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Supreme Court Sets Aside Murder Conviction In 2006 Case says Eyewitness Identified Attackers Despite Power Outage its Unbelievable


सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने इस दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि जब सत्य और असत्य के बीच भेद करना असंभव हो जाता है तो दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने गवाहों की गवाही में विरोधाभासों को देखते हुए अभियुक्तों को बरी कर दिया. 

दरअसल,  यह मामला 2006 में महाराष्ट्र के सिंगी गांव के सरपंच की राजनीतिक हत्या से जुड़ा है. सरपंच और उनके परिवार पर उनके घर में ही कुल्हाड़ी और लाठियों से हमला किया गया था. इसमें उनकी मौत हो गई थी. जबकि परिवार के 9 लोग घायल हुए थे. यह हमला राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित था. 

कोर्ट ने पत्नी की गवाही को विश्वसनीय नहीं माना

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हमले के वक्त बिजली नहीं आ रही थी. हालांकि, मृतक की पत्नी ने दावा किया था कि सभी आरोपियों और हमले के दौरान उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियारों की पहचान करने के लिए पर्याप्त चांदनी थी.

जस्टिस संजय कुमार और अरविंद कुमार की बेंच ने पत्नी की गवाही को विश्वसनीय नहीं माना. बेंच ने कहा, पत्नी के विरोधाभासी बयानों ने उनकी विश्वसनीयता को कमजोर किया. बेंच ने कहा, भले ही चांदनी रोशनी थी, लेकिन यह विश्वास करना मुश्किल है कि अंधेरी रात में 22 लोग कुल्हाड़ियों और लाठियों से लैस होकर घर में हमला करने आए और इसके बाद हाथापाई और हमले के दौरान कोई यह पहचानने की स्थिति में होगा कि कौन किस पर और किस हथियार से हमला कर रहा था. 

सरपंच की हत्या के मामले में कुल 15 गवाह थे. इनमें से चार चश्मदीद थे. चश्मदीदों में मृतक की पत्नी, बेटा, भतीजा और भतीजे की पत्नी थे. मृतक की पत्नी ने दावा किया था कि हमले के वक्त उसका बेटा और बहू भी मौजूद थे और उन पर भी हमला किया गया, वे भी इसमें घायल हुए थे. 

हाईकोर्ट ने 6 आरोपियों को किया बरी

2008 में निचली अदालत ने 9 आरोपियों को दोषी करार दिया था. हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इनमें से 6 को बरी कर दिया था और तीन आरोपियों को सेक्शन 302, 149 और 148 आईपीसी के तहत दोषी बरकरार रखा था. इनमें से दो ने अपनी सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 

हाईकोर्ट ने 6 आरोपियों को इसलिए बरी कर दिया था, क्योंकि यह साबित नहीं हो पाया था कि मृतक का भतीजा और उसकी पत्नी क्राइम सीन पर मौजूद थे, ऐसे में कोर्ट ने उन्हें चश्मदीद मानने से इनकार कर दिया था. इसके अलावा मृतक के बेटे की गवाही खारिज कर दी गई क्योंकि उसने मृतक पर हमले के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषियों का अपराध पूरी तरह से मृतका की पत्नी की गवाही पर निर्भर करता है. अभियोजन पक्ष ने मुख्य चश्मदीद गवाह के रूप में बेटे की पत्नी से पूछताछ नहीं की. मृतक की पत्नी की गवाही पर संदेह करते हुए, कोर्ट ने कहा: घटना 08.04.2006 को शाम 7:30-8:00 बजे के बीच हुई और उस समय बिजली कटौती हुई थी. मृतक पर हमला उसके घर के आंगन में किया गया है, क्योंकि उसका शव भी वहीं मिला है. हालांकि, मृतका की पत्नी के बयान के अलावा कि उस समय चांदनी थी, उस तथ्य को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा कोई अन्य सबूत पेश नहीं किया गया है.



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