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Himanta Biswa Sarma CAA: असम सरकार ने अपनी सीमा पुलिस इकाई से कहा है कि वह 2015 से पहले राज्य में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों के मामलों को विदेशी न्यायाधिकरण को न भेजे और उन्हें नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने की सलाह दी है.

विशेष पुलिस महानिदेशक (सीमा) को लिखे पत्र में गृह और राजनीतिक सचिव पार्थ प्रतिम मजूमदार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 का हवाला दिया और कहा कि 2014 तक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करने वाले सभी गैर-मुस्लिम अप्रवासी भारतीय नागरिकता दिए जाने के पात्र हैं.

‘हिंदू-सिख-ईसाईयों के मामलों को न भेजें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल’

पांच जुलाई को जारी पत्र में असम पुलिस की सीमा शाखा से कहा गया है कि वह 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के लोगों के मामलों को सीधे विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) को न भेजे. मजूमदार ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों को सलाह दी जानी चाहिए कि वे भारत सरकार की ओर से उनके आवेदन पर विचार करने के लिए नागरिकता पोर्टल पर आवेदन करें.

उन्होंने कहा, “यह सुविधा हालांकि, 31 दिसंबर, 2014 के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से असम में प्रवेश करने वाले लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होगी, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. एक बार पता चलने पर, उन्हें आगे की कार्रवाई के लिए क्षेत्राधिकार वाले विदेशी न्यायाधिकरण को भेज दिया जाना चाहिए.”

क्या बोले असम के मुख्यमंत्री?

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोमवार (15 जुलाई 2024) को कहा कि यह पत्र नियमों के अनुसार जारी किया गया है. उन्होंने कहा, “यह एक वैधानिक आदेश था. इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है और यह कानून के अनुसार है.” सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने यह भी कहा कि 2015 या उसके बाद असम आने वाले किसी भी व्यक्ति को उसके मूल देश वापस भेज दिया जाएगा.

असम समझौते के अनुसार, 25 मार्च 1971 को या उसके बाद राज्य में आने वाले सभी विदेशियों के नाम का पता लगाया जाएगा और उन्हें मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा और उन्हें निर्वासित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे.

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