Bangladeshi author Taslima Nasreen Urges to indian govt allowed to participate in literary events and book fairs
Bangladeshi author Taslima Nasreen: निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा है कि इस समय निवास के लिए दिल्ली से कोलकाता आ जाना उनके लिए व्यावहारिक विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा,”मैं नहीं चाहती हूं कि मेरी हालत फुटबॉल की गेंद की तरह हो.”
नसरीन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि वह पश्चिम बंगाल और केंद्र दोनों सरकारों से अनुरोध करेंगी कि उन्हें समय-समय पर साहित्यिक समारोहों और पुस्तक मेलों में भाग लेने के लिए शहर आने की अनुमति दी जाए जिसके साथ उनका मजबूत भावनात्मक जुड़ाव है.
संसद में उठी कोलकाता वापसी की मांग
इस सप्ताह के शुरूआत में संसद में भाजपा के राज्यसभा सदस्य समिक भट्टाचार्य ने केंद्र से अपील की थी कि वह नसरीन की सुरक्षित कोलकाता वापसी सुनिश्चित करे क्योंकि उन्हें 2000 के दशक की शुरुआत में शहर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था.
राजनीतिक कारणों से हुआ निर्वासन
नसरीन ने फोन पर कहा, ‘‘राजनीतिक व्यवस्थाओं ने मुझे फुटबॉल की तरह फेंका है, क्योंकि वे मेरे साहित्यिक और वैश्विक दृष्टिकोण के कारण अपनी सीमाओं के भीतर मेरी उपस्थिति से असहज महसूस करते थे. अपने जीवन के इस पड़ाव पर, मैं अब और इधर-उधर भटकना नहीं चाहती. इसके बजाय, मुझे खुशी होगी अगर सरकार मुझे कोलकाता में साहित्य उत्सवों और पुस्तक मेलों में भाग लेने की अनुमति दे, जहां से मुझे नियमित रूप से निमंत्रण मिलते हैं.’’
लज्जा उपन्यास के बाद निर्वासन
नसरीन ने 90 के दशक के शुरूआत में अपने लेखों और उपन्यासों के कारण वैश्विक ध्यान आकर्षित किया था, जिनमें उन्होंने नारीवादी विचार व्यक्त किए थे. उन्हें 1994 में अपने उपन्यास ‘लज्जा’ के प्रकाशन के बाद जारी किए गए कई फतवों के कारण बांग्लादेश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
यूरोप और अमेरिका में एक दशक बिताने के बाद वह 2004 में भारत आ गईं और अगले तीन साल कोलकाता में रहीं. उनकी किताब ‘द्वीखंडिता’ के कुछ विवादास्पद अंशों से नवंबर 2007 में शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क गयी. उन्हें कोलकाता से पहले जयपुर और फिर दिल्ली जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जहां उन्हें शुरू में नजरबंद रखा गया था. स्त्री रोग विशेषज्ञ नसरीन फिलहाल लॉन्ग टर्म के ‘रेजिडेंट परमिट और मल्टीपल-एंट्री वीजा’ पर दिल्ली में रहती हैं.
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