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Delhi High Court reject release life imprisonment Prisoner on parole for making relationship with live-in partner


Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार (9 मई) को कहा कि भारत का कानून और जेल का नियम किसी कैदी को वैवाहिक संबंध बनाने के लिए पैरोल की अनुमति इजाजत नहीं देता. वह भी ‘लिव-इन पार्टनर’ के साथ. अदालत ने कहा कि कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि अपने शादी शुदा पत्नी या ‘लिव-इन पार्टनर’ (जो खुद भी एक दोषी है) से संतान पैदा करना कानून एवं जेल नियमों के दायरे में उसका मूल अधिकार है. जबकि ‘लिव-इन पार्टनर’ का जीवनसाथी जीवित है और उनके बच्चे भी हैं.

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा के अनुसार, ‘‘इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि मौजूदा कानून किसी को कानूनन शादी वाली पत्नी के साथ संबंध बनाने के लिए पैरोल प्रदान करने की अनुमति नहीं देता है. लिव-इन पार्टनर को तो छोड़ ही दीजिए.’’ 

पैरोल पर नहीं कर सकते ये काम

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी ‘लिव-इन पार्टनर’ के साथ यौन संबंध बनाकर अपने वैवाहिक संबंध को पूरा करने और सामाजिक संबंध बरकरार रखने के लिए पैरोल पर रिहा करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की. इस मामले में याची जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा है. उसने शुरुआत में यह खुलासा नहीं किया था कि महिला उसकी ‘लिव-इन पार्टनर’ है और वह उसकी कानूनन विवाहित पत्नी नहीं है या पहले ही उसकी (व्यक्ति की) किसी और से शादी हो चुकी है.

पहली पत्नी से हैं आरोपी के तीन बच्चे

महिला ने अपनी याचिका में खुद को उसकी पत्नी बताया है और व्यक्ति ने भी यह खुलासा नहीं किया कि वह अपनी पहली पत्नी से कानूनन अलग नहीं हुआ है, जिसके साथ उसके तीन बच्चे हैं. अदालत ने कहा, ‘‘भारत में कानून और दिल्ली जेल नियम वैवाहिक संबंध बनाने के लिए पैरोल की अनुमति नहीं देते हैं, वह भी ‘लिव-इन पार्टनर’ के साथ.’’ 

इस दायरे में नहीं आती लिव इन पार्टनर

अदालत ने कहा कि दोषी की ‘लिव-इन पार्टनर’, जिसे ‘‘पत्नी’’ या ‘‘जीवनसाथी’’ के रूप में कानूनी मान्यता नहीं प्राप्त है, वह दिल्ली जेल नियमों के तहत ‘परिवार’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है. 

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