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Explainer : वन नेशन वन इलेक्शन आखिर कैसे करेगा काम और क्या होंगी चुनौतियां?




नई दिल्ली:

साल 2024 की बात करें तो आम चुनाव के अलावा आठ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हो चुके हैं. इस बीच तमाम उप चुनाव और राज्यों में स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव भी होते रहे. कई बार सरकार की मशीनरी इसी चुनाव प्रक्रिया में व्यस्त रहती है. आए दिन चुनाव आचार संहिता लगने से सरकार की कई ज़रूरी योजनाएं, आपके कई ज़रूरी काम अटक जाते हैं. इस सबका हल क्या है? मोदी सरकार एक देश, एक चुनाव को इसका हल बता रही है. यानी लोकसभाओं और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना. लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा.

मोदी कैबिनेट ने एक देश, एक चुनाव से जुड़े दो संविधान संशोधन विधेयकों को आज मंज़ूरी दे दी. माना जा रहा है कि संसद के इसी सत्र में इन्हें पेश किया जाएगा और फिर व्यापक विचार विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी को सौंप दिया जाएगा. मोदी सरकार ने एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी की सिफ़ारिशों के आधार पर दोनों संशोधन विधेयक तैयार किए हैं.

2 सितंबर, 2023 को बनी रामनाथ कोविंद कमेटी ने 191 दिन तक तमाम राजनीतिक दलों, चुनाव और संविधान से जुड़े विशेषज्ञों, कारोबार और समाज से जुड़े संगठनों से व्यापक विचार विमर्श के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की. इसके लिए 65 बैठकें की गईं. इस सबके आधार पर 21 वॉल्यूम में 15 चैप्टरों की 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई जो इस साल 14 मार्च को राष्ट्रपति को सौंप दी गई. क़रीब तीन महीने पहले मोदी कैबिनेट ने इस उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को स्वीकार किया. और उसी के आधार पर दो संविधान संशोधन विधेयक तैयार किए गए हैं, जिन्हें मोदी कैबिनेट ने मंज़ूरी दी.

15 राजनीतिक दल इसके ख़िलाफ़
एक देश, एक चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों में रज़ामंदी नहीं है. कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार कमेटी के सामने रखें. 32 राजनीतिक दल एक देश, एक चुनाव के समर्थन में हैं और 15 राजनीतिक दल इसके ख़िलाफ़… विरोध करने वाले दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बीएसपी, सीपीएम वगैरह शामिल हैं, लिहाज़ा आज जब कैबिनेट ने दोनों बिलों को मंज़ूरी दी तो इसे लेकर दोनों ही तरह की राय सामने आईं.

राजनीतिक दलों की क्या है राय
साफ़ है कि एक देश, एक चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों में एक राय नहीं है. कई दलों को लगता है कि ये देश के संघीय ढांचे से खिलवाड़ है और इसमें उस पार्टी को ज़्यादा फ़ायदा मिलेगा जो सबसे ताक़तवर होगी. राज्यों में शासन करने वाले क्षेत्रीय दलों को भी ये आशंकाएं हैं. एक देश एक चुनाव का ये पूरा मामला विस्तार से समझने की ज़रूरत है जो कई बार संविधान के अंदर जटिल भाषा में खो सा जाता है. तो आइए इसे सिलसिलेवार आसान भाषा में समझते हैं.

कोविंद कमेटी ने प्रस्ताव रखा है कि एक देश, एक चुनाव की पूरी प्रक्रिया दो चरणों में पूरी कराई जाए. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जाएगा और दूसरा चरण जो 100 दिन के अंदर होगा ,उसमें स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएंगे.

कमेटी के मुताबिक एक देश, एक चुनाव की प्रक्रिया को अमल में लाने के लिए दो संविधान संशोधन बिल लाने होंगे और संविधान में कुल मिलाकर 15 संशोधन करने होंगे. इसके तहत नए प्रावधान जोड़े जाने हैं और मौजूदा प्रावधानों में संशोधन किया जाना है.

पहला बिल चुनावों की मौजूदा व्यवस्था से एक साथ चुनाव कराने की नई व्यवस्था में जाने से जुड़ा होगा. इसके तहत पांच साल की मीयाद पूरी होने से पहले लोकसभा और विधानसभाओं के नए चुनाव एक साथ कराने की बात कही गई है. कोविंद कमेटी के मुताबिक ये बिल पास कराने के लिए संसद सक्षम है और इसके लिए राज्य सरकारों और राज्य विधानसभाओं की मंज़ूरी लेने की ज़रूरत नहीं होगी.

दूसरा बिल नगर निगमों और पंचायतों के चुनाव और केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा एक ही मतदाता सूची तैयार करने से जुड़ा है. इसमें हर मतदाता का ब्योरा होगा और ये भी होगा कि वो किस सीट से वोट डालने का पात्र होगा. कोविंद कमेटी के मुताबिक ये बिल उन विषयों से जुड़ा है जिन पर क़ानून बनाने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की है. इसलिए इस बिल के लिए देश के कम से कम आधे राज्यों की मंज़ूरी और पुष्टि ज़रूरी होगी.

अब कोविंद कमेटी द्वारा प्रस्तावित इन दोनों संविधान संशोधन विधेयकों को और गहराई से समझते हैं. कोविंद कमेटी के मुताबिक पहले बिल के तहत संविधान में एक नए अनुच्छेद 82A को शामिल करने की ज़रूरत होगी. ये उस प्रक्रिया को स्थापित करेगा जिससे देश एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों के सिस्टम की ओर बढ़ेगा. हर नई प्रक्रिया की शुरुआत की एक तारीख़ होती है. रिपोर्ट के मुताबिक अनुच्छेद 82A (1) कहेगा कि आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख़ पर राष्ट्रपति अनुच्छेद 82A को अमल में लाने का नोटिफिकेशन जारी करेंगे. इस तारीख़ को ही आगे तय तारीख़ यानी नियत तिथि कहा जाएगा..

अनुच्छेद 82A(2) कहेगा कि तय तारीख़ के बाद हुए चुनावों के दौरान गठित सभी विधानसभाएं लोकसभा की मीयाद ख़त्म होने के साथ ही भंग हो जाएंगी. अब बहुत अहम है ये समझना कि ये तय तारीख़ क्या हो सकती है. 2024 के लोकसभा चुनाव हो चुके हैं यानी इस लोकसभा के गठन के बाद की पहली बैठक की तारीख़ तो गुज़र चुकी है. अब मान लीजिए कि मौजूदा लोकसभा में एक देश, एक चुनाव से जुड़े दोनों संविधान संशोधन विधेयक पारित हो जाते हैं और ये लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा करती है. तो अगली लोकसभा 2029 में गठित होगी . 2029 की लोकसभा की पहली बैठक की तारीख़ अहम हो जाएगी. वही तय तारीख़ यानी तय तारीख हो सकती है.

अनुच्छेद 82A(2) कह रहा है कि इस तय तारीख़ के बाद हुए चुनावों के दौरान गठित सभी विधानसभाएं लोकसभा की मीयाद ख़त्म होने के साथ ही भंग हो जाएंगी. यानी 2029 के बाद जितनी भी विधानसभाओं के चुनाव होंगे वो 2029 में गठित लोकसभा का कार्यकाल ख़त्म होने के साथ भंग हो जाएंगी. ताकि सबके चुनाव एक साथ कराए जा सकें. मान लीजिए 2029 की लोकसभा अपनी मीयाद पूरी करती है तो 2034 में ही अगले आम चुनाव होंगे और उनके साथ सभी विधानसभाओं के भी चुनाव हो जाएंगे. इसका मतलब ये है कि एक देश, एक चुनाव की प्रक्रिया 2034 में ही शुरू होगी. हालांकि, इस बात पर चर्चा हो सकती है कि अगर 2029 की लोकसभा पहले ही भंग हो गई तो क्या एक देश, एक चुनाव की प्रक्रिया 2034 से पहले ही अमल में आ जाएगी.

कोविंद कमेटी की सिफ़ारिशों के मुताबिक संविधान संशोधन से जुड़ा अनुच्छेद 82A(3) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से जुड़ा है. इसी के साथ अनुच्छेद 82A(4) पर ध्यान देना भी ज़रूरी है जो कहता है अगर निर्वाचन आयोग को लगे कि किसी विधानसभा का चुनाव लोकसभा के साथ नहीं हो सकता तो वो राष्ट्रपति को ये सिफ़ारिश कर सकता है कि वो एक आदेश से घोषित करे कि उस विधानसभा का चुनाव बाद की किसी तारीख़ पर कराया जाए. प्रस्तावित अनुच्छेद 82A(5)) के मुताबिक अगर किसी विधानसभा का चुनाव टाला भी जाता है और वो बाद की तारीख़ में होता है तो भी उसकी अवधि उसी तारीख़ पर ख़त्म होगी जब आम चुनाव में गठित लोकसभा की अवधि ख़त्म होगी.

परिसीमन का भी अधिकार

कोविंद कमेटी के प्रस्ताव ये भी सिफ़ारिश की गई है कि अनुच्छेद 327 में बदलाव किया जाए. ये अनुच्छेद संसद को लोकसभा, राज्य सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने से जुड़े क़ानून बनाने की शक्तियां देता है. साथ ही मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का अधिकार देता है. कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया है कि अनुच्छेद 327 के तहत संसद को एक साथ चुनाव कराने का अधिकार दिया जाए.

अगर लोकसभा या राज्य विधानसभाएं अपनी मीयाद पूरी करने से पहले ही भंग हो जाएं तो क्या होगा… यानी पांच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भंग हो जाएं तो क्या होगा. ये एक बड़ा सवाल है, क्योंकि 1951-52 में हुए पहले आम चुनावों के साथ भी सभी राज्य विधानसभाओं का गठन हुआ था जो 1967 के बाद बिगड़ गया जब राज्य विधानसभाएं पहले ही भंग की जाने लगीं और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगने लगा.

अगर लोकसभा या राज्य विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भंग हो जाती हैं तो बचे हुए समय को असमाप्त अवधि कहा जाएगा. ऐसे में ये तो हो नहीं सकता कि इस दौरान कोई सरकार न रहे. नए सिरे से चुनाव कराने ही होंगे. लेकिन जो सरकार बनेगी वो सिर्फ़ असमाप्त अवधि तक ही काम करेगी और अगले आम चुनाव जब एक साथ होंगे तो उनके चुनाव भी फिर से कराए जाएंगे.

उदाहरण के लिए मान लें कि 2034 से ये क़ानून अमल में आता है. तो लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ होंगे. ऐसे में अगर कोई विधानसभा तीन साल बाद भंग हो गई. तो unexpired term हुआ दो साल/दो साल वैक्यूम तो नहीं रह सकता तो चुनाव कराना पड़ेगा. लेकिन जो सदन का गठन होगा वो unexpired term तक ही होगा और एक साथ चुनाव की अगली तारीख़ 2039 के तय महीने में वो भंग हो जाएगी ताकि फिर सबके साथ उसका चुनाव कराया जा सके.

 2034 में गठित लोकसभा दो साल बाद किसी कारण भंग हो जाती है तो उसका चुनाव फिर होगा लेकिन बचे हुए unexpired term यानी तीन साल के लिए ही. 2039 में उसका भी नया चुनाव कराना होगा. एक देश, एक चुनाव के तहत. सभी संशोधन पहले संविधान संशोधन बिल का हिस्सा होंगे जो एक साथ चुनाव कराने से जुड़े होंगे. कोविंद कमेटी ने जिस दूसरे संविधान संशोधन बिल की सिफ़ारिश की है उसे पास होने के लिए राज्यों की सहमति की ज़रूरत होगी.

अनुच्छेद 368(2) के तहत कोई भी संविधान संशोधन जो राज्य की विषय सूची से जुड़ा हो यानी जिस पर क़ानून बनाने का अधिकार राज्य को होता है, उस संविधान संशोधन को पास होने के लिए देश के कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से मंज़ूरी की ज़रूरत होगी. संविधान संशोधन बिल नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव से जुड़ा है जो राज्यों की विषय सूची में Entry 5 के तहत स्थानीय सरकार विषय में आते हैं. इनके लिए राज्यों की मंज़ूरी की ज़रूरत होगी.

कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया है कि संविधान में एक नया अनुच्छेद 324A शामिल किया जाए. ये अनुच्छेद संसद को नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव से जु//ड़े क़ानून बनाने का अधिकार देगा, ताकि उन्हें आम चुनावों यानी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ ही कराया जा सके. कोविंद कमेटी ने ये भी सिफ़ारिश दी है कि संविधान के अनुच्छेद 325 में नए sub-clauses जोड़े जाएं. ये अनुच्छेद कहता है कि लोकसभा या राज्य विधानसभा के चुनाव से जुड़े हर चुनाव क्षेत्र के लिए एक सामान्य मतदाता सूची हो.

हर चुनाव क्षेत्र के लिए एक ही मतदाता सूची

नये अनुच्छेद 325(2) में कोविंद कमेटी ने प्रस्ताव दिया है कि लोकसभा, राज्य विधानसभा, नगर निकाय या पंचायत से जुड़े हर चुनाव क्षेत्र के लिए एक ही मतदाता सूची हो. यानी प्रस्तावित अनुच्छेद ने पुराने अनुच्छेद में नगर निकाय और पंचायत को भी जोड़ दिया है.  ये मतदाता सूची केंद्रीय निर्वाचन आयोग राज्य निर्वाचन आयोगों के साथ विचार कर तैयार करेगा. नई मतदाता सूची अनुच्छेद 325 के तहत बनी पुरानी मतदाता सूची की जगह लेगी. अगर ये सिफ़ारिश मान ली जाती है तो मतदाता सूची तैयार करने का काम पूरी तरह से केंद्रीय निर्वाचन आयोग के पास आ जाएगा और राज्य निर्वाचन आयोगों की भूमिका पूरी तरह से परामर्श देने की हो जाएगी. 
 




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