़ रुपये की लागत का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, लेकिन 2012 में अपने नागरिकों के व्यापक विरोध के बाद इसे वापस ले लिया. 2015 में, केंद्र ने पीथमपुर टीएसडीएफ में एक परीक्षण चलाया, लेकिन निवासियों के विरोध के बाद आगे की योजनाओं को स्थगित करना पड़ा. फिर केंद्र और राज्य की सहमति के बिना सात साल तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

जहरीले कचरे के निपटारे की क्या योजना है?

इस परियोजना के 180 दिनों में क्रियान्वित होने की उम्मीद है. पहले 20 दिनों में, कचरे को पैक किए गए ड्रमों में दूषित स्थल से निपटान स्थल तक ले जाया जाएगा. बाद में, इस कचरे को भंडारण से एक मिश्रण शेड में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जहां इसे रीजेंट्स के साथ मिलाया जाता है और फिर 3 से 9 किलोग्राम वजन वाले छोटे बैग में पैक किया जाता है. वास्तविक भस्मीकरण 76वें दिन ही होगा जब भस्मीकरण से संबंधित सभी रिपोर्टें वास्तविक निपटान शुरू होने से पहले वारिस की मंजूरी के लिए कई विभागों को भेजी जाएंगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हवा की गुणवत्ता खराब न हो और मानक संचालन प्रक्रियाओं के अनुसार भस्मीकरण हो.

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राज्य के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा, “भोपाल गैस त्रासदी का कचरा एक कलंक है जो 40 साल बाद मिटने जा रहा है. हम इसे सुरक्षित तौर पर पीथमपुर भेजकर नष्ट करेंगे. इस रासायनिक कचरे को भोपाल से पीथमपुर भेजने के लिए करीब 250 किलोमीटर लंबा ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाया जाएगा. ‘ग्रीन कॉरिडोर’ का मतलब सड़क पर यातायात को व्यवस्थित करके कचरे को कम से कम समय में गंतव्य तक पहुंचाने से है.”

हालांकि इस कचरे को पीथमपुर भेजकर नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू किए जाने की कोई तारीख नहीं बताई गई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उच्च न्यायालय के निर्देश के मद्देनजर ये प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है.

कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरेगी कचरे का निपटारा

गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक ने बताया कि पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में शुरुआत में कचरे के कुछ हिस्से को जलाकर देखा जाएगा और इसके ठोस अवशेष (राख) की वैज्ञानिक जांच की जाएगी, ताकि पता चल सके कि इसमें कोई हानिकारक तत्व बचा तो नहीं रह गया है. अगर जांच में सब कुछ ठीक पाया जाता है, तो कचरे को तीन महीने के भीतर जलाकर भस्म कर दिया जाएगा. वरना इसे जलाने की रफ्तार धीमी की जाएगी, जिससे इसे नष्ट होने में नौ महीने तक लग सकते हैं.

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स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि भस्मक में कचरे के जलने से निकलने वाले धुएं को चार स्तरों वाले विशेष फिल्टर से गुजारा जाएगा, ताकि आस-पास की वायु प्रदूषित न हो और इस प्रक्रिया के पल-पल का रिकॉर्ड रखा जाएगा. कचरे के भस्म होने और हानिकारक तत्वों से मुक्त होने के बाद इसके ठोस अवशेष (राख) को दो परतों वाली मजबूत ‘मेम्ब्रेन’ (झिल्ली) से ढककर ‘लैंडफिल साइट’ में दफनाया जाएगा, ताकि ये अपशिष्ट किसी भी तरह मिट्टी और पानी के संपर्क में न आ सके. उन्होंने कहा कि कचरे को प्रदेश सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में विशेषज्ञों का दल सुरक्षित तरीके से नष्ट करेगा और इसकी विस्तृत रिपोर्ट उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जाएगी.

स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक तबके का दावा है कि ‘यूनियन कार्बाइड’ के 10 टन कचरे को 2015 में पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में परीक्षण के तौर पर नष्ट किए जाने के बाद आस-पास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए हैं.

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गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक सिंह ने इस दावे को गलत बताते हुए कहा, “2015 के इस परीक्षण की रिपोर्ट और सारी आपत्तियों की जांच के बाद ही पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में ‘यूनियन कार्बाइड’ के कारखाने के 337 टन कचरे को नष्ट करने का फैसला किया गया है. इस इकाई में कचरे को सुरक्षित तरीके से नष्ट करने के सारे इंतजाम हैं और चिंता की कोई भी बात नहीं है.”

रासायनिक कचरे के निपटारे से पीथमपुर के लोग चिंतित

बहरहाल, करीब 1.75 लाख की आबादी वाले पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा जलाने की योजना को लेकर आम लोगों की चिंताएं अब तक दूर नहीं हुई हैं. इस कचरे के पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में जल्द पहुंचने की खबरों के बीच रविवार को बड़ी तादाद में जुटे लोगों ने अपने हाथ पर काली पट्टी बांधी और रैली निकालकर विरोध जताया.

रैली में शामिल लोगों ने अपने हाथों में ‘पीथमपुर को भोपाल नहीं बनने देंगे’ और ‘पीथमपुर बचाओ, जहरीला कचरा हटाओ’ जैसे नारों वाली तख्तियां थाम रखी थीं. प्रदर्शनकारियों ने कहा, “हम चाहते हैं कि यूनियन कार्बाइड कारखाने का कचरा नष्ट किए जाने से पहले वैज्ञानिकों द्वारा पीथमपुर की आबो-हवा की फिर से जांच की जाए. हम अदालत में भी अपना पक्ष रखने की पूरी कोशिश करेंगे.”

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पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में छोटी-बड़ी 1,250 इकाइयां

इंदौर के पड़ोस के धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में छोटी-बड़ी 1,250 इकाइयां हैं. पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने कहा, “हम यूनियन कार्बाइड कारखाने के कचरे को पीथमपुर की औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में जलाने के लिए किए गए इंतजामों से संतुष्ट हैं. इस कचरे के निपटान को कोरी आशंकाओं के आधार पर हौवा नहीं बनाया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों को डरना नहीं चाहिए.” उन्होंने हालांकि कहा कि अगर इस कचरे को नष्ट किए जाने के दौरान पीथमपुर में कोई दुर्घटना होती है, तो उनका संगठन आंदोलन करेगा.




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