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Election Commision Releases All Details Of Poll Bonds With Serial Numbers Submited By SBI – EC ने जारी किया चुनावी बॉन्ड के नंबरों समेत सारा डेटा, कुछ घंटे पहले SBI ने किया था सब्मिट



पिछली बार इनकी जानकारी नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने SBI के चेयरमैन को फटकार लगाई थी. 18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने SBI को आदेश दिया था कि 21 मार्च की शाम 5 बजे तक हर बॉन्ड का अल्फा-न्यूमेरिक नंबर और सीरियल नंबर, बॉन्ड्स की खरीद की तारीख और रकम समेत सारी इंफॉर्मेशन चुनाव आयोग को दें. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने इसके बाद गुरुवार दोपहर 3.30 बजे ही कोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर दिया.

SC की सख्ती के बाद चुनावी बॉन्ड के नंबरों समेत SBI ने चुनाव आयोग को दिया सारा डेटा

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में SBI ने बताया कि बैंक अकाउंट नंबर और KYC डिटेल के अलावा कोई भी डिटेल नहीं रोकी गई है. SBI ने बताया कि सुरक्षा कारणों के चलते डोनेशन देने वालों और राजनीतिक दलों के KYC नंबर पब्लिक नहीं किए गए हैं.

14 मार्च को SBI ने जारी की थी दो पेज की लिस्ट

चुनाव आयोग ने इससे पहले 14 मार्च को 763 पेज की दो लिस्ट में अप्रैल 2019 के बाद खरीदे या कैश किए गए बॉन्ड की जानकारी​​ वेबसाइट पर ​​​​​अपलोड की थी. एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी, जबकि दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर SBI ने 14 मार्च को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी आयोग को दी थी.

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चंदा लेने वाली टॉप 10 पार्टी कौन?

लिस्ट के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड्स से चंदा लेने वाली पार्टियों में भारतीय जनता पार्टी टॉप पर है. बीजेपी को 2018 से अब तक 6060 करोड़ चंदा मिला. इसके बाद टीएमसी का नंबर आता है, ममता बनर्जी की पार्टी को 1609 करोड़ का चंदा मिला. तीसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी है, जिसे 1421 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिला. इसके बाद बीआरएस (1214 करोड़), बीजेडी (775 करोड़), डीएमके (639 करोड़), वाईआरएस कांग्रेस (337 करोड़), तेलुगू देशम पार्टी ( 218 करोड़), शिवसेना (158 करोड़) और आरजेडी (72.50 करोड़ रुपये) का चंदा मिला.

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर लगाई थी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘ये स्कीम असंवैधानिक है. बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है. यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. अब 13 मार्च को पता चलेगा किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया.’

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया जाता है, क्योंकि इससे लोगों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन होता है. इसमें देने के बदले कुछ लेने की गलत प्रक्रिया पनप सकती है. चुनावी चंदा देने में लेने वाला राजनीतिक दल और फंडिंग करने वाला, दो पार्टियां शामिल होती हैं. ये राजनीतिक दल को सपोर्ट करने के लिए होता है या फिर कंट्रीब्यूशन के बदले कुछ पाने की चाहत हो सकती है.” 

ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं

शीर्ष अदालत ने कहा, “राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं. यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है.”

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