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Basti Bahubali Leader Rajkishor Singh Can Join BJP Before Lok Sabha Elections 2024 Profile Political Journey From SP To BJP ANN


UP News: पूर्वांचल के बाहुबली नेता माने जाने वाले राजकिशोर सिंह जल्द ही बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. पार्टी के आलाकमान से हरी झंडी मिलते ही राजकिशोर सिंह का नया ठिकाना बीजेपी होगा. बीएसपी, सपा, कांग्रेस और फिर बसपा में रहकर राजनीति का लंबा सफर तय करने के बाद राजकिशोर सिंह का राजनीतिक करियर पिछले 9 साल से ग्रहण में लगा हुआ था. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के आंख का कांटा बनने के बाद साल 2016 में राजकिशोर सिंह से सबसे पहले मंत्री पद छीना गया था.

यही नहीं अखिलेश यादव ने राजकिशोर सिंह के भाई का टिकट भी काट दिया था और अंत में साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उनके क्षेत्र में चुनाव प्रचार तक करने नहीं आए. दरअसल, उस वक्त अखिलेश यादव, चाचा शिवपाल यादव के बीच काफी तल्खी चल रही थी. यही वजह थी कि शिवपाल का करीबी होना ही बाहुबली राजकिशोर सिंह के पतन का कारण बना. बसपा से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा और वे हार गए. 2022 में मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने पर पार्टी से बाहर कर दिया.

राजकिशोर सिंह और उनके भाई बृजकिशोर सिंह को जिस दिन बसपा से से निकाला गया था, उस दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के अयोध्या दौरे में शामिल थे और यह खबर बसपा सुप्रीमो को लगते ही उन्होंने कार्रवाई की थी. आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर राजकिशोर सिंह ने फिर से कमर कस ली है और इस बार वे मौके की नजाकत को भांपते हुए बीजेपी का दामन थामने जा रहे हैं. राजकिशोर सिंह बस्ती से छह बार विधानसभा तो तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं.

गौरतलब है कि वर्तमान में बीजेपी से हरीश द्विवेदी सांसद हैं. उनके सामने टिकट लेकर आना और चुनाव लड़ना राजकिशोर सिंह के लिए आसान नहीं होगा. हरीश द्विवेदी राजनीति के प्रकांड पंडित माने जाते हैं और दो बार से लगातार वे लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर रहे हैं. इस बार राजकिशोर सिंह के बस्ती लोकसभा से चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट तेज हो गई है. राजकिशोर सिंह के पास हर वर्ग को मिलाकर अपना एक बड़ा वोट बैंक है. इसी के बलबूते वे चुनाव का गणित बना बिगाड़ सकते हैं. जातीय और राजनीतिक समीकरण के हिसाब से राजकिशोर सिंह के साथ बीजेपी के कई नेता और कार्यकर्ता भी संपर्क में हैं. हाईकमान से रास्ता साफ होने के बाद वे खुलकर सामने आ सकते हैं. 

पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह ने एबीपी के संवाददाता सतीश श्रीवास्तव से राजनीतिक सफर को लेकर बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि वे बीजेपी से संपर्क में हैं. सही समय आने पर कोई फैसला लेंगे. साथ ही राजकिशोर सिंह अभी वह किसी दल में नहीं है, इसलिए लोकसभा चुनाव तो निश्चित तौर पर लड़ना ही है और इसके लिए सिंबल होना जरूरी है. ऐसे में मुस्कराकर उन्होंने कहा कि सब ऊपर वाले की मर्जी पर निर्भर है, लेकिन बीजेपी के प्रति उनका सॉफ्ट नेचर और बीजेपी के नेताओं से दिल्ली में गुपचुप मुलाकात आने वाले वक्त में बस्ती लोकसभा की तस्वीर को साफ कर देगा.

यूपी की सियासत में जिसका कभी सिक्का चलता था और जो तीन-तीन बार के मंत्री रहे, इतना ही नहीं स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के मुंहलगे राजकिशोर सिंह आज हासिए पर हैं. यूपी की राजनीति में ये नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है. एक दौर था जब पूर्वांचल की हवा राजकिशोर सिंह के दरवाजे से होकर बहती थी. लेकिन, अब हालात बदल चुके हैं. 2019 तक राजकिशोर सिंह सपा में रहे. लेकिन, जैसे ही पार्टी छोड़ी बस्ती जिले में सपा के बुरे दिन शुरू हो गए.

कहते हैं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश ने राजकिशोर सिंह को अर्श से फर्श पर लाकर छोड़ दिया. पहले राजकिशोर के भाई का एमएलसी टिकट काटा गया. उसके बाद मंत्री पद छीनकर रही सही कसर अखिलेश ने पूरी कर दी. पूर्वांचल में राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे राजकिशोर सिंह कभी सपा मुखिया मुलायम सिंह के मुंहलगे भी हुआ करते थे.. लेकिन जब बेआबरू होकर समाजवादी पार्टी से बाहर जाना पड़ा तो साल मगर आज यह बाहुबली नेता गुमनामी की तरफ चला गया. 

राजकिशोर सिंह ने राजनीति का ककहरा एपीएनपीजी डिग्री कॉलेज से सीखा. सबसे पहले वो छात्र नेता बने, साल 2002 में पहली बार जिला पंचायत सदस्य बने, इसी साल उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ने उतरे मगर हार गए. मायावती का सिर पर हाथ पड़ा और बीएसपी से टिकट मिला, हरैया से चुनाव लड़ने उतरे और जीत ने कदम चूम लिया. एक साल बाद ही साल 2003 में बीएसपी से बागी होकर मुलायम से हाथ मिला बैठे. मुलायम सरकार के मंत्रिमंडल में पहली बार कैबिनेट मंत्री बने और कैबिनेट मंत्री रहते मां को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया. साल 2007 में राजकिशोर सिंह दूसरी बार विधायक बनने में कामयाब हुए. बीएसपी का शासन आया तो मायावती की टेढ़ी नजर पड़ गई. राजकिशोर सिंह के भाई डिंपल सिंह को जेल जाना पड़ा और गैंगस्टर एक्ट लग गया.

राजकिशोर सिंह के लिए पब्लिक ही सियासी शंकराचार्य रही… और खुद को एकलव्य बनाकर पब्लिक की साधना करते रहे… बचपन से ही राजकिशोर सिंह जुझारू थे. हालात अगर खिलाफ हो तो हालातों से मुखालिफत करना जानते थे. कहते हैं राजकिशोर सिंह को बचपन के बाद बसपा से सहारा मिला… बसपा से करियर की शुरूआत फिर बसपा छोड़ना और अखिलेश के साथ जाना और दुबारा बसपा में वापसी.. राजकिशोर सिंह की जिन्दगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा. 2012 में सपा की सरकार आई तो विधायक बनते ही राजकिशोर सिंह सबसे कद्दावर मंत्री बने. राजकिशोर सिंह लगातार 2003 में उद्यान मंत्री, 2007 में भी उद्यान विभाग के मंत्री रहे.

2012 में कुछ दिन उद्यान मंत्री रहे, बाद में पंचायती राज, लघु सिंचाई और पशुपालन मंत्री बन गए. कहते हैं डीएम, एसपी से लेकर थानेदार तक की पोस्टिंग और ट्रांसफर में उनकी दखलअंदाजी चलती थी. राजकिशोर सिंह को सियासी ऊंचाई तक पहुंचाने में मायावती का बड़ा योगदान रहा.. पर किसी के हुक्म के खूंटे से बंधकर रहने की उनकी आदत नहीं रही. शेर की तरह सियासत अपनी शर्तों पर करते रहे.. तभी तो उनके दुश्मन की आंखों में हमेशा उनका चेहरा खटकता रहा..राजकिशोर सिंह बताते है कि सपा सरकार में मंत्री रहते हुए सोनभद्र में एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे, एक होटल में रुके तो उनके खाने में जहर मिला दिया गया. इतनी गंभीर साजिश भी राजकिशोर सिंह का कुछ ना बिगाड़ सकी.

इसके अलावा राजकिशोर सिंह के भाई बृज किशोर सिंह उर्फ डिम्पल का राजकिशोर के राजनैतिक सफर में सबसे अहम योगदान रहा. डिंपल सिंह अपने भाई राजकिशोर सिंह के साथ साए के साथ रहते है, अपने भाई को राजनीति का मास्टर बनाने के लिए डिम्पल ने एक अच्छे शिक्षक की भूमिका निभाई और कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते गए.कहते हैं राजकिशोर सिंह की प्रदेश के अधिकारी वर्ग में अच्छी खासी पैठ थी… एक दौर था जब छोटे से छोटा और बड़े से बड़े अधिकारी उनके सम्मान में कुर्सी छोड़ कर खड़े हो जाते थे… इलाके में उन्हें लोग मंत्री जी बुलाते हैं… क्योंकि राजकिशोर सिंह जब भी विधायक बने तो सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया.

राजकिशोर सिंह को भले ही दुनिया मंत्री जी, बाहुबली, और अलग अलग नामों से जानती हो. लेकिन उनकी छवि एक अच्छे नेता की रही.. जब जब पब्लिक को उनकी जरूरत पड़ी.. हर सुख दुख में साथ नजर आए.. साल 2018 राजकिशोर सिंह के सिर से पिता का छाया छिन गई. किसी बेटे के लिए जिन्दगी का ये सबसे दुखदायी पल होता है. लेकिन राजकिशोर सिंह ने खुद को संभाला. कहते उनकी किस्मत इस हादसे के बाद से बदल गई. सियासत में जो नाम और रूतबा कमाया था. पिताजी के जाने के साथ वो घटता गया. हर किसी की जिन्दगी में संक्रमण काल आता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राजकिशोर सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. ये उनके करियर की सबसे भारी गलती साबित हुई.

2020 में राजकिशोर सिंह वापस बसपा में लौट आए…11 नवंबर 2021 का दिन, कहते हैं हर कदम पर राजकिशोर सिंह मौत का सामना करते रहे. इसी तारीख को भीषण सड़क हादसा हुआ जिसमें राजकिशोर सिंह की गाड़ी के परखच्चे उड़ गए. लेकिन मौत को मात देकर फिर से राजकिशोर सिंह बच निकले. लखनऊ से बस्ती जाते हुए चिनहट के पास ये हादसा हुआ था. राजकिशोर के जीवन में सबसे दुख का पल उस वक्त आया जब उनका छोटा बेटा और जिगर टुकड़ा शुभम की 12 दिसंबर 2015 को लखनऊ में एक सड़क हादसे में मौत हो गई. जिसके बाद राजकिशोर सिंह अंदर से टूट गए, वो पल ऐसा था जब राजकिशोर सिंह खुद को दुनिया का सबसे बड़ा अभागा मान रहे थे, सब कुछ होने के बावजूद भगवान ने उनसे बेटे का प्यार छीन लिया.

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