क्या है MUDA केस, जिसमें सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा; राज्यपाल ने दी परमिशन
दिल्ली:
कर्नाटक में MUDA केस में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (CM Siddaramaiah) के खिलाफ मुकदमा चलेगा. राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है. वह जमीन के मामले में फंसे हुए हैं. बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और अहम पदों पर रहे. उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, सिद्धारमैया भले ही सीधे तौर पर इस लेनदेन से न जुड़े हों, लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल न किया हो ऐसा नहीं हो सकता.
केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेनदेन का मामला (MUDA Case) जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे, इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है. ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता.
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मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का पक्ष जानें?
सीएम सिद्धरमैया ने मामले में किसी भी भूमिका से इनकार करते हुए कहा था कि अगर उनकी नियत में खोट होता तो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहते हुए वो अपनी पत्नी की फाइल पर कार्रवाई कर सकते थे. अगर कुछ गलत था और नियमों की अनदेखी हुईं थी तो बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने उनकी पत्नी को प्लॉट्स क्यों दिए? सिद्धारमैया पहले ही कह चुके हैं कि वह इस मामले पर कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं.
क्या है MUDA केस?
मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी. उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था. लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था. यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई थी.
MUDA केस में सिद्धारमैया का क्या है रोल?
साल 1998 में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे. सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने साल 2004 में डेनोटिफाई 3 एकड़ 14 गुंटा ज़मीन के एक टुकड़े को खरीदा था. 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी. उस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे. इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया. लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. ऐसे में MUDA से हक़ की लड़ाई शुरू हुई.
साल 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे. उनके परिवार की तरफ़ से जमीन की अर्जी उन तक पहुंचाया गया. लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ये कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि लाभार्थी उनका परिवार है, इसीलिए वह इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे. 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास जब फाइल पहुंची. तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे. बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने MUDA के 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया.