CJI DY Chandrachud says Courts should not wait for judgement till Citizen die In Gujarat
CJI On Judgment: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामलों के स्थगन को लेकर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि देश की न्यायिक प्रणाली में ‘स्थगन का चलन’ वादियों की पीड़ा को बढ़ाता है और अदालतों को मामलों पर फैसले सुनाने के लिए नागरिकों के मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए. उन्होंने यह भी चिंता जताई कि ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद है’ का दीर्घकालिक सिद्धांत कमजोर हो रहा है, क्योंकि जिला अदालतें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों से निपटने में झिझक रही हैं.
गुजरात के कच्छ जिले के धोर्डो में अखिल भारतीय जिला न्यायाधीशों के सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि लंबित मामले न्याय के कुशल प्रशासन के लिए ‘एक गंभीर चुनौती’ पेश करते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘एक बड़ा मुद्दा स्थगन का चलन है. कार्यवाही में देरी के लिए बार-बार अनुरोध करने के इस चलन का हमारी कानून प्रणाली की दक्षता और अखंडता पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है.’’
उदाहरण देकर समझाया
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘स्थगन के चलन के बारे में आम लोगों का मानना है कि यह न्यायिक प्रणाली का हिस्सा बन गया है. यह वादियों की पीड़ा को बढ़ा सकती है और मामलों के लंबित रहने के चक्र को कायम रख सकती है.’’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक किसान के कानूनी उत्तराधिकारियों के कानूनी कार्यवाही में उलझने के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा, ‘‘हमें अपने नागरिकों के मामले के फैसले के लिए उनके मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए.’’
उन्होंने कहा कि मामलों के लंबित पड़ने की समस्या को दूर करने के लिए प्रणालीगत सुधार, प्रक्रियात्मक सुधार और प्रौद्योगिकी के उपयोग को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालती प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, मामले के निस्तारण में तेजी लाने और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देने में जिला न्यायाधीश की भूमिका महत्वपूर्ण है.
‘जिला अदालतों को ध्यान देने की जरूरत’
उन्होंने कहा कि ऐसी आशंका बढ़ रही है कि जिला अदालतें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों पर विचार करने को अनिच्छुक होती जा रही हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘लंबे समय से मौजूद यह सिद्धांत कि ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद है’ कमजोर पड़ता दिख रहा है, जैसा कि निचली अदालतों की ओर से जमानत याचिका खारिज किये जाने के खिलाफ अपील के रूप में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने वाले मामलों की बढ़ती संख्या से पता चलता है.’’
उन्होंने कहा कि जिला न्यायपालिका, न्याय प्रणाली और स्थानीय समुदायों के बीच एक प्राथमिक मंच के रूप में काम करती है और इसे लगातार अपने कामकाज को बेहतर बनाना चाहिए ताकि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बना रहे. उन्होंने यह भी कहा कि जिला न्यायपालिका में न्यायाधीशों को अदालती कार्यवाही और निर्णयों में उपयोग की जाने वाली भाषा के प्रति सचेत रहना चाहिए.
‘मीडिया की आलोचना से प्रभावित न हों’
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को सोशल मीडिया पर आलोचना और टिप्पणी से बेवजह प्रभावित नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘एक न्यायाधीश की भूमिका बाहरी दबाव या सार्वजनिक राय से प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष रूप से न्याय प्रदान करने की है.’’
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