Dalit MPs In Lok Sabha More Representation Politically and Economically Dominant Opposed Creamy Layer Know State Wise
SC-ST Reservation Creamy Layer: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अनसूचित जाति (एससी) अनसूचित जनजाति (एसटी) में उप-वर्गीकरण का रास्ता खोला था. जिसके बाद से देश में इस क्रीमी लेयर को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ गई. इसी क्रम में लोकसभा के अंदर दलित सांसदों का भी आंकड़ा सामने आया है जो राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं और इस उप-वर्गीकरण का विरोध किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 84 ऐसे लोकसभा सांसद हैं जो दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. इन सांसदों का राजनीतिक और आर्थिक रूप से दलित समुदाय और राज्यों में प्रभुत्व है. संसद में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और बिहार से सबसे ज्यादा दलित सांसद पहुंचे क्योंकि इन राज्यों में सबसे ज्यादा आरक्षित सीटें थीं. इसके बाद कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान से ये सांसद संसद पहुंचे.
किस राज्य से कितने सांसद?
सबसे ज्यादा 17 दलित सांसद उत्तर प्रदेश से लोकसभा में पहुंचे, इसके बाद पश्चिम बंगाल से 10, तमिलनाडु से 7, बिहार से 6, कर्नाटक से 5, महाराष्ट्र से 5, आंध्र प्रदेश से 4, मध्य प्रदेश से 4, पंजाब से 4 और राजस्थान से भी 4 दलित सांसद लोकसभा में पहुंचे.
सुप्रीम कोर्ट के उप-वर्गीकरण का किन दलित समुदायों ने किया विरोध
कई प्रमुख दलित समुदायों ने भी अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण का विरोध किया है. इसमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में माला, कर्नाटक में होलेया और तमिलनाडु और केरल में परैयार और पुलाया शामिल हैं. वहीं यूपी में मायावती की पार्टी बीएसपी जाटवों को अपने प्रमुख मतदाता आधारों में से एक मानती है, उसने भी कहा कि अनुसूचित जातियों का प्रस्तावित उप-वर्गीकरण “अनुचित” है.
यूपी में पासी और जाटवों ने 17 में से जीतीं 12 सीटें
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 17 सीटों में से पासी उम्मीदवारों ने सात और जाटवों ने पांच सीटें जीतीं. राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी में 16 प्रतिशत पासी हैं, जो जाटवों के बाद संख्यात्मक रूप से दूसरा सबसे बड़ा एससी समूह है. उत्तर प्रदेश से पांच अन्य दलित सांसद धनगर, खरवार, गोंड और वाल्मीकि समुदायों से हैं, जो शिक्षा और सरकारी नौकरियों और सेवाओं तक पहुंच के मामले में जाटवों से पीछे हैं.
पश्चिम बंगाल का हाल
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 10 एससी-आरक्षित सीटों में से छह पर जीत हासिल की, जबकि बीजेपी ने बाकी सीटें जीतीं. चार दलित सांसद नामशूद्र समुदाय से हैं, जिसे राज्य में प्रमुख एससी समूहों में से एक माना जाता है. दो राजबंशी सांसद और पौंड्रा समुदाय के एकमात्र सांसद ने जीत हासिल की. राज्य के अन्य तीन दलित सांसद सुनरी, माल और बागड़ी समुदायों से हैं, जो तुलनात्मक रूप से बाकी की तुलना में अधिक पिछड़े हैं.
बिहार से कितने दलित सांसद
बिहार में छह दलित सांसदों में से दुसाध और रबीदास समुदाय, जबकि एक-एक अधिक पिछड़े मुसहर और पासी समुदायों से हैं. बिहार में मुसहर गंभीर अभाव से पीड़ित हैं, जबकि यूपी के विपरीत बिहार में पासी अन्य दलित उप-समूहों की तुलना में समृद्ध नहीं हैं.
तमिलनाडु से परैयार और पल्लर समुदाय के सांसद
तमिलनाडु में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सात सीटों में से पांच परैयार के पास हैं, जबकि दो पर पल्लर समुदाय के सांसद हैं. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में कम प्रभावशाली माने जाने वाले मडिगा समुदाय के पास केवल चार सीटें हैं.
पंजाब और राजस्थान
पंजाब में चार दलित सांसदों में से तीन रविदासिया समुदाय से हैं जबकि एक रामदासिया सिख है. दोनों समुदाय दलितों के बीच प्रमुख समूह हैं. राजस्थान में भी यह रुझान नहीं बदला और यहां से तीन जाटव और एक मेघवाल लोकसभा के लिए चुने गए. ये प्रमुख अनुसूचित जाति समुदाय हैं. एक अकेला सांसद धानुक समुदाय से है, जिसे कम प्रभावशाली माना जाता है.
मध्य प्रदेश में बदली तस्वीर
मध्य प्रदेश में जहां बीजेपी ने सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, वहां कुछ हद तक यह रुझान उलटा रहा, क्योंकि राज्य की चार अनुसूचित जाति-आरक्षित सीटों में से दो सांसद पिछड़े खटीक समुदाय से हैं, जबकि एक-एक सांसद प्रभावशाली जाटव और बलाई समुदाय से हैं.