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Mehrauli Archaeological Park: सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी के महरौली पुरातत्व पार्क के भीतर 13वीं सदी की आशिक अल्लाह दरगाह और सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह समेत सदियों पुराने धार्मिक ढांचों में कोई भी नया निर्माण या मरम्मत कार्य करने पर शुक्रवार (28 फरवरी 2025) को रोक लगा दी.

पुरातत्व पार्क के अंदर के ढांचे को तोड़ने की मांग

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने जमीर अहमद जुमलाना नाम के व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. इस याचिका में पुरातत्व पार्क के अंदर स्थित धार्मिक ढांचों को ध्वस्त होने से बचाए जाने का अनुरोध किया गया है. वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की स्थिति रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वहां पाया गया एक ऐतिहासिक स्मारक लगभग 700 साल पहले बनाया गया था.

‘लोग पैसे कमाने के लिए कर लेते हैं अतिक्रमण’

चीफ जस्टिस ने कहा कि लोग पैसे कमाने के लिए अतिक्रमण करते रहते हैं और दुकानें लगाते रहते हैं. उन्होंने एएसआई से यह सुनिश्चित करने के लिए योजना बनाने को कहा कि आगे कोई अतिक्रमण न हो. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि पता करते हैं कि कौन सी (इमारतें) नयी बनी हैं और कौन सी पुरानी हैं.’’

एक वकील ने कहा कि इन स्मारकों को संरक्षित घोषित नहीं किया गया है, इसलिए अगर इनका मरम्मत किया जाता है तो कोई समस्या नहीं है. पीठ ने कहा, “मरम्मत के लिए मौजूदा कानूनों के तहत अनुमति की आवश्यकता होगी. एएसआई ने अंतरिम स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है. मूल संरचना जैसी थी, उसका पता लगाना और सत्यापन करना होगा. मामले को 28 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया जाए. एएसआई को आगे की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी और पक्ष अपनी आपत्तियां/अभ्यावेदन दाखिल कर सकते हैं. मौजूदा स्थल पर कोई निर्माण नहीं होना चाहिए.’’

एएसआई ने क्या कहा था?

एएसआई ने पहले कहा था कि पुरातत्व पार्क के अंदर ये दो ढांचे धार्मिक महत्व रखते हैं, क्योंकि मुस्लिम श्रद्धालु प्रतिदिन आशिक अल्लाह दरगाह और सूफी संत बाबा फरीद की चिल्लागाह में जाते हैं. एएसआई ने कहा था कि यह मकबरा पृथ्वीराज चौहान के किले के करीब है और प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत 200 मीटर के विनियमित क्षेत्र में आता है. उसने कहा था कि किसी भी मरम्मत, या निर्माण कार्य के लिए सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है.

जुमलाना ने अपनी याचिका में कहा था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर इन ढांचों के ऐतिहासिक महत्व का आकलन किए बिना ही इन्हें ध्वस्त करने की योजना बनाई है. उन्होंने आठ फरवरी को दिए दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अगुवाई वाली धार्मिक समिति इस मामले पर विचार कर सकती है. जुमलाना ने तर्क दिया कि समिति किसी संरचना की प्राचीनता तय करने के लिए उपयुक्त मंच नहीं है.

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