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लिथियम.. यह ‘सफेद सोना’ है क्या? वित्त मंत्री ने कहा- भारत का भविष्य संवारेगा यह




नई दिल्ली:

भारत में कुछ स्थानों पर लिथियम (Lithium) के विशाल भंडार का पता चला है. इस बेशकीमती खनिज को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि यह भारत का भविष्य बनने वाला है. लिथियम और इसी तरह के अन्य क्रिटिकल मिनरल्स की खोज और उनके उत्खनन को प्रोत्साहित किया जा रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में यह बात कही. लिथियम को ‘सफेद सोना’ क्यों कहा जाता है, यह किस तरह का खनिज है, इसका क्या उपयोग है और यह भारत को क्यों मालामाल कर सकता है? इसके बारे में आप यहां विस्तार से जान सकते हैं.    

भारत में कहां-कहां लिथियम के भंडार

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) ने जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सलाल-हैमाना क्षेत्र में अनुमानित 5.9 मिलियन टन से अधिक का लिथियम का भंडार खोजा है. यह दुनिया का सातवां सबसे बड़ा लिथियम भंडार है. दक्षिणी कर्नाटक के मांड्या जिले में किए गए एक प्रारंभिक सर्वे में करीब 14,100 टन के अनुमानित लिथियम भंडार का संकेत मिला है. राजस्थान के नागौर के डेगाना में लीथियम का भंडार है. जीएसआई के सर्वे में यहां लिथियम का भंडार होने के संकेत मिले हैं. जिस पहाड़ी पर यह भंडार मिला हैं, वहां पर पूर्व में अंग्रेज टंगस्टन का खनन करते थे. इसके अलावा बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और गुजरात के कच्छ में भी लिथियम के भंडार होने की संभावना है.

क्यों सफेद सोना कहलाने लगा लिथियम?

लिथियम एक चांदी जैसी सफेद धातु है. इस धातु का सबसे अधिक उपयोग रिचार्जेबल बैटरी में किया जाता है. इस तरह की बैटरी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है इसलिए इसे ‘सफेद सोना’ भी कहा जाने लगा है. जमीन में मौजूद लिथियम को उसके उपलब्ध होने के स्थान के आधार पर अलग-अलग प्रक्रिया से हासिल किया जाता है. आम तौर पर बड़े आकार के ब्राइन पूलों में सूरज की रोशनी से मिलने उष्मा के जरिए वाष्पीकरण से या फिर अयस्क के हार्ड-रॉक निष्कर्षण से इस धातु को प्राप्त किया जाता है.

लिथियम का कहां-कहां होता है उपयोग

लिथियम का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), मोबाइल फोन, लैपटॉप, ब्लूटूथ स्पीकर सहित कई अन्य उपकरणों की बैटरियों के निर्माण में होता है. लिथियम इलेक्ट्रोकेमिकल सेल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. लिथियम का उपयोग थर्मोन्यूक्लियर रिएक्शन में भी किया जाता है. लिथियम के साथ एल्युमिनियम और मैग्नीशियम के साथ मिश्रित धातु भी बनाई जाती है. मैग्नीशियम और लिथियम से बनाई जाने वाली मिश्र धातु से कवच (Armor) बनाए जाते हैं. लिथियम और एल्युमीनियम की मिश्रित धातु का उपयोग एयरक्राफ्ट, उन्नत साइकिलों के फ्रेम के निर्माण और उच्च गति वाली ट्रेनों के निर्माण में भी किया जाता है.

भारत अपनी 80 प्रतिशत जरूरत पूरी कर सकेगा

चिली, ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में लिथियम के बड़े भंडार हैं. बोलिविया, अमेरिका और चीन में भी लिथियम पाया जाता है. दुनिया का 54 प्रतिशत लिथियम भंडार अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली में है इसलिए इसे लिथियम त्रिकोण भी कहते हैं. भारत में मिले लिथियम के भंडार से देश अपनी लिथियम की 80 फीसदी जरूरत पूरी करने में सक्षम हो जाएगा. इससे भारत की चीन पर निर्भरता खत्म हो जाएगी, और उसका लिथियम के व्यापार में एकाधिकार भी खत्म हो जाएगा. फिलहाल भारत हर साल करीब एक बिलियन डॉलर से अधिक के लिथियम का आयात करता है. चीन में एक टन लिथियम की कीमत करीब 51,19,375 रुपये है. इस कीमत के हिसाब लगाया जाए तो भारत में मिले लिथियम की कीमत लगभग 3000 अरब रुपये हो सकती है. 

चीन में सबसे अधिक मात्रा में लिथियम का उपयोग किया जा रहा है. चीन में लिथियम ऑयन बैटरी का उत्पादन भी सबसे अधिक हो रहा है. दुनिया भर में बनने वालीं लिथियम बैटरियों में से 77 फीसदी चीन में बनती हैं. अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा लिथियम ऑयन बैटरी इम्पोर्ट की जाती हैं. अब भारत खुद लिथियम ऑयन बैटरी के उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ा रहा है. 

पर्यावरण और लिथियम

लिथियम का महत्व और इसकी जरूरत पिछले कुछ सालों में इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग घटाने के लिए किए जा रहे प्रयासों में यह धातु बहुत उपयोगी साबित हो रही है. भारत ने सन 2070 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक लाने का संकल्प लिया है. इसके लिए जरूरी है कि डीजल या पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों की उपयोग किया जाए, और इन वाहनों में बैटरी सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह बैटरी लिथियम से ही बनाई जा सकती हैं.

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