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CJI DY Chandrachud Says World Confronted With Questions About Ethical Treatment Of AI In Present Digital Age


CJI DY Chandrachud on AI Aspects: भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने शनिवार (25 नवंबर) को कहा कि वर्तमान डिजिटल युग में लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) के कई आकर्षक पहलुओं का सामना करना पड़ रहा है. हमारे सामने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में इन तकनीकों के नैतिक इस्तेमाल को लेकर मौलिक प्रश्न हैं. 

न्‍यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा के मुताब‍िक, सीजेआई ने यह भी कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और व्यक्तित्व के बीच एक जटिल अंतरसंबंध है जहां हम खुद को अज्ञात क्षेत्रों में नेविगेट करते हुए पाते हैं, जो दार्शनिक प्रतिबिंब और व्यावहारिक विचार दोनों की मांग करते हैं. अपने वक्‍तव्‍य में उन्‍होंने मानव रोबोट सोफिया का उदाहरण भी द‍िया ज‍िसको सऊदी अरब में नागरिकता प्रदान की गई थी. 

लॉ एसोसिएशन के सम्‍मेलन में सीजेआई ने कई व‍िषयों पर रखीं बातें 

प्रधान न्यायाधीश ने  कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान और सरकार की ओर से दी गई मान्यता उसे मिलने वाले संसाधनों और शिकायतें करने एवं अपने अधिकारों की मांग करने की उसकी क्षमताओं में अहम भूमिका निभाती है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने 36वें ‘द लॉ एसोसिएशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक’ (LAWASIA) सम्मेलन के पूर्ण सत्र को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए ‘ पहचान, व्यक्ति और सरकार – स्वतंत्रता के नए रास्ते’ विषय पर बात की. 

‘जीवन की दिशा बदलने की क्षमता देती है आजादी’  

एलएडब्ल्यूएएसआई, वकीलों, न्यायाधीशों, न्यायविदों और कानूनी संगठनों का एक क्षेत्रीय संघ है जो एशिया प्रशांत कानूनी प्रगति के हितों और चिंताओं की वकालत करता है. उन्‍होंने कहा कि आजादी स्वयं के लिए निर्णय लेने और अपने जीवन की दिशा बदलने की क्षमता देती है. 

पहचान व स्वतंत्रता के बीच संबंध समझाने का कार्य अधूरा  
 
उन्होंने कहा क‍ि सरकार और स्वतंत्रता के बीच संबंध को व्यापक रूप से समझा गया है लेकिन पहचान और स्वतंत्रता के बीच संबंध स्थापित करने और समझाने का कार्य अभी अधूरा है. 

‘सरकार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते’ 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि स्वतंत्रता को परंपरागत रूप से किसी व्यक्ति के चयन करने के अधिकार में सरकार का हस्तक्षेप नहीं करने के तौर पर समझा जाता है लेकिन आधुनिक विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सामाजिक पूर्वाग्रहों और पदानुक्रमों को बनाए रखने में सरकार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 

उन्होंने कहा, ”वास्तव में, चाहे सरकार हस्तक्षेप न करे लेकिन वह सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत समुदायों को उन समुदायों पर प्रभुत्व स्थापित करने की स्वत: अनुमति दे देती है जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं.” 

‘हाशिए पर रहने वालों को करना पड़ेगा उत्पीड़न का सामना’ 

सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि जो लोग अपनी जाति, नस्ल, धर्म या लिंग के कारण हाशिए पर हैं, उन्हें पारंपरिक, उदारवादी व्यवस्था में हमेशा उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा और यह सामाजिक रूप से प्रभुत्वशाली लोगों को सशक्त बनाता है. 

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