Case of violation of code of conduct registered against BJP leader Pravesh VermaI What action will be taken Know everything ANN
Delhi Vidhan Sabha Election 2025: दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की शिकायत पर चुनाव आयोग ने बीजेपी नेता प्रवेश वर्मा के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया. उन पर मतदाताओं को जूते बांटने के आरोप लगे थे. हालांकि, सवाल यह है कि आखिर आचार संहिता उल्लंघन मामले में जो मामले दर्ज़ होते हैं. इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, आईए जानते हैं. क्या आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में वास्तविक और कठोर कार्रवाई होती है?.
चुनाव आयोग जैसे ही चुनाव तारीखों की घोषणा करता है, आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू हो जाती है. इसका उद्देश्य निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना है. मुख्यमंत्री, मंत्री या अन्य सरकारी अधिकारी किसी भी नई योजना, शिलान्यास या लोकार्पण की घोषणा नहीं कर सकते. राजनीतिक दलों को मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए किसी प्रकार के उपहार, धन, या डराने-धमकाने की अनुमति नहीं होती. राजनीतिक दल सरकारी धन का उपयोग प्रचार के लिए नहीं कर सकते.
आचार संहिता उल्लंघन पर कार्रवाई की प्रक्रिया
आचार संहिता उल्लंघन की शिकायत मिलने के बाद, चुनाव आयोग प्राथमिक जांच करता है. अगर उल्लंघन साबित होता है, तो उम्मीदवार या पार्टी को निर्देश दिया जाता है कि भविष्य में ऐसी गलती न करें.गंभीर मामलों में उम्मीदवार या स्टार प्रचारक को प्रचार से रोक दिया जाता है.चुनाव आयोग पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देता है.
आचार संहिता उल्लंघन के मामले
2019 लोकसभा चुनाव के दौरान रामपुर से बीजेपी उम्मीदवार जयाप्रदा ने चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए एक सड़क का उद्घाटन किया था. पांच साल तक केस चला. जिसके बाद अक्टूबर 2024 में अदालत ने सबूत की कमी के कारण जयाप्रदा को बरी कर दिया.
2024 महाराष्ट्र चुनाव के दौरान शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने बीजेपी उम्मीदवार शाइना एनसी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिया था. जिसके बाद चुनाव आयोग ने FIR दर्ज करवाई. मामले की कानूनी कार्यवाही अब भी चल रही है.
2024 लोकसभा चुनाव में बिहार के जमुई से राजद प्रत्याशी अर्चना रविदास पर वोटरों को प्रभावित करने का आरोप लगा था. FIR दर्ज हुई, लेकिन मामला अदालत में लंबित है. उन्हें केवल ₹10,000 के निजी मुचलके पर जमानत मिली.
आचार संहिता उल्लंघन पर सख्ती की कमी
अक्सर देखा गया है कि आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में मामले सालों तक लंबित रहते हैं. सबूत की कमी के चलते आरोपी बरी हो जाते हैं. अधिकतर मामलों में निर्देश देकर या चेतावनी देकर निपटारा कर दिया जाता है. उम्मीदवारों और दलों की गंभीरता की कमी राजनीतिक दल और नेता इन मामलों को गंभीरता से नहीं लेते क्योंकि उन्हें पता होता है कि मुकदमा लंबा चलता है.अक्सर सबूत के अभाव में सजा नहीं होती. कानूनी कार्रवाई में देरी से परिस्थितियां बदल जाती हैं.
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