Will marital rape become a crime Supreme Court will start hearing on the historic case from 17 October
Marital Rape Case: सुप्रीम कोर्ट गुरुवार (17 अक्टूबर) को इस सवाल से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा कि क्या किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने पर कानूनी संरक्षण मिलना जारी रहना चाहिए. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बुधवार को कहा कि वह 17 अक्टूबर को याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी.
वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में डालने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केंद्र के विरोध के मद्देनजर यह सुनवाई महत्वपूर्ण है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि अगर किसी शख्स की ओर से अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध को ‘‘बलात्कार’’ के रूप में दंडनीय बना दिया जाता है तो इससे शादीशुदा संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है और शादी नाम की संस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
‘सबसे पहले होगी वैवाहिक बलात्कार मामले की सुनवाई’
कुछ वादियों की ओर से सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने दिन की कार्यवाही के अंत में पीठ के सामने इन याचिकाओं का उल्लेख किया, क्योंकि दिन में इनका उल्लेख नहीं किया जा सका था. चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘वैवाहिक बलात्कार का मामला सुनवाई के लिए सबसे पहले लिया जाएगा, हम कल से सुनवाई शुरू करेंगे.’’
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जब स्थगन की मांग की तो चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘यह पूर्व निर्धारित मामला है, उन्हें कल से इसे शुरू करने दें. इस मामले को पहले भी कई बार तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेखित किया गया है.’’
अभी क्या है प्रावधान?
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) से प्रतिस्थापित किया गया है, पति की ओर से अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, अगर पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है. यहां तक कि नये कानून के तहत भी, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 में कहा गया है कि ‘‘पति की ओर से अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, अगर पत्नी 18 साल से कम उम्र की न हो, बलात्कार नहीं है.’’
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया था नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने 16 जनवरी 2023 को आईपीसी के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने की स्थिति में पति को जबरन यौन संबंध बनाने पर अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है. अदालत ने 17 मई को, इस मुद्दे पर बीएनएस के प्रावधान को चुनौती देने वाली इसी तरह की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. केंद्र के मुताबिक, इस मामले के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं.
इनमें से एक मामला 11 मई 2022 को इस मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट के खंडित फैसले के बाद एक महिला की ओर से दायर अपील है. फैसला सुनाते हुए, जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की थी, क्योंकि इस मामले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं, जिनपर सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसला किये जाने की जरूरत है.
कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के बाद, वैवाहिक बलात्कार के मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति की ओर से एक और याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोपों से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के विरुद्ध है. याचिकाओं का एक और समूह आईपीसी प्रावधान के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं हैं, जो आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देती हैं.
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