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AIMPLB resolution passed on supreme court verdict on muslim women maintenance allowance ucc waqf board property in delhi ann


AIMPLB Meeting: दिल्ली में रविवार (14 जुलाई 2024) को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की बैठक हुई, जिसमें 51 सदस्य शामिल हुए. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बताया कि इस बैठक में कई प्रस्ताव किए गए हैं. उन्होने बताया कि पहला प्रस्ताव सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर AIMPLB नाराज

सैयद कासिम ने कहा, “हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, वो शरिया कानून से कांफ्लिक्ट करता है. मुसलमानों में शरिया कानून का पाबंद है. वो ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकता, जो शरिया से कांफ्लिक्ट करता हो. हमने ये महसूस किया है कि हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल है, मुसलमानों के लिए शरिया लॉ है. संविधान में मजहब के तहत जिंदगी गुजारे का मौलिक अधिकार है. ये जो जजमेंट है इससे औरतों का नुकसान होगा. प्रस्ताव में ये बात आई है कि बोर्ड इसकी कोशिश करेगा कि कैसे इस फैसले को रोल बैक किया.”

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम ने कहा, “अगर किसी मर्द को पता होगा कि तलाक के बाद गुजारा भत्ता देना है तो वो तलाक नहीं देगा और महिला को बिना तलाक के ही परेशान करता रहेगा. हम इसको चैलेंज करेगे. यह आम आदमी के हक में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला शरिया कानून से टकराता है.”

‘गुजारा भत्ता महिलाओं के लिए बनेगा मुसीबत”

उन्होंने कहा, “भारत का मुसलमान शरीयत को मानता है. गुजारा भत्ते का मामला शरीयत से टकराता है. तलाक को इस्लाम में बेहद खराब माना गया है, लेकिन तलाक होती है. भारत में हिंदुओ के लिए कानून है, हमारे लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है. ये आजादी भारत का संविधान देता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला महिलाओ के लिए मुसीबत बन जाएगा.”

दूसरे प्रस्ताव को लेकर उन्होंने कहा कि हम उत्तराखंड के यूसीसी (UCC) को हम चैलेंज करेंगे. उन्होंने कहा, “यूसीसी को लेकर अगर केंद्र या राज्य सरकार इस दिशा में कुछ करना चाहती है तो उन्हें इससे बचना चाहिए. उत्तराखंड के यूसीसी से लोगों को परेशानी होगी.

वर्शिप एक्ट को लेकर AIMPLB

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा, “अगर वक्फ बोर्ड के कानून को खत्म करने की कोशिश होगी तो इसका बड़ा विरोध होगा. हमने बाबरी मस्जिद के फैसले को आज तक स्वीकार नहीं किया है क्योंकि कोर्ट ने खुद कहा था कि मस्जिद मंदिर तोड़कर नहीं बनाई गई थी. हमने सोचा था कि बाबरी मस्जिद के बाद मामले रुकेंगे क्योंकि 1991 वार्शिप एक्ट है, लेकिन मामले नहीं रुक रहे हैं. हम चाहते है कि कोर्ट मामले को सही से देखे.”

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