News

Assam Himanta Biswa Sarma Cabinet Decided To Conduct Socio Economic Assessment Of Indigenous Muslims


Assam Indigenous Muslims: असम की कैबिनेट ने राज्य में स्वदेशी असमिया मुसलमानों का सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन कराए जाने को मंजूरी दी है. अल्पसंख्यक मामलों और चार क्षेत्रों के निदेशालय की ओर से इसे किया जाएगा.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि असम के चार क्षेत्र विकास निदेशालय का नाम बदलकर ‘अल्पसंख्यक मामले और चार क्षेत्र निदेशालय’ कर दिया जाएगा.

मुख्यमंत्री सरमा ने शुक्रवार (8 दिसंबर) को अपने आधिकारिक X हैंडल से एक पोस्ट के माध्यम से इस बात की जानकारी भी दी थी. असम सरकार की ओर से पांच समुदायों को स्वदेशी असमिया मुस्लिम के रूप में मान्यता दिए जाने के डेढ़ साल बाद कैबिनेट ने यह निर्णय लिया है.

असम में कितनी है मुस्लिमों की आबादी?

2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की 34 फीसदी से ज्यादा आबादी मुसलमानों की थी, जो जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप के बाद सभी केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा थी. 

असम की कुल आबादी 31 मिलियन (3 करोड़ 10 लाख) है, जिसमें 10 मिलियन (एक करोड़) से ज्यादा मुस्लिम हैं. हालांकि, इनमें केवल लगभग 40 लाख असमिया भाषी मूल मुस्लिम हैं और बाकी बांग्लादेशी मूल के बंगाली भाषी अप्रवासी हैं.

क्या किया जाएगा स्वदेशी असमिया मुसलमानों का सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन?

हिमंत सरमा के नेतृत्व वाली सरकार ने अक्टूबर महीने में स्वदेशी मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन करने की योजना की घोषणा की थी. सीएम सरमा ने एक पोस्ट में कहा कि ये निष्कर्ष सरकार को राज्य के स्वदेशी अल्पसंख्यकों के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और शैक्षिक उत्थान के उद्देश्य से उपयुक्त उपाय करने के लिए मार्गदर्शन करेंगे.

पिछले साल जुलाई में राज्य सरकार की ओर से गोरिया, मोरिया, जोलाह, देसी और सैयद समुदायों को मूल असमिया मुसलमानों के रूप वर्गीकृत किया गया था. गोरिया, मोरिया और जोलाह समुदाय में चाय बागानों में रहने वाले लोग शामिल हैं, जबकि देसी और सैयद केवल असमिया भाषी हैं. असमिया मुसलमानों का तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) से पलायन करने का कोई इतिहास नहीं है.

असम सरकार ने उसकी ओर से पहले गठित की गईं सात उप-समितियों की सिफारिशों के आधार पर पांच उप-समूहों को स्वदेशी के रूप में पहचान करने का निर्णय लिया था. इस तरह का वर्गीकरण इन समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग रही है, जिन्होंने उन्हें हाशिए पर रखे जाने की शिकायत की है. उन्होंने कहा है कि असम के मूल निवासी होने के बावजूद उन्हें कभी कोई लाभ नहीं मिला.

यह भी पढ़ें- 2024 में क्या होगी क्षेत्रीय दलों की भूमिका? I.N.D.I.A. का बढ़ेगा कुनबा या NDA के पुराने सहयोगी करेंगे घर वापसी



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *