Supreme Court Slams Centre Over Failure To Implement Disability Act Provisions says if implemented then appellant not to ram hear and there
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) उत्तीर्ण करने वाले शत-प्रतिशत दृष्टिबाधित अभ्यर्थी को तीन महीने के भीतर नियुक्ति देने का आदेश दिया है. साथ ही कोर्ट ने दिव्यांग जन अधिनियम के प्रावधानों को लागू नहीं करने तथा लंबित रिक्तियों को नहीं भरने के लिए केंद्र से अप्रसन्नता जताई है.
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि दिव्यांग जन (पीडब्ल्यूडी)अधिनियम, 1995 के प्रावधानों को तत्परता से लागू करने में भारत सरकार की ओर से ‘‘पूरी तरह चूक’’ हुई है. पीठ ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, इस मामले में सभी स्तर पर अपीलकर्ता ने ऐसा रुख अपनाया है, जो दिव्यांग लोगों के फायदे के लिए कानून लागू करने के उद्देश्य को ही निष्प्रभावी कर देता है.
‘अगर लागू होता अधिनियम तो…’
पीठ ने कहा, ‘‘यदि अपीलकर्ता ने दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को उसके सही अर्थों में लागू किया होता, तो प्रतिवादी संख्या 1 (दृष्टिबाधित उम्मीदवार) को न्याय पाने के लिए दर-दर भटकने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता.’’
इस मामले में पंकज कुमार श्रीवास्तव, जो 100 प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं, ने सिविल सेवा परीक्षा, 2008 में भाग लिया था और निम्नलिखित क्रम में सेवाओं को प्राथमिकता दी – भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय राजस्व सेवा-आयकर (आईटी), भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा (आईआरपीएस) और भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क) (आईआरएस (सी एंड ई).
लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के बाद श्रीवास्तव को नियुक्ति देने से इनकार कर दिया गया. उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का रुख किया, जिसने 2010 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) और कार्मिक तथा प्रशिक्षण विभाग को छह महीने के अंदर पीडब्ल्यूडी कानून, 1995 के दायरे में आने वाले खाली पड़े पदों की गणना करने का निर्देश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया निर्देश
कैट ने भारत सरकार को श्रीवास्तव को यह सूचित करने का निर्देश दिया कि क्या उन्हें सेवा आवंटित की जा सकती है. उक्त आदेश के अनुसरण में, 9 सितम्बर, 2011 को यूपीएससी ने उन्हें सूचित किया कि उनका नाम सीएसई-2008 की वरीयता सूची में पीएच-2 (दृष्टि बाधित-छह) श्रेणी के लिए उपलब्ध रिक्तियों की संख्या के दायरे में नहीं है. तब श्रीवास्तव ने कैट के समक्ष एक और आवेदन किया जिसने यूपीएससी को निर्देश दिया कि वह 29 दिसंबर, 2005 के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार अनारक्षित/सामान्य श्रेणी में अपनी योग्यता के आधार पर चयनित उम्मीदवारों को समायोजित करे.
निर्देश जारी किया गया था कि श्रेणी छह से संबंधित उम्मीदवारों को आरक्षित श्रेणी के विरुद्ध चयनित किया जाना चाहिए और नियुक्ति दी जानी चाहिए, लेकिन यूपीएससी ने उन्हें 2012 में सूचित किया कि वह पीएच-2 (छह) कोटे में नियुक्ति के लिए योग्य नहीं हैं. केंद्र सरकार ने कैट के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने अपील खारिज कर दी. तब केंद्र ने शीर्ष अदालत का रुख किया.
ये भी पढ़ें: