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Bihar Politics From Karpoori Thakur to Nitish Kumar Attack On Nepotism development in 50 hours read full story


Bihar Politics: बिहार की राजनीति में सियासी भूचाल आया हुआ है. लगातार बैठकों का दौर चल रहा है और फोन पर फोन किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर अपना पाला बदलकर एनडीए में शामिल हो सकते हैं. ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बिहार राज्य की राजनीति इतनी बदल गई.

23 जनवरी तक सबकुछ ठीक दिख रहा था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कार्यक्रम में ना सिर्फ साथ में शिरकत की बल्कि दोनों के बीच सबकुछ ठीक नजर आ रहा था. इसके बाद केंद्र सरकार जननायक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा करती है.

यहीं से बदल जाते हैं हालात

इसके बाद सिर्फ रात कटी और कुछ घंटों बाद बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती पर नीतीश कुमार ने जिस तरह से परिवारवाद पर हमला किया उसने बिहार की राजनीति को 180 डिग्री के एंगल पर मोड़कर रख दिया. नीतीश कुमार के इस हमले को लालू परिवार पर हमले की तरह माना गया और उसके बाद बिहार की राजनीति में इतनी तेजी से बदली कि आरजेडी तो आरजेडी जेडीयू के नेताओं को भी समझने में वक्त लगा कि बदलाव की इस बयार पर बयान क्या और कैसे दिया जाए?

फिर लगाया जाने लगा नया सियासी समीकरण

इस घटना के बाद छन-छन के खबरें आनें लगीं कि नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं. इन्ही खबरों के बीच 25 जनवरी का दिन गुजर गया. इसके अगले दिन यानि आज 26 जनवरी को इन खबरों को फिर हवा तब मिल गई जब एक नई कहानी सामने आई. जो इस तरह थी..

शाम को करीब 4 बजे का वक्त हो रहा था. गणतंत्र दिवस के मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री हाईटी के लिए राजभवन में मौजूद थे. नीतीश कुमार के ठीक बगल की कुर्सी खाली थी. दरअसल इस कुर्सी पर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के नाम की पर्ची लगी हुई थी. उन्हीं का इंतजार हो रहा था. सीएम आकर कुर्सी पर बैठ चुके थे लेकिन तेजस्वी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे थे.

बिहार में मची राजनीतिक उठापटक के बीच ये तस्वीर पूरे देश के न्यूज चैनल की सुर्खियां बनी हुई थी कि नीतीश के ठीक बगल में तेजस्वी यादव की कुर्सी खाली है. कुछ देर में तो राज्यपाल भी पहुंच जाते हैं और इसके बाद जो हुआ उसका किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था. नीतीश कुमार इशारा करके सामने बैठे मंत्री अशोक चौधरी को बुलाते हैं.

इशारों में नीतीश मैसेज दे देते हैं. अशोक चौधरी नीतीश के बगल वाली कुर्सी पर चस्पा तेजस्वी यादव के नाम की पर्ची को उखाड़ते हैं और फिर नीतीश के बगल में बैठ जाते हैं. दोनों बातचीत में तल्लीन हो जाते हैं और अशोक चौधरी तेजस्वी यादव के नाम की पर्ची को हाथ में लेकर मसलते रहते हैं.

लालू की बेटी रोहिण आचार्य का वो ट्वीट

नीतीश औऱ लालू परिवार के बीच खटपट की खबरों ने लालू की बेटी रोहिणी आचार्य के ट्वीट ने मुहर लगाई थी. 5 मिनट के भीतर नीतीश पर हमला करते हुए रोहिणी ने तीन ट्वीट किए लेकिन दो घंटे बाद डिलीट भी कर दिए, पर तब तक मैसेज तो जा चुका था. हुआ ये कि रोहिणी के ट्वीट से लालू परिवार और नीतीश के बीच खटास की जो आग थी वो ज्वालामुखी बन गई.

इन सवालों के जरिए ढूंढ़ते हैं जवाब

अब बारी उस सवाल का जवाब जानने की है कि खटास की नींव किस बात से पड़ी? नीतीश के मन में ऐसा क्या आया कि उन्होंने महागठबंधन से साथ छुड़ाने का और बीजेपी का दामन थामने का फैसला किया? तो चलिए आपको नीतीश के इस फैसले के पीछे की दो वजहें बताते हैं.

पहली वजह जो हो सकती है वो लालू परिवार का दबाव और दूसरी वजह जीत की गारंटी. अगस्त 2022 में जब आरजेडी के साथ महागठबंधन करके नीतीश ने बिहार में सरकार बनाई थी, उस वक्त डिप्टी सीएम की शपथ लेने के बाद तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के पैर छूकर आशीर्वाद जरूर लिया था लेकिन लालू और नीतीश के बीच डील ये हुई थी कि वो तेजस्वी को बिहार का सीएम बनाएंगे.

लालू और नीतीश के बीच हुई थी डील?

लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच दोस्ती के साथ ये तय हुआ था कि नीतीश कुमार कुछ वक्त के बाद राष्ट्रीय राजनीति की तरफ अपने कदम बढ़ाएंगे और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव संभालेंगे और इस डील के तहत लालू लगातार नीतीश पर तेजस्वी यादव को सीएम बनाने का दबाव बना रहे थे.

इस बात में भी कोई शक नहीं कि इंडिया गठबंधन के बैनर तले नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय पारी खेलने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया. वो नीतीश कुमार ही थे जो सबको एकजुट कर रहे थे लेकिन इंडिया गठबंधन में नीतीश की दाल नहीं गली और उनका पीएम की दावेदारी के लिए आगे नहीं किया गया.

बावजूद इसके लालू तेजस्वी को सीएम बनाने की जिद पकड़े हुए थे. इस बढ़ते हुए दबाव के बीच नीतीश असहज महसूस करने लगे. नीतीश बिहार के सीएम की कुर्सी भी नहीं छोड़ना चाहते और राष्ट्रीय राजनीति के लिए आगे भी कोई तस्वीर साफ नहीं है. इस बीच पटना के पॉलिटिकल कॉरिडोर में ये खबर तेजी से फैली कि लालू तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए जेडीयू को तोड़ भी सकते हैं और इसके बाद तो नीतीश के कान खड़े हो गए थे.

जीत की गारंटी कौन देगा?

मामला नीतीश कुमार के वजूद पर आ गया जिसे बचाने के लिए नीतीश ने एक के बाद दांव चलने शुरु किए. पहले पार्टी अध्यक्ष पद से ललन सिंह को किनारे किया और फिर बीजेपी के साथ अपनी गोटी सेट की.

नीतीश को जीत की गारंटी चाहिए थी. नीतीश इस बात की गारंटी चाहते थे कि वो सत्ता में बने रहें और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के बाद नीतीश हिल गए. पूरे देश में राम की लहर देखकर नीतीश कुमार को समझ में आ गया था कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हरा पाना मुश्किल है. खुद जेडीयू के उम्मीदवार भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं.

तय है कि कुछ ऐसी ही सोच नीतीश कुमार की भी रही होगी. नीतीश कुमार सत्ता में रहने वाले शख्श हैं. पाला बदलना पड़े या फिर जिन्हें दुश्मन बनाया हो उनसे हाथ मिलाना पड़े वो सरकार की चाबी अपने हाथ में रखना चाहते हैं.

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