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Supreme Court verdict Disciplinary action cannot be taken against retired employee


Supreme Court On Retired Employee: सरकारी कर्मचारियों से जुड़े एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई रिटायरमेंट के बाद नहीं शुरू की जा सकती है. इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने एक पूर्व अधिकारी के खिलाफ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की याचिका को ठुकरा दिया है.

1973 में क्लर्क के रूप में स्टेट बैंक में नियुक्त होने वाले कर्मचारी को बाद में कई प्रमोशन मिले. 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति के समय तक वह मैनेजर रैंक के अधिकारी हो चुके थे. बैंक ने उनको सेवा विस्तार दिया, जो अक्टूबर, 2010 में खत्म हुआ. इस दौरान उन पर बैंक के नियमों के विरुद्ध जाकर अपने रिश्तेदारों को लोन देने के आरोप लगे. मार्च, 2011 में बैंक ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की. मार्च, 2012 में उनकी बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया गया.

‘रिटायरमेंट के बाद शुरू हुई कार्रवाई अवैध’
इसके खिलाफ अधिकारी ने बैंक की अपीलेट अथॉरिटी के पास अपील की, लेकिन उनकी अपील खारिज हो गई. इसके बाद उन्होंने झारखंड हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की. हाई कोर्ट के सामने स्टेट बैंक ने दलील दी कि अधिकारी को अगस्त, 2009 में ही नोटिस जारी किया गया था. उसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था. हाई कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने इसे नहीं माना. हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ नोटिस देना अनुशासनात्मक कार्रवाई की शुरुआत नहीं माना जा सकता. अधिकारी के खिलाफ मार्च, 2011 में चार्ज मेमो दाखिल हुआ. यह अनुशासनात्मक कार्रवाई की शुरुआत थी. रिटायरमेंट के बाद शुरू हुई कार्रवाई अवैध है. हाई कोर्ट की डबल बेंच ने भी सिंगल जज के फैसले को सही ठहराया.

बेंच ने स्टेट बैंक ऑफिसर्स सर्विस रूल्स का दिया हवाला 
इसके बाद स्टेट बैंक सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. अब इस मामले पर जस्टिस अभय ओका और उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने फैसला दिया है. बेंच ने स्टेट बैंक ऑफिसर्स सर्विस रूल्स के रूल 19(3) का हवाला दिया है. यह नियम कहता है कि किसी अधिकारी के रिटायरमेंट से पहले शुरू हुई कार्रवाई ही जारी रखी जा सकती है. जजों ने कहा कि अगर एक्शन अधिकारी के नौकरी में रहते शुरू हुआ हो, तो उसके पूरे होने तक अधिकारी को नौकरी में ही माना जाएगा, लेकिन अगर चार्ज मेमो रिटायरमेंट के बाद जमा किया गया हो, तो उसकी कोई वैधता नहीं रह जाती.

जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की तरफ से लिखे फैसले में 1991 के ‘भारत सरकार बनाम के.वी. जानकीरमन’ और 1997 के ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम सी.बी.ढल’ फैसलों का भी उल्लेख किया गया है. कोर्ट ने माना है कि यह अपने आप में एक स्थापित व्यवस्था है कि रिटायरमेंट के बाद कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू नहीं हो सकती. अगर वह पहले से चल रही हो, तो उसे जारी रखा जा सकता है.

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