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Uttarakhand News: उत्तराखंड के जंगलों के लिए संकट गहरा सकता है. पिछले साल 21 दिसंबर को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा जारी की गई. भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 में उत्तराखंड को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी. खासकर, जंगलों में आग के मामले में उत्तराखंड ने भारत में नंबर 1 स्थान हासिल किया था, जो कि वनाग्नि के मामलों में पहले 13वें नंबर पर था. यही नहीं, उत्तराखंड में जंगलों के स्वास्थ्य को लेकर स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है.

उत्तराखंड वन विभाग द्वारा जंगलों के संरक्षण और संवर्धन के लिए बनाई जाने वाली कार्य योजनाओं की अनदेखी की जा रही है. वन विभाग का सबसे अहम कार्य है वनों का संरक्षण और संवर्धन, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस कार्य से जुड़ी योजना बनाने में हिस्सा लेने से कतराते हैं. यह स्थिति उस समय सामने आई है, जब वन विभाग में कोई भी छोटा सा कार्य भी बिना इस योजना के लागू नहीं किया जा सकता. 

वन विभाग का फ्यूचर प्लान जंगलों की सेहत के लिए अहम
वन विभाग द्वारा वनों के लिए तैयार किया जाने वाला फ्यूचर प्लान जंगलों की सेहत के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस प्लान में जंगलों के अगले 10 सालों के भविष्य को निर्धारित किया जाता है, जिसमें मिट्टी, कार्बन, नमी और अन्य पहलुओं का अध्ययन किया जाता है. इस योजना में वानिकी से लेकर जंगलों के प्रत्येक कार्य को लिखित रूप में निर्धारित किया जाता है. हालांकि, इस महत्वपूर्ण काम को पूरा करने के लिए विभाग में अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी महसूस हो रही है.

उत्तराखंड के तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्र के लिए तैयार किया जाने वाला वर्किंग प्लान अभी भी अधर में लटका हुआ है. इन क्षेत्रों के वर्किंग प्लान को दिसंबर 2023 में शुरू किया गया था, लेकिन अब तक इस कार्य के लिए आवश्यक अधिकारी और कर्मचारी तैनात नहीं हो पाए हैं. ऐसे में अब यह संभावना जताई जा रही है कि निर्धारित समयसीमा के भीतर इन क्षेत्रों के लिए वर्किंग प्लान तैयार नहीं हो पाएंगे.

वर्किंग प्लान होती है एक विशेष प्रक्रिया
वर्किंग प्लान तैयार करने की एक विशेष प्रक्रिया होती है. सबसे पहले प्राथमिक वर्किंग प्लान पर काम किया जाता है, जिसमें पिछले 10 सालों के दौरान वर्किंग प्लान के तहत किए गए कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है. फिर, वर्किंग प्लान ऑफिसर और अन्य संबंधित अधिकारियों की तैनाती की जाती है. हालांकि, तराई मध्य और पश्चिम के लिए वर्किंग प्लान ऑफिसर की तैनाती के बावजूद, अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती अब तक नहीं हो पाई है, जिसके कारण यह कार्य लंबित पड़ा है.

वर्किंग प्लान तैयार करना एक कठिन कार्य है, जिसमें फील्ड सर्वे और लिखित दस्तावेज तैयार करने की जिम्मेदारी होती है. हालांकि, वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस महत्वपूर्ण कार्य से बचते नजर आ रहे हैं. प्रमुख वन संरक्षक हॉफ धनंजय मोहन का कहना है कि प्रत्येक अधिकारी की अपनी पसंद होती है, और जब भी किसी अधिकारी की तैनाती वर्किंग प्लान के लिए की जाती है, तो उसे यह कार्य अनिवार्य रूप से करना पड़ता है. यदि वर्किंग प्लान समय पर तैयार नहीं होते हैं, तो इसका सीधा असर जंगलों की सेहत पर पड़ सकता है. वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्ययोजनाओं की समय पर तैयारी बेहद आवश्यक है. ऐसे में, यदि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस कार्य से जुड़ने में हिचकिचाते हैं, तो इसे एक गंभीर समस्या के रूप में लिया जाना चाहिए. 

वर्किंग प्लान पर निर्भर करेगा जंगलों का भविष्य
वन विभाग को वर्किंग प्लान को प्राथमिकता देते हुए इसे समय पर पूरा करने के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे. इसके लिए मुख्यालय स्तर पर वर्किंग प्लान के कार्यों को प्राथमिकता देते हुए, इस काम के लिए अलग से अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती करना बेहद जरूरी है. उत्तराखंड के जंगलों का भविष्य वर्किंग प्लान की सफलता पर निर्भर करता है. यदि इसे समय पर और सही तरीके से तैयार नहीं किया जाता, तो जंगलों की सेहत और पर्यावरण पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. ऐसे में विभाग को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि जंगलों की सेहत को बचाया जा सके और भविष्य में वनों के संरक्षण की दिशा में बेहतर काम किया जा सके.

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