BJP win Haryana by changing Chief Minister nayab singh saini assembly seat
Haryana Vidhan Sabha Chunav: चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलने वाली बीजेपी ने हरियाणा चुनाव में नए मुख्यमंत्री की सीट ही बदल दी. अब हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी अपनी पुरानी सीट करनाल से चुनाव न लड़कर लाडवा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जिसपर पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. तो क्या ये बीजेपी का ओवर कॉन्फिडेंस है, जो उसे मुख्यमंत्री तक की सीट बदल देने के लिए प्रेरित कर रहा है या फिर इसके पीछे बीजेपी की कोई सियासी रणनीति, जिसके जरिए वो कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना चाहती है.
दरअसल, अपने पुराने नक्श-ए-कदम यानी गुजरात मॉडल को फॉलो करते हुए बीजेपी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर को बदल दिया. उनकी जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया. उन्हें न सिर्फ मुख्यमंत्री बनाया गया बल्कि विधानसभा सदस्य बनाने के लिए भी मनोहर लाल खट्टर की ही करनाल सीट खाली करवाई गई. वहां उपचुनाव हुए और नायब सिंह सैनी ने करीब 41 हजार के बड़े अंतर से जीत दर्ज कर कांग्रेस के सरदार तरलोचन सिंह को मात दी.
इतनी बड़ी जीत के बाद भी अब जब हरियाणा में विधानसभा के चुनाव है तो नायब सिंह सैनी की सीट बदल दी गई है. जिस करनाल सीट से नायब सिंह सैनी विधायक हैं, वहां से बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मीडिया सलाहकार रह चुके जगमोहन आनंद को टिकट दिया है. जबकि नायब सिंह सैनी के लिए सीट चुनी गई है कुरुक्षेत्र की लाडवा.
बीजेपी ने इतना बड़ा रिस्क क्यों लिया?
बीजेपी ने मुख्यमंत्री की सीट बदली है तो जाहिर है कि कुछ तो उस सीट में ऐसा है, जिसको लेकर बीजेपी इतनी आश्वस्त है कि विधानसभा चुनाव में उसने इतना बड़ा रिस्क लिया है. अब हो सकता है कि बीजेपी इस वजह से आश्वस्त हो कि कुरुक्षेत्र तो नायब सिंह सैनी का घर है. लिहाजा कुरुक्षेत्र की लाडना सीट से नायब सिंह सैनी की जीत तय है.
हो सकता है कि बीजेपी ने फैसला इस वजह से लिया हो कि नायब सिंह सैनी कुरुक्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं, तो उनकी अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभाओं में इतनी पकड़ तो होगी ही कि वो अपना चुनाव आसानी से निकाल सकें. होने को तो ये भी हो सकता है कि हर बार नायब सिंह सैनी अलग-अलग सीट से चुनाव लड़कर जीतते रहे हैं तो इस बार भी अलग सीट से चुनाव लड़कर जीत जाएं.
जैसे 2014 में अंबाला के नारायणगढ़ से विधायक बने, 2019 में कुरुक्षेत्र से सांसद बने और 2024 में करनाल से विधायक बने. तो इस बार लाडवा से भी वो विधायक बन ही जाएंगे.
भरोसा कहीं भारी न पड़ जाए
क्या सच में ये सब इतना आसान है? 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे तो बताते हैं कि लाडवा सीट बीजेपी के लिए इतनी भी आसान नहीं है. 2019 में इस लाडवा सीट से कांग्रेस की मेवा सिंह ने जीत दर्ज की थी और उन्होंने बीजेपी के डॉक्टर पवन सैनी को करीब 15 हजार वोटों से मात दी थी. इससे पहले 2014 में ये सीट बीजेपी के पास थी और उससे भी पहले साल 2009 में ये सीट इंडियन नेशनल लोकदल के शेर सिंह बरशामी के पास थी. ऐसे में लाडवा सीट पर इकतरफा जीत का भरोसा कहीं बीजेपी को भारी न पड़ जाए.
हालांकि, नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री का चेहरा हैं और लाडवा से उम्मीदवार भी तो बीजेपी को इस बात का भरोसा हो सकता है कि वोटों का बिखराव नहीं होगा और सैनी वोटों के साथ ही इलाके में बड़ी आबादी वाले जाट वोटरों को भी नायब सिंह सैनी अपने पाले में कर ही लेंगे.
बाकी टिकटों के ऐलान के बाद जिस तरह से बीजेपी में अभी भगदड़ हुई है वैसी भगदड़ या वैसा विरोध अगर लाडवा तक या कुरुक्षेत्र तक पहुंचता है तब बीजेपी के लिए अपने मुख्यमंत्री को बचाने की मुश्किल हो सकती है.
सावित्री जिंदल के बगावती तेवर
अभी तो हरियाणा बीजेपी ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मंत्री कर्णदेव कंबोज, रतिया के विधायक लक्ष्मण नापा, किसान मोर्चा के अध्यक्ष सुखविंदर श्योराण और बीजेपी युवा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं विधानसभा चुनाव प्रभारी अमित जैन का ही इस्तीफा हुआ है. देश की चौथी सबसे अमीर महिला और कुरूक्षेत्र से बीजेपी सांसद नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल ने भी बीजेपी से बगावत कर दी है.
अगर उनकी बगावती तेवर हिसार से निकलकर अपने बेटे नवीन के संसदीय क्षेत्र कुरुक्षेत्र तक आती है तो उसका असर लाडवा पर भी पड़ना तय है, जहां से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी बीजेपी के उम्मीदवार हैं.
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