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Waqf Amendment Bill 2024 Where did it come in Islam how it start in India know full story of Waqf on which bill created ruckus


Story Of Waqf: पहले भारतीय रेलवे, उसके बाद भारतीय सेना और उसके बाद तीसरे नंबर पर इस मुल्क में अगर किसी एक संस्था के पास सबसे ज्यादा ज़मीन है तो वो है वक्फ बोर्ड. पूरे देश में इतनी ज़मीन कि अगर उसे एक साथ कर दिया जाए तो देश की राजधानी दिल्ली जैसे कम से कम तीन शहर बसाए जा सकते हैं. कुल करीब 9 लाख 40 हजार एकड़ ज़मीन. लेकिन अब इसी वक्फ बोर्ड को लेकर संसद में जो बिल आया है, उसने सत्ता पक्ष और विपक्ष को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है.

तो आखिर ये वक्फ बोर्ड है क्या, इसके पास इतनी ज़मीन आई कहां से, आजादी के बाद से अब तक इन ज़मीनों की देखभाल कौन करता है, इन ज़मीनों से होने वाली आमदनी कहां खर्च होती है और अब मोदी सरकार ऐसा क्या बदलाव कर रही है कि पूरे देश में हंगामा मच गया है, एक-एक करके सभी सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे विस्तार से.

वक्फ का मतलब क्या है?

भारत सरकार की वक्फ बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक वक्फ शब्द की उत्पत्ति अरब जगत के वकुफा शब्द से हुई है, जिसका मतलब है पकड़ना, बांधना या हिरासत में लेना. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक अगर कोई भी शख्स अपने धर्म की वजह से या फिर अल्लाह की खिदमत करने की नीयत से अपनी ज़मीन या अपनी संपत्ति का दान करता है, तो उसे ही वक्फ कहते हैं. यानी कि इस्लाम में धर्म के आधार पर दान की गई चल या अचल संपत्ति वक्फ है. और जिसने दान किया है, उसे कहा जाता है वकिफा. लेकिन संपत्ति दान करने की एक शर्त ये होती है कि उस चल या अचल संपत्ति से होने वाली आमदनी को इस्लाम धर्म की खिदमत में ही खर्च किया जा सकता है. और इस खिदमत का मतलब मस्जिद की तामीर करवाना, कब्रिस्तान बनवाना, मदरसे बनवाना, अस्पताल बनवाना और अनाथालय बनवाना है. अगर कोई गैर इस्लामिक शख्स भी अपनी संपत्ति को वक्फ करना चाहे तो वो कर सकता है, बशर्ते वो इस्लाम को मान्यता देता हो और उसकी वक्फ की गई संपत्ति का मकसद भी इस्लाम की खिदमत हो.

इस्लाम में कहां से आया वक्फ का कॉन्सेप्ट?

इस्लाम में वक्फ का कॉन्सेप्ट पैगंबर मुहम्मद साहब के ही वक्त से है.भारत सरकार की वक्फ बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक एक बार खलीफा उमर ने खैबर में एक ज़मीन का टुकड़ा अपने कब्जे में लिया और पैगंबर मोहम्मद साहब से पूछा कि इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल किस तरह से किया जा सकता है. तो मुहम्मद साहब ने जवाब दिया कि इस ज़मीन को कुछ इस हिसाब से इस्तेमाल करो कि अल्लाह के दिखाए रास्ते के जरिए ये ज़मीन इंसानों के काम आए. इसे किसी भी तरह से न तो बेचा जा सके, न ही किसी को तोहफे में दिया जा सके, न ही इस पर किसी तरह से तुम्हारे बच्चे या आने वाली पीढ़ियां काबिज हो सकें. इसके अलावा एक और मान्यता है कि 570 ईसा पूर्व मदीना में खजूरों का एक बड़ा बाग था, जिसमें करीब 600 पेड़ थे. उनसे होने वाली आमदनी का इस्तेमाल मदीना के गरीब लोगों की मदद के लिए किया जाता था. इसे वक्फ का शुरुआती उदाहरण माना जाता है. मिस्र की अल-अज़हर यूनिवर्सिटी और मोरक्को की अल-कुरायनीन यूनिवर्सिटी वक्फ संपत्ति पर बने सबसे पुराने संस्थान माने जाते हैं.

भारत में कैसे शुरू हुआ वक्फ का कॉन्सेप्ट?

भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से मानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि दिल्ली सल्तनत में सन 1173 के आस-पास सुल्तान मुईजुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव दिए थे. और यहीं से भारत में वक्फ परंपरा की शुरुआत हुई. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान वक्फ को खारिज कर दिया गया था. लेकिन आजादी के बाद भारत में बाकायदा कानून बनाकर वक्फ परंपरा को बरकरार रखा गया. सबसे पहले संसद ने 1954 में कानून बनाया. फिर उसमें संसोधन हुआ और 1995 में नरसिम्हा राव सरकार ने कानून में तब्दीली की. और आखिरी बार साल 2013 में मनमोहन सिंह की सरकार में इतनी बड़े बदलाव हुए कि वक्फ बोर्ड के पास अथाह ताकत आ गई. और वहीं से परेशानी की शुरुआत हो गई.

वक्फ संपत्ति की देख-रेख कौन करता है?

पूरे देश में फैली वक्फ संपत्ति की देखरेख की जिम्मेदारी होती है वक्फ बोर्ड पर. और ये वक्फ बोर्ड भारत की संसद के कानून के तहत बनाया गया है. 1954 में भारतीय संसद ने वक्फ ऐक्ट 1954 पास किया. इसके तहत वक्फ की गई संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड के पास आ गई. बाकी वक्फ बोर्ड के पास अभी जो इतनी बड़ी संपत्ति है कि वो तीन-तीन दिल्ली बना ले, वो संपत्ति भारत-पाकिस्तान बंटवारे की वजह से हैं.

1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान जाने वाले मु्स्लिम लोग अपनी चल संपत्ति तो ले गए, लेकिन अचल संपत्ति यानी कि उनके घर, मकान, खेत-खलिहान, दुकान सब यहीं रह गए. और तब 1954 में कानून बनाकर इस तरह की सभी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया गया. वक्फ बोर्ड बनाने के अगले ही साल यानी कि 1955 में संसद ने एक और कानून बनाया और इसके तहत देश के हर एक राज्य में वक्फ बोर्ड बनाने का अधिकार मिल गया. फिर 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन हुआ, जिसका मकसद राज्यों के वक्फ बोर्ड को सलाह-मशविरा देना था. लेकिन भारत में भी इस्लाम को मानने वाले दो बड़े धड़े हैं. एक धड़ा शिया समुदाय का है और दूसरा धड़ा सुन्नी समुदाय का.

तो वक्फ बोर्ड में शिया और सुन्नी के नाम पर भी बंटवारा हुआ. और इस्लाम को मानने वाली इन दोनों ही धाराओं के लोगों ने अपना-अपना वक्फ बोर्ड यानी कि शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड बना लिया.  बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में शिया और सुन्नी के वक्फ बोर्ड अलग-अलग हैं.

वक्फ बोर्ड में होता कौन-कौन है?

भारत की संसद के बनाए कानून के मुताबिक सेंट्रल वक्फ काउंसिल में सबसे ऊपर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री होते हैं. और इस लिहाज से अभी देखें तो वक्फ बोर्ड में सबसे ऊपर हैं केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू. दूसरे नंबर पर वक्फ के डायरेक्टर होते हैं, तो केंद्र सरकार के जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी होते हैं. अभी एसपी सिंह तेवतिया वक्फ बोर्ड के डायरेक्टर हैं. इसके अलावा बोर्ड में आठ और सदस्य होते हैं. लेकिन अभी केंद्रीय वक्फ बोर्ड में इन सभी 8 लोगों की जगह खाली है.

राज्यों के वक्फ बोर्ड में कौन-कौन होता है?

अलग-अलग राज्यों के वक्फ बोर्ड में सबसे ऊपर चेयरमैन होता है. उसके अलावा सेक्रेटरी के स्तर का एक आईएएस अधिकारी होता है, जो एक तरह से सीईओ होता है. बाकी संपत्तियों का लेखा-जोखा रखने के लिए सर्वे कमिश्नर होता है. बाकी दो सदस्यों को उस राज्य की सरकार मनोनित करती है, जिसमें एक मुस्लिम सांसद और एक मुस्लिम विधायक होता है. बाकी उस बोर्ड का राज्य स्तर पर एक वकील होता है, एक टाउन प्लानर होता है और एक मुस्लिम बुद्धिजीवी होता है.

वक्फ बोर्ड के पास कितनी ताकत है?

वक्फ बोर्ड के पास अथाह ताकत होती है. वक्फ की सारी संपत्ति की देखरेख की जिम्मेदारी बोर्ड की होती है. कितनी आमदनी हुई, उसे कहां खर्च करना है, ये सब तय वक्फ बोर्ड ही करता है. किसकी संपत्ति वक्फ को लेनी है, संपत्ति किसको ट्रांसफर करनी है, संपत्ति का इस्तेमाल क्या करना है, ये सब वक्फ बोर्ड ही तय करता है. अगर एक बार संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास आ गई तो उसे वापस नहीं किया जा सकता है. वो संपत्ति हमेशा-हमेशा के लिए वक्फ की हो जाती है. और इसको लेकर देश की किसी भी अदालत में कोई मुकदमा दायर नहीं हो सकता है. अगर वक्फ बोर्ड को ये लगता है कि कोई भी संपत्ति इस्लामिक कानूनों के मुताबिक वक्फ की है, तो वो वक्फ की हो जाती है. अगर उस ज़मीन पर किसी का दावा है, तो दावा किसी अदालत में नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड के सामने ही कर सकता है. और अंतिम फैसले का अधिकार भी वक्फ बोर्ड का ही होता है.

अगर हिंदू या कहिए कि गैर-इस्लामिक शख्स की ज़मीन पर भी अगर वक्फ अपना दावा करे तो उस शख्स को वक्फ के पास जाकर ही ये साबित करना होता है कि ज़मीन उसकी है, वक्फ की नहीं. हालांकि वक्फ बोर्ड खुद भी ऐसी ही ज़मीन पर दावा कर सकता है जो 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले वक्फ के नाम पर दर्ज हो या फिर 1954 में भारत सरकार की ओर से वक्फ को दे दी गई हो. कुल मिलाकर एक लाइन में कहें तो वक्फ बोर्ड एक ऐसा बोर्ड है, जिसमें उसके खिलाफ भी अगर कोई बात हो तो उसपर फैसला उसे ही करना होता है, देश की कोई दूसरी अदालत उस मसले पर फैसला नहीं कर सकती है.

मोदी सरकार के नए कानून में क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?

मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने जो बिल संसद में पेश किया है, उसमें वक्फ बोर्ड की असीमित ताकतों को सीमित करने का प्रावधान है. उदाहरण के तौर पर

*अब वक्फ बोर्ड में सिर्फ मुस्लिम ही नहीं गैर मुस्लिम भी शामिल हो सकते हैं.

*वक्फ बोर्ड का सीईओ भी गैर मुस्लिम हो सकता है.

*अब वक्फ बोर्ड में दो महिला सदस्यों को भी शामिल किया जाएगा.

*वक्फ बोर्ड को किसी संपत्ति पर अपना दावा करने से पहले उस दावे का वेरिफिकेशन करना होगा.

*अभी तक मस्जिद या इस तरह की कोई धार्मिक इमारत बने होने पर वो ज़मीन वक्फ की हो जाती थी. लेकिन अब मस्जिद बने होने के बावजूद उस ज़मीन का वेरिफिकेशन करवाना ही होगा.

*भारत सरकार की सीएजी के पास अधिकार होगा कि वो वक्फ बोर्ड का ऑडिट कर सके.

*वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्ति को उस जिले के जिला मैजिस्ट्रेट के पास दर्ज करवाना होगा, ताकि संपत्ति के मालिकाना हक की जांच की जा सके.

*वक्फ की संपत्तियों पर दावेदारी के मसले को भारत की अदालत में चुनौती दी जा सकेगी और अंतिम फैसला वक्फ बोर्ड का नहीं बल्कि अदालत का मान्य होगा.

विपक्ष को सरकार के बिल पर एतराज क्यों है?

इस बिल के विरोध में लगभग पूरा विपक्ष एक साथ है. चाहे वो कांग्रेस हो, सपा हो, शरद पवार की एनसीपी हो, ममता बनर्जी की टीएमसी हो या फिर असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन, सबने इस बिल का विरोध किया है. और सभी विपक्षी दलों का मानना यही है कि बिल के जरिए सरकार वक्फ की संपत्ति पर अपना कब्जा चाहती है. ओवैसी ने इसे धर्म में हस्तक्षेप बताया है और कहा है कि सरकार मुस्लिमों की दुश्मन है. वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों को शामिल करने पर ऐतराज जताया है. डीएमके का कहना है कि बिल एक मुस्लिों को निशाना बनाने के लिए लाया गया है. विपक्ष के और भी तमाम दलों के तर्क कुछ ऐसे ही हैं.

अब इस बिल का भविष्य क्या होगा?

विपक्ष के विरोध को देखते हुए इस बिल को खुद केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू ने जेपीसी को भेजने का प्रस्ताव रखा है. यानी कि अब इस बिल की खूबियों और खामियों को देखने के लिए एक जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी बनेगी. और उसकी सिफारिशों के आधार पर ही तय होगा कि अब इस बिल का भविष्य क्या है.

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