Chhattisgarh Assembly Election Bastar Chitrakoot Assembly Political Equations History Ann
Chhattisgarh Assembly Election: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर संभाग में कुल 12 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें एक मात्र सामान्य सीट है ,जबकि अन्य 11 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है, इन आदिवासी सीटों में से एक बस्तर जिले का चित्रकोट विधानसभा संभाग के सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा में से एक है, 2003 में यह विधानसभा केशलूर विधानसभा के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2008 में इसे चित्रकोट विधानसभा किया गया, आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने की वजह से यहां के लोग वनोपज और खेती किसानी पर आश्रित हैं.
हालांकि 2008 में चित्रकूट विधानसभा तत्कालीन बीजेपी सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा सीट बन गया, क्योंकि यहां टाटा ने स्टील प्लांट की नींव रखी थी और इसके लिए सैकड़ों किसानों से उनकी जमीन भी अधिग्रहण कर ली गयी थी. कुछ किसानों को मुआवजा भी मिल गया, लेकिन समय बीतने के साथ साथ टाटा ने यहां किसी कारणवश स्टील प्लांट स्थापित नहीं किया, जिससे किसानों का जमीन अधिग्रहण होने की वजह से उनके जमीन में खेती किसानी करना भी मुश्किल हो गया. जिसके बाद 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने किसानों की जमीन वापसी का मुद्दा उठाया और कांग्रेस की सरकार बनने पर सभी प्रभावित किसानों की जमीन टाटा से वापस दिलाने का वादा किया.
कांग्रेसियों का गढ़ माना जाता है चित्रकोट विधानसभा
जिसके बाद कांग्रेस सत्ता में आने के साथ किसानों को जमीन वापस हो गई. तब से यह सीट राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों में से एक हो गया. चित्रकूट विधानसभा के अंतर्गत लोहंडीगुड़ा, बास्तानार और तोकापाल तीन विकासखंड है. इसी विधानसभा क्षेत्र में बस्तर के सांसद दीपक बैज का भी निवास है. इस वजह से इस विधानसभा को कांग्रेसियों का गढ़ माना जाता है. वहीं पूरे देश में मिनी नियाग्रा के नाम से मशहूर चित्रकोट वाटरफॉल भी इसी विधानसभा क्षेत्र में स्थित है. पर्यटन के क्षेत्र में हर साल राज्य सरकार को लाखों रुपए की कमाई यहां से होती है.
इसके अलावा इस विधानसभा का पुरातात्विक महत्व है. वनवास के दौरान भगवान राम इसी चित्रकूट से होते हुए तेलंगाना के भद्राचलम के लिए निकले थे. इस वजह से राज्य सरकार ने चित्रकूट विधानसभा के 2 प्रसिद्ध जगहों को राम वन गमन पथ में शामिल किया है. यहां प्राचीन काल के मंदिर देवगुड़ी और आदिवासी संस्कृति, परंपरा की झलक देखने को मिलती है, पर्यटन के क्षेत्र में चित्रकूट विधानसभा बस्तर संभाग के सबसे प्रमुख विधानसभा में माना जाता है.
राजनीतिक समीकरण
बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार और जानकार राजेंद्र बाजपाई बताते हैं कि राजनीतिक दृष्टिकोण से चित्रकूट विधानसभा कांग्रेसियों का गढ़ रहा है. इस विधानसभा क्षेत्र में दो बार के विधायक रहे और वर्तमान में सांसद दीपक बैज की पकड़ काफी मजबूत है, युवा नेता होने की वजह से इस विधानसभा क्षेत्र में काफी लोकप्रिय नेता माने जाते हैं, पिछले 4 विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो साल 2003 के विधानसभा चुनाव में चित्रकोट विधानसभा सीट से कांग्रेस से प्रतिभा शाह चुनाव मैदान में थी जबकि बीजेपी से लछुराम कश्यप को टिकट मिला. इस चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी को भारी मतों से जीत मिली, जिसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से बैदूराम कश्यप और कांग्रेस से एक बार फिर प्रतिभा शाह को टिकट दिया गया.
इस चुनाव में भी बीजेपी के प्रत्याशी बैदूराम कश्यप ने 10 हजार वोटों के अंतर से चुनाव में जीत दर्ज की. वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से युवा नेता दीपक बैज को मौका मिला और बीजेपी से बैदूराम कश्यप को दोबारा टिकट दिया गया. लेकिन इस चुनाव में बैदूराम कश्यप को हार का सामना करना पड़ा. दीपक बैज ने बैदूराम कश्यप को 12 हजार वोटों के अंतर से हराया. इसके अलावा 2018 के चुनाव में कांग्रेस से एक बार फिर दीपक बैज को चुनावी मैदान में उतारा गया. बीजेपी से बैदूराम कश्यप के भाई लच्छूराम कश्यप को टिकट दिया गया. 2018 के चुनाव में भी कांग्रेस के दीपक बैज ने करीब 17 हजार वोटों के अंतर से लछुराम कश्यप को चुनाव हराया.
हालांकि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में चित्रकूट विधानसभा के विधायक दीपक बैज को बस्तर सांसद के चुनाव के लिए कांग्रेस से टिकट दिया गया. बीजेपी से बैदूराम कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा गया लेकिन इस चुनाव में भी कांग्रेस के प्रत्याशी रहे दीपक बैज को जीत हासिल हुई. इस विधानसभा के विधायक दीपक बैज बस्तर सांसद का चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई. 2019 में हुए विधानसभा उपचुनाव में कुल 7 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे, कांग्रेस से ग्रामीण जिला अध्यक्ष रहे राजमन बेंजाम को टिकट मिला और बीजेपी से लच्छूराम कश्यप को टिकट दिया गया, लेकिन उपचुनाव में भी बीजेपी को हार मिली है और राजमन बेंजाम 17 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए और चित्रकोट विधानसभा से विधायक बने. इस प्रकार 2003 से 2018 तक हुए विधानसभा चुनाव में दो बार बीजेपी को और दो बार कांग्रेस को इस सीट में जीत हासिल हुई.
स्थानीय मुद्दे
1. स्थानीय मुद्दे की बात की जाए तो चित्रकूट विधानसभा में बेरोजगारी सबसे अहम मुद्दा है, इस विधानसभा क्षेत्र में एक भी उद्योग स्थापित नहीं होने के चलते यहां के युवा और ग्रामीण वनोपज और खेती किसानी पर पूरी तरह से आश्रित हैं, रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं कराने के चलते आज भी यहां के युवा दोनों ही सरकार और विधायकों को कोसते रहे हैं. टाटा के आने से जरूर एक उम्मीद जगी थी कि स्थानीय लोगों को इस टाटा स्टील प्लांट में नौकरी मिलेगी, लेकिन टाटा ने स्टील प्लांट स्थापित नहीं की और किसानों की जमीन वापस हो गयी , जिसके बाद से यहां के ग्रामीणों का मुख्य आय का साधन खेती किसानी ही बन गया.
2. बस्तर विधानसभा की तरह ही चित्रकोट विधानसभा में भी पेयजल की सबसे बड़ी समस्या है, पठार क्षेत्र होने की वजह से इस इलाके के सैकड़ों गांव पानी के लिए आज भी गर्मी के मौसम में झरिया के पानी पर ही निर्भर रहते हैं ,पेयजल की समस्या से निजात नहीं मिल पाने की वजह से यहां के ग्रामीणों में काफी नाराजगी है, कई किलोमीटर पैदल चलकर ग्रामीणों को अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी लाना पड़ता है, हालांकि कांग्रेस के विधायक यहां बोर कराने की बात तो कहते हैं लेकिन अभी भी पेयजल की समस्या जस की तस बनी हुई है.
3. वही इस क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा टाटा से जमीन वापसी का है, 2018 के विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा मुद्दा टाटा से किसानों की जमीन वापसी थी, किसानों को अपनी जमीन दोबारा वापस पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे थे, जमीन अधिग्रहण किए जाने की वजह से किसान अपने खेतों में खेती-किसानी नहीं कर पा रहे थे ,प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता बनने के साथ ही सबसे पहले चित्रकूट विधानसभा में सैकड़ों किसानों की टाटा से जमीन वापसी कराई गई जिससे किसान सरकार के इस फैसले से काफी प्रभावित हुए ऐसे में कांग्रेस के लिए यह मुद्दा चुनाव जीतने के लिए काफी अहम रहा है..
4.इसके अलावा बोधघाट बांध परियोजना भी क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा है ,हालांकि हाल ही में बोधघाट परियोजना को बंद करने का फैसला राज्य सरकार की ओर से ले लिया गया है, लेकिन इसके बदले किसानों को सिंचाई के साधन उपलब्ध कराने के लिए चित्रकोट वाटरफॉल के नीचे मटनार बैराज बनाने की तैयारी सरकार ने शुरू कर दी है, 700 करोड़ रु के इस प्रोजेक्ट से किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा, साथ ही यहां के ग्रामीण इस पानी में मछली पालन भी कर सकेंगे और बिजली उत्पादन भी हो सकेगा, ऐसे में इस चुनाव में मटनार बैराज कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है.
5.इसके अलावा चित्रकोट विधानसभा नक्सल मुक्त हो चुका है, लेकिन कई ग्रामीण अंचलों में आज भी यहां के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. सड़क नहीं होने की वजह से कई बार ग्रामीणों को कावड़ में बोकर मरीजों को शहर तक लाना पड़ता है, सड़क, पुल पुलिया और खासकर गांव गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं बनने की वजह से लंबे समय से यहां के वासी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं….
राजनीतिक इतिहास
वरिष्ठ पत्रकार और विधानसभा के जानकार सुधीर जैन बताते हैं कि 2013 के चुनाव तक चित्रकोट विधानसभा बीजेपी का गढ़ रहा है, लेकिन युवा नेता दीपक बैज की विधानसभा चुनाव में एंट्री के बाद लगातार यह कांग्रेस का गढ़ बन गया है, इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे खास बात यह है कि बास्तानार विकासखंड के लगभग 100 से अधिक गांव आज भी संविधान के मंदिर को पूजते आ रहे हैं. ऐसे में यहां के ग्रामीण पेसा कानून और ग्राम सभा को सर्वोच्च मानते हैं. हालांकि जिस प्रत्याशी ने भी यहां चुनाव जीता है और राज्य में जिसकी भी सरकार बनी है. यहां के ग्रामीणों के हर मांग को पूरी करते आ रही है. हालांकि अब देखना होगा कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किसे अपना प्रत्याशी बनाती है. वही यह भी कयास लगाया जा रहा है कि बीजेपी से भी इस बार इस सीट से नए चेहरा को मौका मिल सकता है, हालांकि वर्तमान कांग्रेस के विधायक राजमन बेंजाम से इस विधानसभा क्षेत्र के कई गांव के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं को पूरा नहीं करने के चलते नाराज चल रहे हैं. ऐसे में इस चुनाव में यह नाराजगी कितना प्रभावित करता है यह आने वाला वक्त बताएगा.
विधानसभा से जुड़े आंकड़े
चित्रकूट विधानसभा में मतदाताओं की संख्या 1 लाख 68 हजार 77 है, जिनमें महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है और कुल मतदान केंद्र 235 है, विधानसभा में जातिगत समीकरण आदिवसियो के माड़ीया 70% मुरिया 20% और सामान्य वर्ग 10% है , 2018 के चुनाव तक विधानसभा के 50 से अधिक मतदान केंद्र संवेदनशील और अतिसंवेदनशील केंद्र में आते थे, लेकिन इस साल इस विधानसभा में संवेदनशील और अतिसंवेदनशील मतदान केंद्रों को पूरी तरह से शून्य घोषित कर दिया गया है.
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