CJI DY Chandrachud Rebukes Lawyer For Talking On Mobile Phone Inside Courtroom
CJI DY Chandrachud Remarks: प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार (16 अक्टूबर) को उनके कोर्ट रूम के भीतर एक वकील की ओर से मोबाइल फोन पर बात करने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उसे फटकार लगाई.
सीजेआई उस वक्त जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के साथ बेंच संभाल रहे थे. उन्होंने अदालत के कर्मचारियों को वकील का मोबाइल फोन जब्त करने का आदेश दिया.
क्या कुछ कहा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने?
सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकील से कहा, ”ये क्या मार्केट है जो आप फोन पर बात कर रहे हैं? इनका मोबाइल ले लो.” सीजेआई को कार्यवाही रोककर अदालत के कक्ष के भीतर फोन पर बात करने वाले वकील से सीधे बात करनी पड़ी.
सीजेआई ने वकील को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, ”भविष्य में सावधान रहें. जज सब कुछ देखते हैं. हम भले ही कागज देख रहे हों लेकिन हमारी नजर हर जगह है.”
वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम दिए जाने को चुनौती देने वाली एक याचिका सोमवार को खारिज कर दी और कहा कि पदनाम देने की प्रणाली मनमानी नहीं है.
जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई वाली बेंच ने अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्पाडा और सात अन्य की ओर से दाखिल एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि रिट याचिका ‘दुस्साहसी है’ खासतौर पर नेदुम्पाडा की और ‘पूर्व के उनके ऐसे ही कार्य की निरंतरता है.’
जस्टिस कौल ने कहा, ‘‘हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं है कि रिट याचिका दुस्साहसी है, खासतौर पर याचिकाकर्ता संख्या एक (नेदुम्पाडा) की, और यह ‘पूर्व के उनके ऐसे ही कार्य की निरंतरता है.’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत की ओर से पहले पारित निर्णयों और आदेशों का याचिकाकर्ता नंबर एक पर आत्मनिरीक्षण को लकर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
याचिकाकर्ताओं ने क्या दावा किया था?
याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 16 और 23 (5) को चुनौती देते हुए दावा किया है कि ये ‘‘वकीलों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं के दो वर्ग बनाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक व्यवहार में अकल्पनीय असमानताएं पैदा हुई हैं, जिस पर संसद ने निश्चित रूप से विचार नहीं किया या अनुमान नहीं लगाया.’’
अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 वरिष्ठ और अन्य अधिवक्ताओं से संबंधित है, धारा 23 (5) वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अन्य वकीलों की तुलना में अधिकार से संबंधित हैं.
याचिका में दावा किया गया है कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करना, ‘‘विशेष अधिकारों, विशेष दर्जा वाले अधिवक्ताओं का एक विशेष वर्ग बनाना, जो सामान्य अधिवक्ताओं के लिए उपलब्ध नहीं हैं, असंवैधानिक है. यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के आदेश का उल्लंघन है.”
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