Amtek Auto Case: Supreme Court Hands Over Investigation To ED, Seeks Report Within 6 Months – एमटेक ऑटो मामला : सुप्रीम कोर्ट ने ED को सौंपी जांच, 6 महीने में मांगी रिपोर्ट
नई दिल्ली :
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एमटेक ऑटो मामले (Amtek Auto Case) की जांच प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) को सौंपी है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कथित 27 हजार करोड़ रुपये के कथित घोटाले को लेकर ED से 6 महीने में रिपोर्ट मांगी है. अब इस मामले में 2 सितंबर 2024 को सुनवाई होगी. ये आदेश 27 फरवरी को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने ये आदेश जारी किया है. अदालत ने ED को मेसर्स एमटेक ऑटो लिमिटेड, मेसर्स ARGL लिमिटेड और मेसर्स मेटलिस्ट फोर्जिंग्स लिमिटेड और उनके पूर्ववर्ती प्रबंधन और शेयरधारकों के खिलाफ “विस्तृत जांच” का निर्देश दिया है.
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अदालत ने कहा है कि प्रथम दृष्टया अब तक एकत्र किए गए सबूतों से संकेत मिलता है कि फंड को भूमि सौदों और रियल एस्टेट परियोजनाओं आदि में लगाया गया था. निदेशकों के परिवार के सदस्य और करीबी रिश्तेदारों को अनुचित लाभ दिया गया है.
पीठ ने कहा कि हमें लगता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से प्राप्त सार्वजनिक धन के संबंध में बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि SFIO और सीबीआई द्वारा की जा रही जांच/पूछताछ जारी रहेगी और इस आदेश से कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा. दोनों एजेंसियां साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया में ED के साथ पूरा सहयोग करेंगी.
अब तक की जांच से ठोस परिणाम नहीं निकला : गुलाटी
वहीं एमिकस क्यूरी वरिष्ठ वकील कविन गुलाटी ने अदालत में कहा था कि अब तक की गई जांच से कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है. इस विशाल धोखाधड़ी की जड़ तक पहुंचने और त्वरित और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए आगे की जांच विशेष एजेंसी यानी ED को सौंपी जा सकती है, जिसके पास एक व्यापक तंत्र उपलब्ध है.
केंद्र ने इसका विरोध नहीं किया. वहीं याचिकाकर्ता वकील जसकरण सिंह चावला, जय अनंत देहाद्राई ने तर्क दिया कि धोखाधड़ी में शामिल कुल राशि 27,000 करोड़ रुपये के आंकड़े को छू सकती है.
अदालत ने SFIO की स्टेटस रिपोर्ट देखकर कहा कि रिपोर्ट से पता चला है कि एमटेक समूह ने 500 से अधिक कंपनियों का जाल बनाया है. संबंधित संस्थाओं में डमी निदेशकों की नियुक्ति की गई है. किताबों में गलत बयानी की गई है. विभिन्न तरीकों से संबंधित और नियंत्रित संस्थाओं के माध्यम से ऋणों का हेरफेर और हेराफेरी हुई है. अदालत ने ये भी देखा कि बड़ी संख्या में बैंकों/पीएसयू ने मात्र 20 फीसदी भुगतान स्वीकार करके ऋण खाते बंद कर दिए हैं.
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