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| Delhi Aiims News:


Delhi News: दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) चिकित्सा जगत में देश का अग्रणी अस्पताल है. यह भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में बेहतरीन चिकित्सा व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है. यही वजह है कि यहां देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों से भी मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. एम्स प्रशासन भी लगातार मरीजों को बेहतर चिकित्सा और सुविधा उपलब्ध करावने के दिशा में प्रयासरत हो कर खुद को उन्नत करता रहता है.

इसी कड़ी में अब एम्स प्रशासन ने दुर्घटना और अन्य कारणों से क्षतिग्रस्त हुए मरीजों के अंगों को पूर्व की भांति सक्षम बनाने की दिशा में एक अहम पहल करते हुए मरीजों के लिए इम्प्लांट्स बनाने की दिशा में कार्य की शुरुआत की है. इससे दिल्ली ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी सर्जिकल इलाज के लिए एम्स आने वाले मरीजों को बड़ी राहत मिल जाएगी.

मेडिकल इम्प्लांट्स का होता है अहम योगदान

दुर्घटना या किसी अन्य कारण से क्षतिग्रस्त अंगों को पहले की तरह काम करने के लिए सक्षम बनाने में मेडिकल इम्प्लांट्स का अहम योगदान होता है, लेकिन जब ये इम्प्लांट्स (घुटना, कूल्हा, रीढ़ की हड्डी और जबड़ा आदि) मरीज की जरूरत के अनुसार फिट नहीं हो पाते या समय पर तैयार नहीं हो पाते हैं तो मरीजों के इलाज में अनावश्यक देरी होती है. ऐसी ही तमाम समस्याओं के समाधान के लिए दिल्ली एम्स ने अपने फैकल्टी डॉक्टरों को 3D (थ्री डायमेंशनल) तकनीक से इम्प्लांट्स निर्माण में कुशल बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत की है.

प्रोफेसर-डॉक्टरों को दी जा रही ऑनलाइन ट्रेनिंग

ट्रॉमा सर्जरी और क्रिटिकल केयर डिवीजन की प्रोफेसर डॉ. सुषमा सागर ने बताया कि 3D तकनीक के प्रशिक्षण के लिए एम्स ने जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर की चौथी मंजिल पर सर्जिकल इनोवेशन लेबोरेटरी बनाई है. इस अत्याधुनिक लैब में ट्रॉमा सेंटर सर्जरी विभाग, आर्थोपेडिक विभाग और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉक्टरों को 3D मॉडलिंग, प्रिंटिंग तकनीक और इम्प्लांट्स डिजाइन में सहायक सॉफ्टवेयर से इम्प्लांट्स बनाने की ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जा रही है. इससे वह इम्प्लांट प्रत्यारोपित करने से पहले मरीज की वास्तविक जरूरत के मुताबिक डिजाइनिंग भी कर सकेंगे. इस ट्रेनिंग में जल्द ही न्यूरो सर्जरी विभाग को भी शामिल किया जाएगा.

इम्प्लांट की डिजाइनिंग के लिए तकनीकी प्रशिक्षण

सुषमा सागर ने बताया कि प्रोफेसर डॉक्टरों को मरीज के CT स्कैन की रिपोर्ट को सीधे लैब के कंप्यूटर तक पहुंचाने से लेकर मरीज की जरूरत के मुताबिक इम्प्लांट की डिजाइनिंग करने और फाइबर से इम्प्लांट बनाने का तकनीकी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इससे वह लैब में 3D प्रिंटर और फाइबर के माध्यम से इम्प्लांट्स बनाने में सक्षम हो सकेंगे. साथ ही वे अपने जूनियर डॉक्टरों को भी 3D इम्प्लांट बनाने की प्रक्रिया से जानकर बना सकेंगे. 

फिटिंग के मुताबिक आसानी से बनवा सकेंगे इम्प्लांट

डॉ सागर के मुताबिक 3D तकनीक का सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि तमाम पेशेंट स्पेसिफिक इम्प्लांट्स को सर्जन स्पेसिफिक इम्प्लांट्स के तौर पर विकसित किया जा सकेगा. इससे डॉक्टरों की कार्य क्षमता में इजाफा होगा और वह इम्प्लांट बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर से मरीज की जरुरत और फिटिंग के मुताबिक आसानी से इम्प्लांट बनवा सकेंगे.

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