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SC ST Reservation Verdict Supreme Court order on Quota with in Quota what CJI Chandrachud Justice Gavai bench said read complete order


SC/ST Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (1 अगस्त, 2024) को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के अंदर सब-क्लासिफिकेशन करने का संवैधानिक अधिकार है. इस तरह उन जातियों को रिजर्वेशन मिल सकेगा जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हैं. कोर्ट ने कोटे में कोटा को मंजूरी देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि राज्यों को पिछड़ेपन और गवर्मेंट जॉब में प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, न कि मर्जी और राजनीतिक लाभ के आधार पर.

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की सात-जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से सब-क्लासिफिकेशन को मंजूरी दी. कोर्ट ने ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय बेंच के 2004 के फैसले को भी खारिज कर दिया. 2004 के फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (SC) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं.

बेंच में एकलौते दलित जज जस्टिस गवई ने अपने फैसले में क्या लिखा?
सात जजों की बेंच में जस्टिस भूषण रामकृष्णन अकेले दलित जज थे. उन्होंने कोटे में कोटा को मंजूरी देते हुए एससी-एसटी से क्रीमीलेयर को बाहर रखे जाने की बात कही और तीन और जजों ने भी इस पर सहमति जताई. इस मामले में सात जजों ने 6 फैसले लिखे. सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा ने एक फैसला लिखा, जबकि जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस गवई और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग फैसले लिखे. छह जज मंजूरी देने के लिए सहमत थे, लेकिन बेला त्रिवेदी इससे सहमति नहीं थीं. हालांकि, 6:1 के बहुमत के साथ मंजूरी दे दी गई। जस्टिस गवई ने अपने फैसले में लिखा कि क्रीमीलेयर का सिद्धांत फिलहाल पिछड़ा वर्ग (OBC) पर लागू होता है, लेकिन अब एससी-एसटी में भी क्रीमीलेयर की पहचान कर उन्हें अलग किया जाना चाहिए.

जस्टिस गवई ने एससी-एसटी से क्रीमीलेयर को अलग किए जाने की बात कही
जस्टिस गवई ने कहा कि होता क्या है कि जब कोई कोटा लेकर आईएएस, आईपीएस या आईएफएस अधिकारी बनता है तो उसके बच्चों को उन दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है, जो गांवों में रहने वालों को करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि आईएएस रैंक के अधिकारियों की अगली पीढ़ियां कैटेगरी में होने की वजह से रिजर्वेशन की हकदार होती हैं. उनकी बात से जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्र भी सहमत थे.

सीजेआई चंद्रूचड़ के 140 पन्नों के आदेश में क्या?
सीजेआई ने अपने 140 पन्नों के फैसले में कहा, ‘राज्य संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव न करना) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए सामाजिक पिछड़ेपन की विभिन्न श्रेणियों की पहचान करने और नुकसान की स्थिति में विशेष प्रावधान (जैसे आरक्षण देने) के लिए स्वतंत्र है.’

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘पुराने साक्ष्य दिखाते हैं कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से विजातीय वर्ग हैं. इस प्रकार, अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए राज्य अनुसूचित जातियों को आगे वर्गीकृत कर सकता है, यदि (ए) भेदभाव के लिए एक तर्कसंगत सिद्धांत है; और (बी) तर्कसंगत सिद्धांत का उप-वर्गीकरण के उद्देश्य के साथ जुड़ा है.’

565 पन्नों में लिखे गए छह फैसले
इस विवादास्पद मुद्दे पर कुल 565 पन्नों के छह फैसले लिखे गए. सीजेआई ने अपनी ओर से और जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से फैसले लिखे, जबकि जस्टिस भूषण रामकृष्णन गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने अपने-अपने फैसले लिखे. जस्टिस त्रिवेदी को छोड़कर बाकी पांच जजों ने सीजेआई के साथ सहमति जताई. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यों की ओर से अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण संवैधानिक चुनौती उत्पन्न होने पर न्यायिक समीक्षा के अधीन है.’

सीजेआई ने कहा, ‘राज्य उप-वर्गीकरण की कवायद शुरू कर सकता है. राज्यों को नौकरियों में पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व के स्तर पर मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों के आधार पर ऐसा करना चाहिए. दूसरे शब्दों में, ऐसा अपनी मर्जी से या राजनीतिक सुविधा के लिए नहीं होना चाहिए. राज्य का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है…’ कोर्ट ने उदाहरण के जरिए कुछ तरीकों को सुझाव दिया, जिन्हें राज्य सरकारें एससी में से पिछड़े समुदायों की पहचान कर सकती है.

मुख्य न्यायाधीश ने बहुमत के फैसले में कहा, ‘यदि अनुसूचित जातियां कानून के उद्देश्यों के अनुरूप नहीं हैं, तो अनुच्छेद 15, 16 और 341 (अनुसूचित जातियों को वर्गीकृत करने की राष्ट्रपति की शक्ति) में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो राज्य को वर्ग में उप-वर्गीकृत करने के सिद्धांत को लागू करने से रोकता हो।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अनुसूचित जातियों को आगे इस तरह वर्गीकृत किया जा सकता है यदि: (ए) भेदभाव के लिए एक तर्कसंगत सिद्धांत है; और (बी) यदि तर्कसंगत सिद्धांत का उप-वर्गीकरण के उद्देश्य से संबंध है.’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि किसी विशेष जाति को श्रेणी में अधिक आरक्षण लाभ देने के लिए अनुसूचित जाति (एससी) को उप-वर्गीकृत करने के किसी भी निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 16(4) के तहत उप-वर्गीकरण करने की शक्ति के वैध इस्तेमाल के लिए राज्यों को नौकरियों में उप-श्रेणियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के संबंध में मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) ऐसे वर्ग के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है, जो कानून के उद्देश्य के अनुरूप खरा नहीं उतरा है. उप-वर्गीकरण की वैधता का परीक्षण करते समय अदालत को यह निर्धारित करना होगा कि क्या यह वर्ग उद्देश्य की पूर्ति के लिए समरूप एकीकृत वर्ग है. अनुच्छेद 341(1) राष्ट्रपति को किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के लिए अनुसूचित जाति मानी जाने वाली जातियों, नस्लों या जनजातियों को अधिसूचित करने की शक्ति प्रदान करता है.

पीठ ने कहा, ‘अनुसूचित जातियों के अंदर उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि जातियां स्वयं (अनुसूचित जातियों) की सूची में शामिल या बाहर नहीं होती हैं. उप-वर्गीकरण केवल तभी प्रावधान का उल्लंघन करेगा जब अनुसूचित जातियों की कुछ जातियों या समूहों को वर्ग के लिए आरक्षित सभी सीटों पर वरीयता या विशेष लाभ प्रदान किया जाता है.’

अनुच्छेद 341(2) के अनुसार संसद किसी भी जाति, वंश या जनजाति को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल या बाहर कर सकती है. चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने एससी के उप-वर्गीकरण के दायरे पर विचार किया और कहा कि उप-वर्गीकरण सहित किसी भी तरह की सकारात्मक कार्रवाई का उद्देश्य पिछड़े वर्गों के लिए अवसर की पर्याप्त समानता प्रदान करना है. उन्होंने कहा कि राज्य अन्य बातों के साथ-साथ कुछ जातियों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर उप-वर्गीकरण भी कर सकता है. 

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने क्या लिखा आदेश में?
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने 85 पन्नों के असहमति वाले फैसले में कहा कि केवल संसद ही किसी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर सकती है या बाहर कर सकती है, और राज्यों को इसमें फेरबदल करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने फैसला सुनाया कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय वर्ग हैं, जिन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता. जस्टिस त्रिवेदी ने फैसले में लिखा, ‘अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचना में अनुसूचित जातियों के रूप में सूचीबद्ध जातियों, नस्लों या जनजातियों को विभाजित/उप-विभाजित/उप-वर्गीकृत या पुनर्समूहीकृत करके किसी विशेष जाति/जातियों को आरक्षण प्रदान करने या तरजीही बर्ताव करने के लिए कानून बनाने के लिए राज्यों के पास कोई विधायी क्षमता नहीं है.’

पंजाब सहित कुछ राज्यों द्वारा कुछ जातियों को अधिक आरक्षण लाभ देने के लिए कानून बनाकर एससी को उप-वर्गीकृत करने के कारण विवाद उत्पन्न हुआ था. सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी को चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले की समीक्षा के अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसमें कहा गया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले सभी एससी एक समरूप समूह हैं, जिन्हें उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता.

(पीटीआई-भाषा से इनपुट)

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