News

Supreme Court Hearing On Abrogation Of Article 370 From Jammu Kashmir


Supreme Court Hearing Article 370: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अगस्त) को सवाल किया कि क्या संसद 2018-2019 में राष्ट्रपति शासन के दौरान जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू कर सकती थी. इस अधिनियम के जरिये पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था. 

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पांच अगस्त, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया और पारित किया गया था. अगले दिन लोकसभा में पेश किया गया और पारित किया गया था. इसे नौ अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी. 

अनुच्छेद 370 को निरस्त के मामले पर सुनवाई

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन से यह सवाल पूछा. इस पार्टी ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने के अलावा 19 दिसंबर, 2018 को पूर्ववर्ती राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने और तीन जुलाई, 2019 को इसे छह महीने के लिए बढ़ाये जाने का भी विरोध किया है. 

चीफ जस्टिस ने पूछा सवाल

चीफ जस्टिस ने धवन से पूछा, “क्या संसद अनुच्छेद 356 की उद्घोषणा के लागू रहने की अवधि के दौरान अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए कोई कानून (जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम) बना सकती है.” धवन ने जवाब दिया कि संसद संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में वर्णित सभी सीमाओं के अधीन एक कानून पारित कर सकती है.

पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल थे. धवन ने पीठ को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में बदलाव से संबंधित एक अनिवार्य शर्त है जहां राष्ट्रपति को मामले को राज्य विधायिका के पास भेजना होता है. 

सुनवाई के दौरान और क्या कुछ हुआ?

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने संबंधी केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के छठे दिन धवन ने कहा, “जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन, 2019 से संबंधित अधिसूचना ने अनुच्छेद 3 के अनिवार्य प्रावधान (राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधानमंडल को भेजे जाने) को निलंबित करके अनुच्छेद 3 में एक संवैधानिक संशोधन किया.”

उन्होंने कहा कि केंद्र ने वस्तुत: संविधान में संशोधन किया है और संपूर्ण जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 से सामने आया है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा, “हम संविधान की धारा 356 (1) (सी) से कैसे निपटते हैं? क्या राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 356 के तहत उद्घोषणा लागू रहने के दौरान संविधान के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की शक्ति है?” 

धवन ने कहा, “हां, राष्ट्रपति संविधान के किसी प्रावधान को निलंबित कर सकते हैं, लेकिन यह उद्घोषणा की अनुपूरक होनी चाहिए. इस मामले में यह पूरक होने से परे है और अनुच्छेद 3 के तहत अनिवार्य प्रावधान को वास्तव में हटाया गया.” 

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने धवन से कहा कि यदि राष्ट्रपति किसी उद्घोषणा में संविधान के किसी प्रावधान के क्रियान्वयन को निलंबित कर देते हैं, तो क्या यह इस आधार पर अदालत में निर्णय के योग्य है कि यह आकस्मिक या पूरक नहीं है.

वरिष्ठ वकील ने उत्तर दिया, “मैंने कभी ऐसा प्रावधान नहीं देखा जो वास्तव में एक अनिवार्य प्रावधान को हटा देता हो. यह असाधारण है. यदि आप अनुच्छेद 356(1)(सी) के दायरे का विस्तार करते हैं, तो आप कहेंगे कि राष्ट्रपति के पास संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार है. अनुच्छेद 356(1)(सी) को एक अनिवार्य प्रावधान के साथ पढ़ा जाना चाहिए जिसे वह कमतर नहीं कर सकता.” 

गुरुवार को भी होगी सुनवाई

लगभग चार घंटे तक दलील देने वाले धवन ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के दौरान अनुच्छेद 3 और 4 और अनुच्छेद 370 को लागू नहीं किया जा सकता है. सुनवाई बेनतीजा रही और गुरुवार को भी जारी रहेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को कहा था कि अक्टूबर 1947 में पूर्व रियासत के विलय के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का भारत को समर्पण “परिपूर्ण” था और यह कहना “वास्तव में मुश्किल” है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य को मिला विशेष दर्जा स्थायी प्रकृति का था.

ये भी पढ़ें-

कांग्रेस की बैठक के बाद बयान से विवाद, AAP बोली- फिर INDIA गठबंधन की मीटिंग का क्या मतलब? हाई कमान ने किया किनारा | बड़ी बातें



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *