delhi high court article 21 fundamental right speedy trial can not be barred by any law including macoca ann
Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम यानी मकोका (MCOCA) जैसे कड़े कानून के तहत दर्ज एक मामले में कथित गैंगस्टर अरुण को नियमित जमानत देते हुए बड़ा संदेश दिया है. तेज़ ट्रायल का अधिकार कोई दिखावटी सुरक्षा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की असली पहचान है. अरुण, जिस पर कुख्यात मनोज मोरखेड़ी गिरोह का सक्रिय सदस्य होने का आरोप है, साल 2016 से जेल में बंद है. कोर्ट ने पाया कि इतने सालों बाद भी ट्रायल आधा भी पूरा नहीं हुआ 60 में से सिर्फ 35 गवाहों की गवाही ही हो सकी है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कही अहम बातें
दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाला तेज ट्रायल का अधिकार, किसी विशेष कानून की कठोरता के सामने कुचला नहीं जा सकता. दिल्ली पुलिस ने जमानत का कड़ा विरोध करते हुए अरुण को कट्टर अपराधी बताया और दावा किया कि अगर रिहा हुआ, तो गवाहों को धमकाएगा और न्याय प्रक्रिया को बाधित करेगा. लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए पुलिस की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया कि जब मामला सालों तक लटकता रहे, तो व्यक्ति की स्वतंत्रता प्राथमिक बन जाती है.
दिल्ली HC ने अपने आदेश में क्या कहा?
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां तेज़ ट्रायल के अधिकार का निरंतर और स्पष्ट उल्लंघन हो रहा हो, वहां संवैधानिक अदालतें केवल सक्षम नहीं, बल्कि बाध्य हैं हस्तक्षेप करने के लिए. कोर्ट ने यह भी बताया कि अरुण को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से एक अन्य मामले में 4 हफ्ते की पैरोल मिली थी, लेकिन मौजूदा मुकदमे के चलते वह उसका लाभ नहीं उठा सका. यह स्थिति न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत बताई गई.
अदालत ने दिया सविधान के मूल सिद्धांतों का हवाला
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा जब अदालत की ओर से दी गई सीमित स्वतंत्रता भी किसी अन्य लंबित मामले की वजह से बाधित हो जाए, तो यह समाज और न्याय दोनों के लिए हानिकारक है. फिलहाल कोर्ट ने अरुण को 50 हजार रुपये के निजी मुचलके और समान राशि की एक जमानत के साथ नियमित जमानत दे दी.