बीमा भारती के पति और शंकर सिंह में किस बात की है अदावत? जानें रूपौली उपचुनाव में कैसे दरके समीकरण
निर्दलीय प्रत्याशी की जीत के कई मायने हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या सीमांचल की राजनीति बदल रही है? यह सवाल इसलिए कि पूर्णिया लोकसभा चुनाव में भी बाहुबली पप्पू यादव ने जीत दर्ज की थी. निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने भी अपराध जगत के रास्ते ही राजनीति में दाखिला लिया है. 90 के दशक में पूर्णिया में दो आपराधिक गिरोह सक्रिय था, जिसमें नार्थ बिहार लिबरेशन आर्मी का नेतृत्व शंकर सिंह तो फैजान गिरोह की सरदारी पूर्व विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मंडल किया करते थे. बाद में दोनों राजनीतिक गिरोह का खात्मा हुआ और इससे जुड़े सदस्यों ने राजनीति और ठेकेदारी का रुख कर लिया. शंकर सिंह और अवधेश मंडल दोनों ने अपनी-अपनी पत्नी के साथ राजनीति में कदम रखा, लेकिन यह चुनाव परिणाम एनडीए और इंडिया दोनों के लिए चेतावनी है. तमाम ताकत और संसाधन झोंकने के बाद भी दोनों गठबंधन की हार इस बात का संकेत है कि सीमांचल की राजनीति नई करवट ले रही है. खास बात जो निकल कर सामने आ रही है, वह यह है कि जाति विशेष किसी खास दल की पूंजी नही रही है. क्योंकि, निर्दलीय शंकर सिंह एनडीए और इंडिया दोनों के वोटबैंक में सेंधमारी करने में सफल रहे हैं.
निर्दलीय प्रत्याशी की मेहनत लाई रंग
शंकर सिंह वर्ष 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में लोजपा के टिकट पर बीमा भारती को पराजित कर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन इसी वर्ष हुए चुनाव में उन्हें बीमा भारती से हार का सामना करना पड़ा था. उसके बाद से शंकर सिंह लगातार चुनाव में उम्मीदवार बनते रहे. इसी बीच शंकर सिंह की पत्नी प्रतिमा सिंह रुपौली प्रखण्ड से जिला पार्षद चुनी गईं. हार के वाबजूद शंकर सिंह लगातार क्षेत्र की जनता के बीच बने रहे और समय-समय पर उनकी मदद भी करते रहे. शंकर सिंह की इस जीत में उनकी जिला पार्षद पत्नी की अहम भूमिका रही है.
कलाधर थे नया चेहरा
बीमा भारती लगातार 24 वर्षों से रुपौली विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती रही थीं. हालांकि, इस इलाके में पूर्व की तुलना में काफी विकास हुआ है, लेकिन क्षेत्र में बीमा के प्रति असंतोष था. उनपर आरोप था कि वे क्षेत्र विशेष की अनदेखी करती रही हैं. हालांकि,एंटी इंकमबेंसी की बड़ी वजह यह रही कि बीमा और कलाधर एक ही जाति ‘गंगोता’ से आते हैं और इसकी सबसे ज्यादा आबादी इसी विधानसभा में है. इसके कारण वोट का विभाजन हो गया. वहीं,कलाधर मंडल इसी विधानसभा क्षेत्र के वासी तो हैं, लेकिन उनकी पहचान पूरे क्षेत्र में नहीं होना उनके लिए कमजोर कड़ी साबित हुई.
लेशी सिंह और पप्पू यादव बेअसर
जेडीयू और राजद के लिए यह सीट प्रतिष्ठामूलक थी, क्योंकि,पंरपरागत तौर पर यह जेडीयू की सीट रही है तो बीमा भारती को फिर से इस सीट पर वापस लाना राजद के लिए जरूरी था.राजद के लिए विधायकी से इस्तीफा देने वाली बीमा भारती हाल ही में लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित हुईं थीं. जेडीयू की जीत के लिए बिहार सरकार की मंत्री लेशी सिंह ने एड़ी-चोटी एक कर दिया, लेकिन वे अपना स्वजातीय मत भी कलाधर मंडल को दिलाने में विफल साबित हुईं. सवर्णों का अधिकांश मत शंकर सिंह के हिस्से गया. पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा ने भी जेडीयू प्रत्याशी के लिए खूब पसीना बहाया लेकिन,जीत नही मिली. खास बात यह है कि लोकसभा चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी संतोष कुशवाहा को रूपौली से लगभग 25 हजार मतों का लीड मिला था. इस चुनाव में सांसद पप्पू यादव पहले तो समर्थन को लेकर गोल-मटोल बातें करते रहे फिर चुनाव से दो दिन पहले बीमा भारती के लिए मुस्लिम मतदाताओं से हाथ जोड़कर बड़ी ही भावुक अपील कर दी, लेकिन पप्पू यादव की यह अपील भी बीमा के किसी काम नहीं आई.
दरक गए सारे समीकरण
बीमा के लिए तो ‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’ वाली हालत हो गई. सांसदी तो मिली नहीं, विधायकी भी चली गईं. यह हार राजद के लिए चिंता का सबब इस मायने में है कि यहां माय समीकरण दरक गया. मोटे अनुमान के अनुसार, अधिकांश यादव तो राजद के साथ रहे, लेकिन 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों ने निर्दलीय के साथ जाना पसंद किया. लोकसभा चुनाव में तो मुस्लिम और यादवों ने एकमुश्त राजद की बजाय निर्दलीय पप्पू यादव को वोट दिया था. मुस्लिमों के अलग होने का कारण स्थानीय राजनीति बताई जाती है. जानकार बताते हैं कि सीमांचल में अल्पसंख्यक विधानसभा चुनाव 2020 से ही अपना स्वतंत्र अस्तित्व तलाशने में जुटे हैं.अगर यह सच है तो राजद और जेडीयू दोनों के लिए खतरे की घंटी है. इस उपचुनाव में लोकसभा चुनाव की तरह ही एनडीए के वोटबैंक में खूब सेंधमारी हुई. बनिया, कैबर्ट,मार्केंडेय जैसे पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों के अलावा सवर्णों का अधिकांश वोट निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह लेने में सफल रहे. कुल मिलाकर, यह जीत शंकर सिंह की जीत से अधिक एनडीए और इंडिया के शीर्ष नेताओं की हार है.