Sports

Explainer: परिसीमन से क्‍यों नाराज हैं दक्षिण के राज्‍य? जानिए किस बात का सता रहा है डर



नई दिल्‍ली :

क्या 2026 के बाद होने वाला लोकसभा सीटों का परिसीमन दक्षिण भारतीय राज्यों के साथ अन्याय होगा? क्या इस परिसीमन के बाद संसद में दक्षिण भारत के राज्यों की राजनीतिक ताक़त कम कर दी जाएगी? क्या राजस्व में उनका हिस्सा घटा दिया जाएगा? क्या देश के अहम मसलों और फ़ैसलों पर दक्षिण भारतीय राज्यों की आवाज़ का असर कम हो जाएगा? क्या ये परिसीमन संघवाद पर चोट होगा? क्या लोकतंत्र के लिहाज़ से दक्षिण भारतीय राज्यों के साथ अन्याय होने जा रहा है? ये सारे सवाल इसलिए क्योंकि इन दिनों दक्षिण भारत के राज्यों ख़ासतौर पर तमिलनाडु में कई राजनीतिक दल काफ़ी आक्रोश में हैं और यह मामला लोकसभा सीटों के परिसीमन का है. 

Latest and Breaking News on NDTV

स्‍टालिन जता रहे अन्‍याय की आशंका 

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके और मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ज़ोर शोर से ये मुद्दा उठाकर आशंका जता रहे हैं कि 2026 के बाद होने वाले परिसीमन में दक्षिण भारत के राज्यों के साथ अन्याय हो सकता है. देश की संसद में दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें कम हो सकती हैं, जबकि उत्तर भारत के राज्यों की सीटें बढ़ सकती हैं, जिसका सीधा असर संसद में इन राज्यों की राजनीतिक ताक़त पर पड़ेगा. स्टालिन ने आशंका जताई है कि परिसीमन से दक्षिण भारत के राज्यों को अपनी प्रगतिशील नीतियों के लिए पुरस्कार मिलने के बजाय नुक़सान होने जा रहा है. उनका दावा है कि इन ही प्रगतिशील नीतियों के कारण दक्षिण भारत के राज्य जनसंख्या वृद्धि दर पर काबू पाने में कामयाब रहे हैं. स्टालिन परिसीमन को अन्यायपूर्ण प्रक्रिया बताते हुए लोगों से अपील कर चुके हैं कि वो इसके ख़िलाफ़ खड़े हों क्योंकि ये राज्य के हितों को बचाने की लड़ाई है. यही नहीं वो तो राज्य का हित बचाने के लिए तमिलनाडु के लोगों से अपील कर रहे हैं कि वो और बच्चे पैदा करें. 

परिसीमन के मुद्दे पर विचार करने और साझा रणनीति बनाने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 5 मार्च को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है. 

Latest and Breaking News on NDTV

अन्‍नामलाई ने बताया काल्‍पनिक डर

उधर, बीजेपी ने इस बैठक के बायकॉट का एलान किया है. तमिलनाडु के बीजेपी प्रमुख के अन्नामलाई ने परिसीमन को लेकर जताई गई चिंताओं को काल्पनिक डर बताया है,  लेकिन तमिलनाडु सरकार इससे बिलकुल सहमत नहीं है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और राज्य के खेल मंत्री उदय निधि स्टालिन भी ज़ोर शोर से ये मुद्दा उठा रहे हैं. 

तमिलनाडु के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि दो साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी ने नई संसद का उद्घाटन किया था तो कहा कि सीटें बढ़ने जा रही हैं. 2023 में मेरे ख्याल से अमित शाह ने भी कहा कि दक्षिण भारतीय राज्यों पर निश्चित ही असर पड़ेगा, लेकिन अब जब हमारे नेता तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने मुद्दा उठाया है तो वो अपनी बात बदल रहे हैं. हम चाहते हैं कि वो इसकी पुष्टि करें. लोकसभा की 543 सीटों में से हम 39 सीटों पर प्रतिनिधित्व करते हैं जो क़रीब 7.2% है. हमारी यही मांग है कि अगर वो उत्तर भारत के राज्यों की सीटें बढ़ाएंगे तो तमिलनाडु की सीटें भी बढ़ाई जाएं. 

Latest and Breaking News on NDTV

केंद्रीय गृह मंत्री ने खारिज की आशंकाएं

26 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी तमिलनाडु के कोयंबटूर में परिसीमन को लेकर स्टालिन सरकार और डीएमके द्वारा खड़ी की जा रही आशंकाओं को खारिज करने की कोशिश की. 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदीजी ने निश्चित रूप से आपके सभी हितों की रक्षा करकर डिलिमेटशन में आपका एक भी सीट प्रो रेटा कम न हो और जो बढ़ोतरी होगी उसमें उचित हिस्सा दक्षिण भारत के राज्यों को भी मिलेगा इस पर कोई शंका रखने की जरूरत नहीं है. उन्‍होंने कहा कि तमिलनाडु के सीएम हमेशा मोदी सरकार ने हमेशा तमिलनाडु से अन्याय किया इसकी बात करते हैं. मैं आज सीएम साहब को कहने आया हूं कि अगर आप सही बोलते हैं तो कल मेरी बात का जवाब तमिलनाडु की जनता के सामने दें. 

Latest and Breaking News on NDTV

सिद्धारमैया ने भी उठाए हैं सवाल

लेकिन लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर सिर्फ़ स्टालिन और डीएमके ही सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं. अन्य दक्षिण भारतीय राज्य भी सुर में सुर मिला रहे हैं. कांग्रेस शासित कर्नाटक भी इनमें शामिल है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन को खारिज किया कि दक्षिण भारतीय राज्यों को परिसीमन की प्रक्रिया में नुक़सान नहीं होगा. 

उन्होंने कहा कि ““ऐसा लगता है कि या तो उनके पास उचित जानकारी का अभाव है या फिर कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश सहित दक्षिणी राज्यों को नुकसान पहुंचाने की जानबूझकर मंशा है. शाह का दावा कि दक्षिणी राज्यों को परिसीमन प्रक्रिया में अनुचित व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ेगा या तो सटीक जानकारी की कमी से उपजा प्रतीत होता है या अधिक चिंताजनक बात यह है कि यह कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों को कमजोर करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है.” 

कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने रविवार को देश भर में लोकसभा सीटों के परिसीमन से जुड़ी प्रक्रिया का विरोध किया. आरोप लगाया कि केंद्र सरकार दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें लोकसभा में घटाना चाहती है. डीके शिवकुमार ने कहा कि कांग्रेस परिसीमन पर केंद्र की मोदी सरकार की कोशिशों के ख़िलाफ़ है. 

क्यों होती है परिसीमन की ज़रूरत?

अब सवाल ये है कि लोकसभा सीटों के परिसीमन की ज़रूरत क्यों होती है और दक्षिण भारत के राज्य किस तर्क पर परिसीमन का विरोध कर रहे हैं. दरअसल लोकतंत्र में संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत होती है. इस पंचायत में देश के हर वर्ग, हर समुदाय, हर क्षेत्र का न केवल प्रतिनिधित्व होना चाहिए बल्कि समुचित और न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व होना चाहिए.  ये प्रतिनिधित्व लोकतंत्र और संघवाद के सिद्धांतों पर भी खरा साबित होना चाहिए. 

यही सुनिश्चित करने के लिए संविधान ने हमारी संसद में लोकसभा सीटों के परिसीमन का प्रावधान किया है. हर जनगणना के बाद सीटों का परिसीमन होना चाहिए ताकि संसद में सीटों की संख्या और लोकसभा क्षेत्रों की सीमा नई आबादी के हिसाब से तय हो सके. इसके पीछे विचार ये है कि हर संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में लोगों की आबादी लगभग बराबर हो. इसी विचार को लेकर दक्षिण भारतीय राज्य डरे हुए हैं. 

  1. 1976 तक हर जनगणना के बाद लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं की सीटों को देश भर में नए सिरे से बांटा जाता रहा. 
  2. परिसीमन तीन बार हुआ. 1951 की जनगणना के बाद 1952 में, 1961 की जनगणना के बाद 1963 में और 1971 की जनगणना के बाद 1973 में हुआ. 
  3. लेकिन आपातकाल के दौरान 1976 में संविधान के 42वें संशोधन ने 2001 की जनगणना तक संसद और विधासभा की कुल सीटों को फ्रीज़ कर दिया. यानी तब तक इनकी संख्या में कोई बदलाव नहीं हो सकता था. 
  4. ऐसा इसलिए किया गया ताकि ज़्यादा जनसंख्या वृद्धि दर वाले राज्य परिवार नियोजन की योजनाएं ठीक से लागू कर सकें. 
  5. 2001 की जनगणना के बाद 2002 में संसद और विधानसभाओं की सीटों की सीमाओं को नए सिरे से तय किया गया. 
  6. हालांकि लोकसभा में हर राज्य के प्रतिनिधित्व में कोई बदलाव नहीं हुआ और न ही राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या बदली. यह पहले जैसी ही रहीं. ऐसा मुख्य तौर पर दक्षिण भारत के राज्यों के विरोध के चलते हुआ. 

Latest and Breaking News on NDTV

दक्षिण भारत राज्‍यों का क्‍या है डर? 

  1. दरअसल दक्षिण भारत के राज्यों को डर है कि उत्तर भारत के राज्यों की तेज़ी से बढ़ी आबादी के कारण संसद में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है.
  2. जबकि जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों को बेहतर तरीके से लागू करने वाले दक्षिण भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व घट सकता है. 
  3. उनकी आशंका है कि जिस बात के लिए पुरस्कार दिया जाना चाहिए उसके लिए परिसीमन के ज़रिए उन्हें सज़ा दी जा सकती है.
  4. इससे संसद में उनकी राजनीतिक ताक़त घट सकती है और दक्षिण भारत के राज्यों की आवाज़ कमज़ोर पड़ सकती है. नीति निर्धारण में उत्तर भारत के राज्य हावी हो सकते हैं. 
  5. ये भी दलील दी जा रही है कि आबादी के हिसाब से परिसीमन होगा तो टैक्स में ज़्यादा योगदान देने वाले दक्षिण भारतीय राज्यों को केंद्र से मिलने वाला हिस्सा कम हो सकता है.
  6. आबादी के हिसाब से परिसीमन को दक्षिण भारतीय राज्य संघवाद के भी ख़िलाफ़ बता रहे हैं. 

इस तरह से समझें परिसीमन का असर

अभी तक जितनी बार भी परिसीमन हुआ है, उसमें आबादी और सीट का अनुपात लगभग न्यायपूर्ण ही रहा. इसके लिए हम उत्तर और दक्षिण भारत के पांच राज्यों को देख सकते हैं. 

Latest and Breaking News on NDTV

सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश को लोकसभा में सबसे ज़्यादा 85 सीटें दी गई हैं. 1961 की आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश में प्रति लोकसभा सीट पर आबादी का अनुपात क़रीब सवा आठ लाख था. 

बिहार में ये औसतन साढ़े छह लाख से कुछ ज़्यादा था. राजस्थान में पौने नौ लाख आबादी प्रति लोकसभा सीट, तमिलनाडु में आठ लाख 63 हज़ार प्रति लोकसभा सीट और केरल में क़रीब 8 लाख 90 हज़ार आबादी प्रति सीट. बिहार को थोड़ा छोड़ दें तो इस अनुपात में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं रहा. 

अब 1971 की जनगणना के बाद हुए लोकसभा सीटों के परिसीमन का असर देख लेते हैं. 1971 में उत्तरप्रदेश में प्रति लोकसभा सीट आबादी 9 लाख 86 हज़ार से कुछ ज़्यादा थी. बिहार में क़रीब 7 लाख 80 हज़ार प्रति लोकसभा सीट, राजस्थान में क़रीब 10 लाख 30 हज़ार प्रति लोकसभा सीट, तमिलनाडु में 10 लाख 56 हज़ार की आबादी प्रति लोकसभा सीट और केरल में 10 लाख 67 हज़ार आबादी प्रति लोकसभा सीट रही. अनुपात में अंतर रहा लेकिन बहुत ज़्यादा नहीं. अनुपात एक बराबर हो पाना तो असंभव है. पूरे भारत को देखें तो पिछले परिसीमन में प्रति सीट लगभग 10 लाख 11 हज़ार की आबादी रही. 

लेकिन अगर आबादी के आधार पर अब परिसीमन हुआ तो इसमें काफ़ी बदलाव आ सकता है. लोकसभा की सीटें भी काफ़ी बढ़ जाएंगी और उसमें उत्तर भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व भी काफ़ी बढ़ सकता है. 

Latest and Breaking News on NDTV

इसके लिए 2025 की अनुमानित आबादी को कुछ इस तरह से देख सकते हैं. लोकसभा में अभी उत्तर प्रदेश के कोटे से 85 सीटें हैं. बिहार से 40 सीटें हैं. राजस्थान से 25 सीटें, तमिलनाडु से 39 सीटें और केरल से लोकसभा में 20 सीटें हैं. सभी राज्यों की 2025 में अनुमानित आबादी भी दी गई है. 

ऐसे में अगर सीट और आबादी के पिछले अनुपात को ही बनाए रखा गया तो लोकसभा में यूपी की सीटें 250 हो जाएंगी. बिहार की 169 सीटें हो जाएंगी. राजस्थान की सीटें 82 हो जाएंगी. दक्षिण भारत के राज्यों को देखें तो तमिलनाडु की सीटें 76 हो जाएंगी और केरल की सीटें 36 हो जाएंगी. 

Latest and Breaking News on NDTV

अगर प्रति सीट पर 15 लाख की आबादी रखी जाए तो यूपी की सीटें 168 हो जाएंगी, बिहार की 114 सीटें हो जाएंगी, राजस्थान की 55 सीटें हो जाएंगी, तमिलनाडु की सीटें 52 हो जाएंगी और केरल की सीटें 24 ही रह जाएंगी. साफ़ दिख रहा है कि उत्तर भारत की सीटें दक्षिण भारतीय राज्यों के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा बढ़ जाएंगी जिसकी चिंता ये राज्य जता रहे हैं. 

Latest and Breaking News on NDTV

अगर प्रति सीट पर आबादी का अनुपात 20 लाख रखा गया तो 2025 की अनुमानित आबादी के हिसाब से लोकसभा में यूपी की सीटें 126 हो सकती हैं. बिहार की 85 हो सकती हैं. लोकसभा में राजस्थान की सीटें 41 सीटें हो जाएंगी. इस अनुपात से तमिलनाडु की सीटों में कोई अंतर नहीं आएगा वो 39 ही रहेंगी जबकि केरल की सीटें अभी के 20 से भी घटकर 18 रह जाएंगी.

अगर ऐसा होता है तो दक्षिण भारतीय राज्यों का ये डर सच साबित हो जाएगा कि जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करने का उन्हें नुक़सान हो जाएगा. अब इसी को एक और अनुमान से से देखने की कोशिश करते हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

2026 में परिसीमन हुआ तो एक अरब 42 करोड़ की अनुमानित आबादी के हिसाब से लोकसभा की मौजूदा सदस्य संख्या 543 में 210 सीटें और बढ़ जाएंगी  यानी सीटें 753 हो जाएंगी. 

कैसे प्रभावित होंगे दक्षिण भारत के राज्‍य?

अब ये सीटें दक्षिण भारतीय राज्यों को कैसे प्रभावित करेंगी. ये भी देख लेते हैं. लोकसभा में कर्नाटक की सीटें अभी 28 हैं, ये बढ़कर 36 हो जाएंगी यानी 8 सीटें बढ़ेंगी. 

  1. केरल की लोकसभा में अभी 20 सीटें हैं. ये 2026 की जनगणना के हिसाब से 19 रह जाएंगी यानी 1 सीट का नुक़सान होगा. 
  2. तेलंगाना की लोकसभा में अभी 17 सीटें हैं, ये 2026 की जनगणना के हिसाब से 20 होंगी यानी सिर्फ़ 3 का फ़ायदा होगा. 
  3. आंध्रप्रदेश की लोकसभा में अभी 25 सीटें हैं, जो 2026 की जनगणना के हिसाब से 28 होंगी. यहां भी सिर्फ़ 3 का फ़ायदा होगा. 
  4. तमिलनाडु की अभी लोकसभा में 39 सीटें हैं. 2026 की अनुमानित जनगणना के हिसाब से ये सिर्फ़ 41 हो पाएंगी यानी सिर्फ़ 2 का फ़ायदा होगा. 

आबादी बढ़ाने पर जोर दे रहे दक्षिण भारत के नेता

इसी चिंता का एक असर ये है कि अब दक्षिण भारत के राज्यों के नेता भी अपने यहां आबादी बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं. 

तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि पहले हम कहा करते थे कि अपनी सुविधा से बच्चे पैदा करें. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. अब परिसीमन जैसी नीतियों के कारण जिन्हें केंद्र सरकार लागू करने की योजना बना रही है, हम ये नहीं कह सकते. हमने परिवार नियोजन पर ध्यान दिया और उसमें कामयाब रहे लेकिन एक ऐसी स्थिति में धकेल दिए गए. इसलिए मैं अब नए शादीशुदा जोड़ों से अपील करता हूं कि तुरंत बच्चे पैदा करें और उन्हें अच्छे तमिल नाम दें. 

लोकसभा सीटों का प्रस्तावित परिसीमन एक ऐसा मुद्दा है जो देश में उत्तर और दक्षिण की खाई को और बढ़ा सकता है हालांकि केंद्र सरकार का दावा है कि दक्षिण के राज्यों के साथ कोई अन्याय नहीं होगा.  

डीलिमिटेशन कमीशन सभी को मौका देता है: अमीन

निर्वाचन आयोग के पूर्व संयुक्‍त निदेशक मोहम्‍मद अमीन ने कहा कि परिसीमन के लिए चुनाव आयोग एक डीलिमिटेशन कमीशन नियुक्‍त करता है, जिसका नेतृत्‍व सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज करते हैं. उन्‍होंने बताया कि जब भी यह कमीशन बनता है तो सभी को मौका दिया जाता है और सभी की बात सुनी जाती है. 

उन्‍होंने कहा कि जब भी कमीशन बनेगा तो 10 साल के बाद रिव्‍यू होता है. उन्‍होंने बताया कि कमीशन देखता है कि कितनी रिजर्व सीटें हैं और यह कब तक रिजर्व रहीं और इसकी अब क्‍या स्थिति है और क्‍या इन्‍हें बदलना चाहिए या नहीं. 

साथ ही उन्‍होंने कहा कि जैसे पहाड़ों पर आबादी कम होती है और मैदानों में ज्‍यादा होती है तो उसी के देखते हुए अनुपात के आधार पर सीटों की संख्‍या तय की जाती है. उन्‍होंने कहा कि जिस राज्‍य या जिले में परिसीमन करना होता है, वहां कमीशन दौरा करता है. उन्‍होंने कहा कि पहले से नोटिफिकेशन होता है और जो भी पार्टियां हैं, उनको नोटिस देकर के बुलाया जाता है और उनकी बात सुनी जाती है.  साथ ही वहां के स्‍थानीय नेताओं और हर समाज के लोगों को भी बुलाया जाता है. उनकी बात भी सुनी जाती है और उसके बाद ही कमीशन अपना फैसला देता है. 




Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *