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Toxic waste disposal from union carbide Bhopal Gas Tragedy safety measures and environmental impact


Gas Tragedy Waste Management: भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद बुधवार (1 जनवरी) रात को यूनियन कार्बाइड कारखाने से करीब 377 टन जहरीला अपशिष्ट निपटान के लिए ट्रांसफर किया गया. ये कदम अत्यधिक जहरीले अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान की दिशा में एक अहम कदम है. 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में ये कचरा भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में भेजा जा रहा है. जानकारी के अनुसार इस प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है ताकि ट्रक बिना रुके अपनी मंजिल तक पहुंच सकें.

भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि कचरे को ले जाने वाले ट्रक रात करीब नौ बजे यात्रा पर निकल पड़े हैं. ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से ट्रकों को सात घंटे के अंदर पीथमपुर पहुंचने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि इस निपटान प्रक्रिया में करीब 100 लोग शामिल थे जिन्होंने 30 मिनट की शिफ्टों में कचरे को पैक किया और ट्रकों में लादा. इन कर्मियों की स्वास्थ्य जांच की गई और उन्हें हर 30 मिनट में आराम दिया गया.

1984 में भोपाल गैस त्रासदी का भयावह असर

यूनियन कार्बाइड कारखाने से 2-3 दिसंबर 1984 की रात अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का लीकेज हुआ था, जिससे लगभग 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग अपंग हो गए थे. ये घटना दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है. इस घटना के बाद से भोपाल में कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन कचरे का निपटान एक लंबी प्रक्रिया बन गई थी.

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की कड़ी चेतावनी

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने को खाली न करने के लिए अधिकारियों की निंदा की थी और कहा था कि ये उदासीनता एक और त्रासदी की वजह बन सकती है. न्यायालय ने जहरीले कचरे को ट्रांसफर करने के लिए चार सप्ताह की समय सीमा निर्धारित की थी और चेतावनी दी थी कि अगर निर्देशों का पालन नहीं किया गया तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी.

कचरे के निपटान के लिए सुरक्षा उपाय

स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा कि शुरुआत में कुछ अपशिष्ट को पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में जलाया जाएगा और उसके बाद अवशेष की जांच की जाएगी कि उसमें कोई हानिकारक तत्व बचा है या नहीं. एक बार ये पुष्टि हो जाने पर राख को दो-परत की लेयर से ढक दिया जाएगा और ये सुनिश्चित किया जाएगा कि ये किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए. इस प्रक्रिया की निगरानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की ओर से की जाएगी.

कचरा निपटान को लेकर स्थानीय लोगों की चिंताएं

कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने 2015 में पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड कचरे के जलाने के परीक्षण के बाद आसपास के गांवों में प्रदूषण के आरोप लगाए थे. हालांकि सिंह ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि सभी परीक्षणों और आपत्तियों की जांच के बाद ही ये फैसला लिया गया है कि कचरे का निपटान पीथमपुर में किया जाएगा. उन्होंने स्थानीय लोगों को आश्वस्त किया कि इस प्रक्रिया में कोई सुरक्षा जोखिम नहीं है. इस प्रक्रिया के खिलाफ रविवार (29 दिसंबर) को पीथमपुर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया.

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