Rajya Sabha MP Sikander kumar demand shrine board formed in manimahesh in chamba also like vaishno devi ANN
Himachal Pradesh News: संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में मंगलवार को हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा के मणिमहेश यात्रा का मामला गूंजा. राज्यसभा सांसद डॉ. सिकंदर कुमार ने मणिमहेश आने वाले यात्रियों की परेशानी के समाधान की मांग राज्यसभा में उठाई. इस दौरान उन्होंने वैष्णो देवी और अमरनाथ की तर्ज पर मणिमहेश में भी श्राइन बोर्ड के गठन की मांग उठाई, ताकि श्रद्धालुओं की परेशानी को कम किया जा सके. राज्यसभा सांसद को शाम 5:45 पर राज्यसभा में बोलने का मौका मिला. जिस वक्त उन्होंने सदन में यह मांग उठाई, उस वक्त डॉ. सस्मित पात्रा पीठासीन थे.
डॉ. सिकंदर कुमार ने कहा, “मणिमहेश यात्रा एक बहुत ही पवित्र और कठिन यात्रा है, जो अगस्त महीने में शुरू होती है. यह यात्रा हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा तहसील भरमौर में है. यह यात्रा यहां के स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है. हर साल लाखों श्रद्धालु मणिमहेश के दर्शन करने के लिए आते हैं, लेकिन यहां की सुविधाओं की कमी एक बड़ी समस्या है. श्रद्धालुओं के लिए चिकित्सा, स्वास्थ्य, हेलीकॉप्टर, परिवहन, आवास, शौचालय, बिजली जैसी आवश्यक सुविधाओं की कमी है. इसके अलावा यहां ट्रैफिक जाम की समस्या भी बहुत बड़ी है. इसका समाधान नेशनल हाईवे- 154-A का विस्तार कर किया जा सकता है.”
आज संसद मे जिला चंबा के मणिमहेश के दर्शनों के लिए यात्रियों को आने बाली समस्याओं के निवारण को प्रमुखता से उठाया! pic.twitter.com/PJm8l4Tall
— Prof (Dr) Sikander Kumar (@SikanderBJP) December 3, 2024
उन्होंने कहा, “मैं भारत सरकार से आग्रह करता हूं कि मणिमहेश यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए यहां पर चिकित्सा, स्वास्थ्य, संचार, बिजली, हेलीकॉप्टर, परिवहन, आवास, शौचालय जैसी आवश्यक सुविधाओं का प्रबंध किया जाए. साथ ही वैष्णो देवी और अमरनाथ श्राइन बोर्ड की तरह ही यहां भी श्राइन बोर्ड की स्थापना की जाए.”
भरमौर से 21 किलोमीटर की है दूरी
मणिमहेश झील बुद्धिल घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर की दूरी पर है. यह झील कैलाश पीक (18 हजार 564 फीट) के नीचे 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. हर साल भाद्रपद के महीने में हल्के अर्द्धचंद्र आधे के आठवें दिन इस झील पर एक मेला आयोजित किया जाता है. इस दिन शिव भक्त यहां पवित्र जल में डुबकी लेने के लिए इकट्ठा होते हैं. भगवान शिव इस मेले के अधिष्ठाता देवता हैं.
माना जाता है कि वह कैलाश में रहते हैं. कैलाश पर एक शिवलिंग के रूप में एक चट्टान को भगवान शिव की अभिव्यक्ति माना जाता है. स्थानीय लोगों पर्वत के आधार पर बर्फ के मैदान को शिव का चौगान कहते हैं. कैलाश पर्वत को अजय माना जाता है. अब तक इस चोटी को मापने में कोई सफल नहीं हुआ है.
कैलाश से जुड़ी हैं अलग-अलग कहानी
कैलाश से जुड़ी हुई एक कहानी है कि एक बार एक गद्दी ने भेड़ के झुंड के साथ पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की और वह अपनी भेड़ों के साथ पत्थर में बदल गया है. माना जाता है कि प्रमुख चोटी के नीचे छोटे चोटियों की श्रृंखला दुर्भाग्यपूर्ण चरवाहा और उसके झुंड के अवशेष हैं. एक अन्य किंवदंती है कि सांप ने भी इस चोटी पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी असफल रहा और पत्थर में बदल गया.
यह भी माना जाता है कि शिव भक्त कैलाश की चोटी केवल तभी देख सकते हैं, जब भगवान प्रसन्न होते हैं. खराब मौसम में जब चोटी बादलों के पीछे छिप जाती है, तो इसे भगवान की नाराजगी का संकेत माना जाता है.
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