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Christ Church of Shimla is the second oldest church in Asia ann


Christ Church In Shimla: देश भर में आज क्रिसमस की धूम है. शिमला में बने एशिया के दूसरे सबसे पुराने चर्च में भी लोगों की भारी भीड़ लगी हुई है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी और पहाड़ों की रानी शिमला में सैलानियों की भारी भीड़ लगी हुई है. क्रिसमस पर सैलानी दूर-दूर से यहां जश्न मनाने के लिए पहुंचे हैं. हर साल क्रिसमस और नए साल के मौके पर यहां लोगों की भारी भीड़ लगती है.

साल 2023 में क्रिसमस के मौके पर यहां शिमला के रिज मैदान पर करीब 25 हजार लोग पहुंचे थे. इस बार भी इसी तरह सैलानियों की आने की उम्मीद है. शिमला में बने एशिया के दूसरे सबसे पुराने चर्च में पहुंचकर लोग क्रिसमस मना रहे हैं. 

क्या है शिमला क्राइस्ट चर्च का इतिहास?

शिमला का क्राइस्ट चर्च एशिया का दूसरा सबसे पुराना चर्च है. 9 सितंबर, 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी थी. साल 1857 में इसका काम पूरा हो गया. इस चर्च को नियो गोथिक शैली में बनाया गया है. चर्च का सीजन कर्नल जे.टी. बालू ने तैयार किया था. शिमला के सर्द मौसम में 10 जनवरी, 1857 को बनकर तैयार हुए इस चर्च के निर्माण में करीब 50 हजार रुपये खर्च आया था.

साल 1961 में चर्च के इमारत को हुआ था नुकसान

रिज मैदान पर बना यह शिमला का पहला चर्च था. इससे पहले ईसाई धर्म को मानने वाले अंग्रेज मॉलरोड पर टेलीग्राफ ऑफिस के नजदीक नॉर्थ बुक टेरेस पर प्रार्थना किया करते थे. आजादी के बाद साल 1961 में हुई भारी बर्फबारी की वजह से ऐतिहासिक चर्च की इमारत को काफी नुकसान हुआ था. भारी बर्फबारी की वजह से इमारत के साथ बने पिनेकल ध्वस्त हो गए थे.

मौजूदा वक्त में शिमला का क्राइस्ट चर्च यहां का लैंडमार्क है. देश-विदेश से यहां पहुंचने वाले पर्यटक चर्च देखकर ही रिज मैदान की पहचान करते हैं.

क्राइस्ट चर्च में है इंग्लैंड से लाई गई पुरानी बेल

शिमला के क्राइस्ट चर्च में 150 साल से ज्यादा पुरानी एक बेल भी है. ब्रिटिश शासनकाल के दौरान यह बेल इंग्लैंड से लाई गई थी. यह कोई साधारण बेल नहीं, बल्कि बेल मेटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से हैं. इन पाइप पर ए, बी, सी, डी, ई और एफ तक सुर हैं, जो संगीत के ‘सा रे ग म प’ की तरह ध्वनि करते हैं. इन पाइप पर हैमर यानी हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है. यह रस्सी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से खींचकर बजाई जाती है.

यह बेल हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले बजाई जाती है. इसके अलावा क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जाता है.

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