Explainer: एआई द्वारा कला शैलियों की नकल… क्या आप भी मुजरिम नहीं?

Studio Ghibli की स्थापना 1985 में फिल्मकार हायो मियाज़ाकी, इसाओ ताकाहाता और तोशियो सुज़ुकी ने की थी. जापान का ये सबसे प्रतिष्ठित एनिमेशन स्टूडियो रहा है, जिसकी ख़ासियत हाथ से बने एनिमेशन, तस्वीरों या पात्रों की अद्भुत भाव भंगिमाएं, बहुत ही बारीकी से रची गई पृष्ठभूमि और कहानी कहने का बेहद दिलचस्प तरीका है. Studio Ghibli का ये अद्भुत सौंदर्य बोध बीते चार दशकों से लोगों को लुभाता रहा है. ये anime art एक तरह का खुशनुमा माहौल बनाती है, एक तरह की ज़िंदादिली दिखाती है. अगर तनाव भरे चेहरों को भी दिखाया गया हो तो वो आंखों और ज़ेहन पर भारी नहीं पड़ते. इस एनिमे आर्ट में इस्तेमाल रंगों में अलग सी ऊष्मा महसूस होती है, उसके स्केच उसे अलग बनाते हैं. यही वजह है कि Studio Ghibli की इमेज देखते ही पहचानी जाती है और अगर किसी ख़ूबसूरत कहानी में उन्हें पिरो दिया जाता है तो वो अपने आप में एक अद्भुत कृति की तरह सामने आती है. यही Studio Ghibli इफेक्ट है, जिसे ChatGPT के नए संस्करण से धक्का लगा है.
क्या ये कला की चोरी नहीं है?
कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये कला की चोरी नहीं है. क्या ये कलाकारों से उनके हक़ को छीनना नहीं है. उनकी प्रतिभा के साथ अन्याय नहीं है. क्या ये बौद्धिक संपदा अधिकारों को दूसरे तरीके से हथियाना नहीं माना जाएगा. क्या इसके लिए ChatGPT को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. क्या हम सभी लोगों को जिन्होंने भी ChatGPT से गिबली स्टाइल में इमेज बनवाई हैं, इस अपराध के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो गए हैं. ऐसे तमाम सवाल हैं जो कलाकारों की दुनिया में लगातार उठ रहे हैं. इस बीच ChatGPT द्वारा बनाई जा रही इन तस्वीरों पर अभी तक Studio Ghibli के संस्थापक हायो मियाज़ाकी की प्रतिक्रिया नहीं आई है, अलबत्ता उनके करोड़ों प्रशंसक ज़रूर नाराज़ हैं, लेकिन AI आर्ट को लेकर मियाज़ाकी की एक पुरानी प्रतिक्रिया का काफ़ी ज़िक्र हो रहा है.
And yet you leave out a full minute of context, showing that Miyazaki was disgusted by a completely different technology made to generate grotesque body horror. From 8 years ago. https://t.co/HjvW57a1mS pic.twitter.com/oCl8EwkyOp
— Minh Nhat Nguyen (@menhguin) March 27, 2025
क़रीब दशक भर पहले 2016 में हायो मियाज़ाकी को AI द्वारा बनाया गया एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें एक अजीब सा अधबना प्राणी दर्द से कराहता ज़मीन पर रेंग रहा था. मियाज़ाकी से इस वीडियो पर उनकी राय पूछी गई तो मियाज़ाकी ने कहा कि ये जीवन का अपमान है, जिसने भी ये बनाया है उसे नहीं पता कि दर्द क्या होता है. मैं पूरी तरह निराश हूं. अगर आप ऐसी अजीब चीज़ बनाना चाहते हैं तो बना सकते हैं. मैं इस टैक्नोलॉजी को कभी अपने काम में शामिल नहीं करूंगा. मैं ठोस तौर पर महसूस करता हूं कि ये ख़ुद जीवन का ही अपमान है.

उम्मीद करनी चाहिए कला में AI के ऐसे इस्तेमाल को लेकर Studio Ghibli के संस्थापक हायो मियाज़ाकी की राय में इससे अंतर नहीं आया होगा और अब जब उनके स्टूडियो की ख़ास स्टाइल को AI धड़ल्ले से कॉपी कर रहा है तो उनके प्रशंसक भी इससे खुश नहीं हैं. हालांकि चैटजीपीटी की ओर से पिछले मंगलवार को पेश एक टैक्निकल पेपर में कहा गया था कि नया AI टूल व्यक्तिगत कलाकारों की शैली को कॉपी करने में थोड़ा रूढ़ीवादी दृष्टिकोण रखेगा. अगर कोई यूज़र किसी जीवित कलाकार की स्टाइल में इमेज जनरेट करने को कहेगा तो उससे इनकार कर दिया जाएगा, लेकिन स्टूडियो स्टाइल्स को मोटे तौर पर कॉपी करने की इजाज़त बनी रहेगी.
दरअसल किसी कलाकृति को बनाना अपने आप में एक साधना है. कलाकार अपने सारे अनुभवों और भावों को पूरी सूक्ष्मता के साथ कैनवस पर उकेर देता है. अपने पात्रों की हर भाव भंगिमा को बारीकी के साथ उतार देता है. रंगों और स्ट्रोक्स से अपनी पेंटिंग में जीवन भर देता है, लेकिन मशीनी सोच से भरी दुनिया में शायद इन भावों की अहमियत खोती जा रही है. ओपनएआई के प्रमुख सैम ऑल्टमैन ने अब एलान कर दिया है चैट जीपीटी के इस फीचर को यूज़र्स के लिए फ्री कर दिया गया है जो अब तक प्रीमियम यूज़र्स के लिए उपलब्ध थी. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी AI सिस्टम के अंदर किसी ख़ास शैली को तैयार करने की क्षमता आई हो लेकिन ChaptGPT का नया अपडेट इसे नई ऊंचाइयों पर ले गया. बहुत ही आसान तरीके से वो कला शैली को हूबहू कॉपी करने में सक्षम हो गया.
एआई सीख सकता है, इमोशन पैदा नहीं कर सकता: शाह
इस पूरे मुद्दे पर हमने फोटोग्राफ़र, ग्राफिक डिज़ाइनर और फिल्म मेकर पार्थिव शाह से बात की. उन्होंने कहा कि यह हमारे बौद्धिक अधिकारों का हनन है, क्योंकि साधारत तौर पर हमें इसके लिए अनुमति देनी होगी. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर पेंटिंग्स की शैली को कंप्यूटर को सिखाया जाए तो वो तो सीख लेगा. किसी को ज्यादा वक्त लगेगा किसी को कम वक्त लगेगा वो सीख तो लेगा लेकिन मेरा मानना है कि उसके लिए अनुमति लेनी जरूरी है.
शाह ने कहा कि इंसान ही मशीन को सिखाएंगे. मशीनें थोड़ा सा तेज कर लेती हैं और ज्यादा बेहतर है, लेकिन आप अपना चेहरा देखें या मेरी अंगुलिया देंखे तो वो सारी अलग-अलग होती हैं. मेरे दोनों कान अलग हैं, मेरी दोनों आंखें अलग हैं. कंप्यूटर सीधा कर देगा स्ट्रेट कर देगा उससे कोई मजा नहीं आएगा. वो परफेक्ट किसके लिए है, वो मेरे लिए तो परफेक्ट नहीं है.
उन्होंने कहा कि एआई सीख तो लेता है, लेकिन ह्यूमन इमोशन को पैदा नहीं कर सकता है. मुझे इसमें एक ही परेशानी लग रही है कि हम जब ग्रोक में या चैट जीपीटी में अपना फोटोग्राफ अपलोड करते हैं तो हम उसका राइट दे देते हैं. उन्होंने कहा कि जब मैं अपने परिवार का फोटो लगा देता हूं तो वो उनका राइट हो जाता है, वो उसको यूज कर सकते हैं. हम सारे लोग अपलोड करके उन्हें पूरा राइट दे रहे हैं. यह बहुत ही खतरनाक है.
उन्होंने कहा कि कला के मायने ही ये है कि एक इंसान जब कोई कलाकृति बनाता है, कोई कविता लिखता है या कोई उपन्यास लिखता है या कोई चित्र या स्कल्पचर बनाता है तो उसकी उस समय की मनस्थिति क्या है? उसके आसपास क्या हो रहा है? उससे प्रेरणा लेकर या उससे परेशान या उससे हताश होकर के उसमें से कुछ निकलता है. कोई भी पौधा जमीन से निकलता है तो जमीन को फटना पड़ता है. यह चीज सिर्फ इंसान में होती है और वो ही क्रिएट कर सकता है. अभी समय लगेगा कि एआई को कि वह अपने आप कुछ चीजें क्रिएट कर सके. हमें एक स्तर पर घबराना नहीं चाहिए. हालांकि हम लोग इतना प्रभावित हो गए हैं कि हमने इसे यूज करना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि हमें बहुत ही सोचे-समझे तरीके से इसका यूज करना होगा.

फिलहाल तथ्य ये है कि लोग भर भरकर अपनी और अपनों की अलग अलग तस्वीरें इसके बाद इन AI chatbot के हवाले कर रहे हैं और इसे लेकर ही कई जानकार ख़ासतौर पर डिजिटल प्राइवेसी की दिशा में काम कर रहे लोग सतर्क भी कर रहे हैं. उनका दावा है कि इस तरह से ये एआई चैटबॉट अपने एआई की ट्रेनिंग के लिए करोड़ों व्यक्तिगत इमेज हासिल कर रहे हैं. लोगों को मज़ा तो आ रहा है लेकिन उन्हें ये अहसास नहीं है कि वो अपना नया फेशियल डेटा ओपन एआई या ग्रोक 3 को सौंप रहे हैं जो निजता से जुड़ी एक गंभीर चिंता खड़ी करता है.

इसी दिशा में काम करने वाली एक हस्ती लुइज़ा जारोवस्की जो एआई, टेक एंड प्राइवेसी अकेडमी की सह-संस्थापक हैं वो लिखती हैं कि अधिकतर लोगों ने ये अहसास नहीं किया है कि गिबली इफेक्ट न सिर्फ़ एक AI कॉपीराइट विवाद है बल्कि ये हज़ारों लोगों की नई व्यक्तिगत तस्वीरें पाने की OpenAI की पब्लिक रिलेशंस ट्रिक भी है. हज़ारों लोग ख़ुद ही अपनी व्यक्तिगत तस्वीरें और चेहरे चैटजीपीटी पर अपलोड कर रहे हैं. इससे OpenAI को अपने AI मॉडल्स के प्रशिक्षण के लिए हज़ारों नए चेहरे मुफ़्त और आसानी में उपलब्ध हो रहे हैं.
अब ये सवाल भी उठ रहा है कि जब AI किसी भी चीज़ की कॉपी कर सकता है तो कॉपीराइट के मुद्दे का क्या होगा. क्या ये माना जाए कि कॉपीराइट का दौर ख़त्म हो गया या फिर इस नई चुनौती से निपटने के लिए कुछ नया किया जाएगा. AI की ऐसी तमाम क्षमताएं दरअसल ये सवाल खड़ा कर रही हैं कि क्या वो समय आने वाला है जब कई काम, कई नौकरियां AI की भेंट चढ़ जाएंगी. लाखों लोग इसका शिकार बनेंगे. क्या इसी बहाने AI की ऐसी तमाम क्षमताओं की समीक्षा नहीं होनी चाहिए. क्या कोई रेड लाइन, कोई सीमा तय नहीं की जानी चाहिए. ये बहस आने वाले दिनों में और तेज़ होगी.