NDTV Explanier: सैफ को कैसे लग सकती है 15 हजार करोड़ रुपये की चपत? जान लीजिए शत्रु संपत्ति क्या होती है
Saif Ali Khan New Problem: सैफ अली खान को 15 हज़ार करोड़ की चपत लग सकती है. ये संपत्ति भोपाल राज परिवार की रही है और इस पर अब पटौदी परिवार के वारिस और अभिनेता सैफ़ अली ख़ान दावा करते हैं, लेकिन क़ानून ऐसा है कि उसे सरकार द्वारा बेचे जाने का ख़तरा मंडरा रहा है. जिस संपत्ति पर सैफ़ अली ख़ान दावा कर रहे हैं, उसे शत्रु संपत्ति क्यों कहा जा रहा है और ये विवाद है क्या… इसे जानने से पहले हमें थोड़ा इतिहास में जाना होगा…
भोपाल के आख़िरी नवाब थे हमीदुल्लाह ख़ान, जो मोहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी थे. अलग पाकिस्तान देश बनाने के जिन्ना के अभियान में उन्होंने भी काफ़ी साथ निभाया था. ऐतिहासिक दस्तावेज़ कहते हैं कि नवाब हमीदुल्लाह ने पाकिस्तान में शामिल होने का मन बना लिया था. उस समय भोपाल ब्रिटिश भारत की दूसरी सबसे बड़ी इस्लामिक रियासत थी, लेकिन चारों ओर ज़मीन से घिरे यानी Land locked भोपाल को लेकर उनकी योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पाईं. जिन्ना ने भी भाव नहीं दिया और वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी साथ नहीं दिया. नवाब हमीदुल्लाह ख़ान का 1960 में निधन हुआ. उनकी तीन बेटियां थीं. सबसे बड़ी आबिदा सुल्तान विभाजन के बाद 1950 में पाकिस्तान चली गईं. वहां की नागरिक बन गईं.
सैफ क्यों कर रहे संपत्ति पर दावा
उनकी दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान भारत में ही रहीं. पिता की संपत्ति की वारिस बनीं. उन्होंने नवाब इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी से शादी की. भारत और इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेल चुके नवाब इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी के बेटे मंसूर अली ख़ान पटौदी को दुनिया टाइगर पटौदी के नाम से जानती है. वही टाइगर पटौदी, जिनकी बल्लेबाज़ी और कप्तानी की दुनिया आज तक मुरीद है. उन्होंने मशहूर अदाकारा शर्मिला टैगोर से शादी की. अभिनेता सैफ़ अली ख़ान इस दंपती के बेटे हैं.
इस लिहाज से सैफ़ अपनी दादी साजिदा का पोता होने के नाते भोपाल में उनकी संपत्तियों के वारिस माने गए, लेकिन सरकार ने इस मामले में साजिदा के बजाय आबिदा सुल्तान को वारिस मानते हुए उनके पाकिस्तान चले जाने की बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया और इस आधार पर भोपाल में हमीदुल्लाह ख़ान की संपत्तियों के शत्रु संपत्ति होने का दावा किया.
इन आलीशान संपत्तियों की क़ीमत क़रीब 15 हज़ार करोड़ रुपये है. इन संपत्तियों में वो फ़्लैग स्टाफ़ हाउस है, जहां सैफ़ अली ख़ान ने अपना बचपन बिताया. नूर उस सबाह पैलेस नाम का एक आलीशान होटल है. इसके अलावा दार उस सलाम, Bungalow of Habibi, Ahmedabad Palace, and Kohefiza नाम की संपत्तियां भी इस शत्रु संपत्ति में शामिल हैं. 2014 में Custodian of Enemy Property Department ने पटौदी परिवार की भोपाल की संपत्तियों को शत्रु संपत्ति के तौर पर नोटिस दिया. सैफ़ अली ख़ान और उनकी मां शर्मिला टैगोर ने सरकार के कस्टोडियन के इस नोटिस को चुनौती दी.
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट सैफ़ अली ख़ान की इस याचिका पर 2015 से सुनवाई कर रहा था. इस बीच 2016 में सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें साफ़ कर दिया गया कि वारिस चाहे भारतीय ही क्यों न हो, उसका ऐसी संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं होगा. पिछले साल 13 दिसंबर को सरकार ने भोपाल हाइकोर्ट को जानकारी दी कि शत्रु संपत्ति से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए एक अपीलीय अथॉरिटी बनाई गई है.
बचेगी या जाएगी
इसके बाद हाइकोर्ट के जज जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा कि दोनों पक्ष 30 दिन के अंदर अपीलीय अथॉरिटी में अपना पक्ष पेश कर सकते हैं. अभी ये साफ़ नहीं है कि तीस दिन के अंदर यानी इस साल 12 जनवरी तक सैफ़ अली ख़ान अपील में गए या नहीं. 15 और 16 जनवरी की दरम्यानी रात अपने घर में हुए हमले में सैफ़ घायल हो गए. अब काफ़ी ठीक हैं. उन्होंने अपील की या नहीं, ये जानकारी आनी बाकी है.
इस बीच 12 जनवरी की मीयाद गुज़र जाने के कारण पटौदी परिवार की इस संपत्ति को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या अपनी दादी के मार्फ़त मिल रही 15 हज़ार करोड़ की ये विरासत शत्रु संपत्ति होने के नाते सैफ़ अली ख़ान के हाथ से छिन जाएगी. आख़िर शत्रु संपत्ति क़ानून में ऐसा है क्या कि सैफ़ के हाथ से दादी की संपत्ति छिन सकती है. इस क़ानून को समझते हैं कि ये कैसे बना और बदलता गया…
दरअसल 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1968 में संसद ने ये क़ानून बनाया. इसका मक़सद था ऐसे व्यक्तियों या संस्थाओं की चल-अचल संपत्तियों का नियमन करना यानी regulate करना जिन्हें शत्रु प्रजा (enemy subjects) या शत्रु फर्म (enemy firm) माना गया. ये व्यक्ति या संस्थाएं, 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के कारण शत्रु देश कहे गए पाकिस्तान और चीन चले गए थे. उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति यानी Enemy Property माना गया.
इन सभी संपत्तियों को 1962 के Defence of India Rules के तहत सरकार ने अपने कब्ज़े में ले लिया और इन्हें गृह मंत्रालय के तहत एक विभाग Custodian of Enemy Property for India (CEPI) यानी शत्रु संपत्ति संरक्षक के हवाले कर दिया गया. 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए ताशकंद समझौते में ऐसी संपत्तियों को एक दूसरे को सौंपने पर विचार किया गया, लेकिन पाकिस्तान ने 1971 में एकतरफ़ा अपने यहां मौजूद ऐसी संपत्तियों को ठिकाने लगा दिया या बेच दिया, लेकिन भारत ने Enemy Property Act के तहत इन संपत्तियों को बनाए रखा.
तो Enemy Property Act भारत सरकार को अधिकार देता है कि वो तमाम राज्यों में शत्रु संपत्ति घोषित की गई संपत्तियों को अपने अधिकार में ले और उनका मैनेजमेंट करे ताकि उनका इस्तेमाल देश के हितों के ख़िलाफ़ न हो पाए, लेकिन इस क़ानून को पाकिस्तान में बस चुके लोगों के ऐसे वारिसों जो भारतीय नागरिक हैं, उन्होंने लगातार चुनौती दी और संपत्ति का वारिस होने का दावा किया.
इसी के मद्देनज़र सरकार ने 2017 में इस क़ानून में संशोधन किया और इसे और सख़्त बना दिया. इसके तहत enemy subject” और “enemy firm की परिभाषाओं को व्यापक किया गया. इनमें शत्रु प्रजा या शत्रु फर्म के क़ानूनी वारिस को भी शामिल कर लिया गया चाहे वो भारत का नागरिक हो या किसी ग़ैर शत्रु देश का नागरिक… इसका मतलब था कि संपत्ति छोड़कर पाकिस्तान चले गए किसी व्यक्ति का वारिस अगर भारतीय भी हो तो भी वो उस संपत्ति का हक़दार नहीं होगा.
यानी 2017 के संशोधन ने ये साफ़ कर दिया कि शत्रु संपत्ति हर हाल में सरकार के कब्ज़े में ही रहेगी, चाहे शत्रु प्रजा या शत्रु फर्म निधन के कारण न रहे, विलुप्त हो जाए या उस फर्म का कारोबार बंद हो जाए… इस संशोधन का मक़सद था ऐसी सभी संपत्तियों के वारिस होने के दावों को खारिज कर देना… उन संपत्तियों को सरकार के कब्ज़े में रखना.
हालांकि, इस क़ानून का इस आधार पर विरोध होता रहा कि ये निजी संपत्ति के अधिकारों का हनन है, जबकि शत्रु संपत्ति क़ानून के समर्थक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसे ज़रूरी मानते हैं. शत्रु संपत्ति क़ानून को चुनौती देने से जुड़े कई मामले समय समय पर देश की अदालतों के सामने आते रहे हैं.
इनमें से एक मशहूर केस है 2005 का राजा महमूदाबाद से जुड़ा केस, जिसे केंद्र सरकार बनाम राजा मोहम्मद आमिर मोहम्मद ख़ान केस नाम से जाना जाता है. दरअसल, महमूदाबाद के राजा की उत्तर प्रदेश में अरबों की संपत्ति थी. लखनऊ के हज़रतगंज, सीतापुर और उत्तराखंड के नैनीताल में उनकी बड़ी जायदाद थी. लखनऊ के पॉश हज़रतगंज इलाके का बड़ा हिस्सा उनकी ही ज़मीन पर बसा है. यहां का बटलर पैलेस, हलवासिया मार्केट सब उनकी ही संपत्ति रहे. महमूदाबाद का किला भी उनकी विरासत में था, लेकिन 1947 के विभाजन के बाद महमूदाबाद के राजा 1957 में पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली. हालांकि उनकी पत्नी और बेटा भारत में ही रहे, भारत के नागरिक बने रहे, लेकिन 1968 में जब शत्रु संपत्ति क़ानून बना तो महमूदाबाद के राजा की संपत्तियों को सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया. महमूदाबाद के राजा के निधन के बाद उनके बेटे मोहम्मद आमिर मोहम्मद ख़ान ने पिता की संपत्तियों पर दावा किया और उन्हें शत्रु संपत्ति घोषित करने को क़ानूनी चुनौती दी. 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फ़ैसला किया और कहा कि बेटा भारतीय नागरिक है, इसलिए वो अपने पिता की संपत्ति का हक़दार है. इसलिए इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति नहीं माना जा सकता क्योंकि उसका हक़दार वारिस भारत का नागरिक है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद देश भर में ऐसे कई नए दावे सामने आ गए. पाकिस्तान जा चुके कई लोगों की संपत्तियों के लिए उनके भारत स्थित रिश्तेदारों ने दावे करने शुरू कर दिए. इसके बाद सरकार के सामने इन संपत्तियों का रख रखाव चुनौती बनने लगा. इसी को रोकने के लिए 2010 में भारत सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया. हालांकि इसे क़ानून बनाने से जुड़ा 2010 का विधेयक पास नहीं हो सका.
इसके बाद 2016 में मोदी सरकार फिर एक अध्यादेश लेकर आई, जो 2017 में The Enemy Property (Amendment and Validation) Act के तौर पर क़ानून बन गया. इस क़ानून के तहत अदालतों के उन सभी पुराने फ़ैसलों को खारिज कर दिया गया, जिनके तहत अदालतों ने शत्रु संपत्ति को लौटाने के आदेश दिए थे. क़ानून ने ये साफ़ किया कि वारिस की नागरिकता चाहे जो हो, शत्रु संपत्ति कस्टोडियन यानी सरकार के पास ही रहेगी.
क्या होगा इन संपत्तियों का
इसके बाद 2018 में शत्रु संपत्ति के डिस्पोज़ल यानी उसे निपटाने या बिक्री से जुड़े दिशा निर्देश जारी किए गए. इसमें सरकार के पास मौजूद ऐसी संपत्तियों की बिक्री की प्रक्रिया तय की गई. शत्रु संपत्तियों की एक बड़ी लिस्ट और उनकी क़ीमतें केंद्र सरकार को सौंपी गई. डीएम की अध्यक्षता में कमेटियों ने सर्किल रेट और अन्य पहलुओं के आधार पर इन संपत्तियों की क़ीमतें तय कीं. इसके बाद इन्हें बेचा जाए या ट्रांसफ़र किया जाए या फिर मौजूदा स्थिति में बहाल रखा जाए इसका सुझाव देने के लिए वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की एक कमेटी बनी, जिसे The Enemy Property Disposal Committee कहा गया. इसके तहत खाली संपत्तियों को सबसे बड़ी बोली लगाने वालों को बेचा जा सकता है या किसी संपत्ति पर अगर कोई रह रहा है तो उसी व्यक्ति को वो संपत्ति कमेटी द्वारा निर्धारित क़ीमत पर ख़रीदने का प्रस्ताव दिया जा सकता है. चल संपत्तियां जैसे शेयर वगैरह सार्वजनिक नीलामी, टेंडर या अन्य तरीकों से बेचे जा सकते हैं. बिक्री से मिला पैसा भारत सरकार के Consolidated Fund of India में जमा होगा.
भारत में शत्रु संपत्ति कही गई जायदाद सरकार के ही हाथ में रहेगी, लेकिन पाकिस्तान में क्या हो रहा है… पाकिस्तान से भी भारत में लाखों लोग आए.उनकी संपत्ति का क्या हाल है…
2019 में पाकिस्तान की जियो न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक कराची, लाहौर, इस्लामाबाद जैसे कई इलाकों में ऐसी हज़ारों संपत्तियां थीं, जिन्हें छोड़कर लोग भारत आए. इनमें से अधिकतर हिंदू थे. इनमें लोगों के मकान, हवेलियां, कारोबार, खेती की ज़मीन सब कुछ थे… पाकिस्तान की सरकार ने भी इन्हें शत्रु संपत्ति घोषित किया और 1970 में इनकी देखरेख के लिए Enemy Properties Cell (EPC) बनाया. जियो न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 95% संपत्तियों पर पाकिस्तान के प्रभावशाली लोगों ने ग़ैर क़ानूनी तरीके से कब्ज़ा कर लिया है. रिपोर्ट के मुताबिक इसमें लाखों एकड़ ज़मीन शामिल है, हज़ारों प्लॉट, इमारतें शामिल हैं… कई जगहों पर तो पुरानी इमारतों को मिट्टी में मिलाकर उनमें नई इमारतें बना ली गई हैं. पाकिस्तान के तत्कालीन संचार मंत्री मुराद सईद ने माना था कि उनकी सरकार अवैध कब्ज़ा करने वालों से संपत्तियां वापस लेने में नाकाम रही है.
जिन्ना और मुशरर्फ की जायदाद
उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले में एक गांव है कोटना बंगार गांव. इस गांव की 13 बीघा ज़मीन परवेज़ मुशर्रफ़ के परिवार की है. पिछले साल 12 सितंबर को खेती की इस ज़मीन पर एक नोटिस लग गया. नोटिस के मुताबिक इस ज़मीन को ई ऑक्शन यानी इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के ज़रिए बेचने का निर्देश दिया गया था. आपको बता दें कि परवेज़ मुशर्रफ़ का जन्म आज़ादी से पहले 1943 में दिल्ली के दरियागंज इलाके में हुआ था और उनके घर को नहर वाली हवेली कहा जाता था. 2001 मे भारत दौरे पर आए मुशर्रफ़ अपने बचपन के इस घर भी गए थे. वैसे एक दिलचस्प बात ये है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मुंबई में मालाबार हिल्स की संपत्ति जिन्ना हाउस को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति नहीं माना. जुलाई 2018 में गृह मंत्रालय में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि जिन्ना हाउस शत्रु संपत्ति क़ानून 1968 के तहत नहीं आता. सरकार के मुताबिक Administration of Evacuee Property Act, 1950 के तहत ये evacuee property’ है. यानी ऐसे व्यक्ति की संपत्ति जो विभाजन से पहले के भारत में कहीं रह रहा था और सांप्रदायिक तनावों की वजह से तब देश छोड़कर चला गया. इसलिए ये भारत सरकार की संपत्ति है. उधर पाकिस्तान सरकार मुंबई के जिन्ना हाउस को अपनी संपत्ति बताते हुए उसे भारत से वापस दिए जाने की मांग करती रही है.
भारत में कितनी शत्रु संपत्तियां
- भारत में ऐसी क़रीब 12,611 संपत्तियां हैं, जिन्हें शत्रु संपत्तियां कहा जाता है… जिनकी कुल क़ीमत लगभग एक लाख करोड़ रुपये है.
- इनमें सबसे ज़्यादा 6,041 शत्रु संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं, जिनमें से अकेले लखनऊ में 361 संपत्तियां हैं.
- दूसरे स्थान पर सबसे ज़्यादा 4,354 पश्चिम बंगाल में हैं.
- चीनी नागरिकता ले चुके लोगों की 126 संपत्तियों में से सबसे अधिक 57 मेघालय में हैं.
- 29 पश्चिम बंगाल में और 7 संपत्तियां असम में हैं.