Big Lapse? Emergency Evacuation Route From The Tunnel In Uttarakhand Was In The Plan, But Was Not Built – बड़ी चूक? उत्तराखंड में सुरंग से इमरजेंसी निकासी का रास्ता प्लान में था, लेकिन बनाया नहीं गया
बचाव टीमें अब रविवार की सुबह से सुरंग के अंदर फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए वैकल्पिक योजनाएं भी लेकर आ रही हैं.
सुरंग में फंसे 41 निर्माण मजदूरों के परिवारों के सदस्य, जिनमें से अधिकांश प्रवासी हैं, को अब चिंता होने लगी है क्योंकि कल शाम को सुरंग में जोर से “टूटने की आवाज” सुनाई देने के बाद अमेरिकी ड्रिल मशीन ने भी काम करना बंद कर दिया. मजदूरों के परिवारों के कुछ सदस्यों और निर्माण में शामिल अन्य श्रमिकों ने कहा कि अगर भागने का रास्ता बनाया गया होता तो अब तक मजदूरों को बचाया जा सकता था.
इस तरह के बचाव मार्गों का उपयोग सुरंगों के निर्माण के बाद भी किया जाता है. सुरंग के किसी हिस्से के ढहने, भूस्खलन या किसी अन्य आपदा के हालात में फंसे वाहनों में सवार लोगों को इस तरह के रास्ते से निकाला जा सकता है.
सुरंग का यह नक्शा तब सामने आया जब केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने गुरुवार को सुरंग ढहने वाले स्थान का दौरा किया. उन्होंने कहा था कि मजदूरों को दो-तीन दिनों में बचा लिया जाएगा. सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्यमंत्री ने कहा था कि बचाव कार्य जल्द पूरा किया जा सकता है, यहां तक कि शुक्रवार तक भी, लेकिन सरकार अप्रत्याशित कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए लंबी समयसीमा तय कर रही है.
बचाव की योजनाएं
सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के अब तक तीन तरीके आजमाए जा चुके हैं और अब तीन और तरीकों पर काम किया जा रहा है.
प्लान-ए के तहत मलबे को हटाने और मजदूरों तक पहुंचने के लिए बुलडोजर का उपयोग करना था. हालांकि टीमों को एहसास हुआ कि चट्टान ढीली हैं और मलबे को हटाने के बाद उसकी जगह और अधिक मलबा आने की आशंका है, इसलिए यह योजना छोड़ दी गई.
प्लान-बी में फंसे हुए मजदूरों तक 900 मिलीमीटर के व्यास वाला पाइप पहुंचाने के लिए एक बरमा मशीन का उपयोग किया जा रहा था. इस पाइप में से उन्हें रेंगकर बाहर निकालने की योजना थी. लेकिन बरमा मशीन बहुत शक्तिशाली नहीं थी और अप्रभावी साबित हुई.
प्लान-सी के तहत एक मजबूत और अधिक ताकतवर अमेरिकी ड्रिल मशीन भारतीय वायुसेना के विमान से लाई गई. इस मशीन से गुरुवार को मलबे में ड्रिलिंग शुरू की गई. इससे मलबे में छेद की गहराई शुरुआती 40 से बढ़कर 70 मीटर हो गई. लेकिन टूटने की एक आवाज सुनाई देने के बाद शुक्रवार की शाम को मशीन ने काम करना बंद कर दिया. सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि मशीन खराब हो गई है, लेकिन अधिकारियों ने इससे इनकार किया है.
प्लान-डी पर अब काम शुरू हो रहा है. इंदौर से एक और हॉरिजोंटल ड्रिलिंग मशीन बचाव स्थल पर लाई गई है. आशा है कि इस उपकरण का यह हिस्सा पाइप को अंदर धकेल सकेगा और पाइप मजदूरों तक पहुंच जाएगा.
प्लान-डी के विफल होने के हालात में प्लान-ई और एफ आकस्मिक योजनाएं हैं. पहली आकस्मिक योजना में यह पता लगाया जा रहा है कि क्या सुरंग जिस चट्टान से होकर गुजर रही है, उसके ऊपर से ड्रिल द्वारा एक छेद किया जा सकता है और मजदूरों को उस रास्ते से बाहर निकाला जा सकता है?
रेलवे की ओर से लाई गई अंतिम योजना में चट्टान के दूसरे छोर से एक समानांतर हॉरिजोंटल सुरंग खोदने का सुझाव है. यह सुरंग मुख्य सुरंग से उस स्थान पर मिलेगी जहां मजदूर फंसे हुए हैं.
मजदूरों के परिवार चिंतित
फंसे हुए मजदूरों के कुछ परिवारों के सदस्यों ने कहा कि वे नाउम्मीद होते जा रहे हैं. एक मजदूर के भाई ने कहा कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ने से पहले उन्हें जल्दी से बचाया जाना चाहिए.
डॉक्टरों ने फंसे हुए मजदूरों के लिए व्यापक पुनर्वास की जरूरत पर भी जोर दिया है. उन्हें डर है कि लंबे समय तक फंसे रहने से उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है.
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