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हाथरस हादसे के बाद मार्मिक मंजर


उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र में आयोजित एक सत्संग में मंगलवार को जानलेवा भगदड़ के बाद यहां सरकारी अस्पताल के अंदर बड़ा ही हृदयविदारक और मार्मिक मंजर देखने को मिला. अस्पताल के अंदर बर्फ की सिल्लियों पर शवों को रखा गया जबकि पीड़ितों के विलाप करते परिजन शवों को घर ले जाने के लिए रात में बूंदाबांदी के बीच बाहर इंतजार कर रहे थे.

अधिकारियों ने मृतकों की संख्या 116 बताई है, जिनमें 108 महिलाएं, सात बच्चे और एक पुरुष है. हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र के पुलराई गांव में आयोजित प्रवचनकर्ता भोले बाबा के सत्संग में मंगलवार को भगदड़ मच गई जिससे इतना बड़ा हादसा हुआ. भगदड़ अपराह्न करीब 3.30 बजे हुई, जब बाबा कार्यक्रम स्थल से निकल रहे थे.
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हादसे के बाद अपनों की तलाश में परिजन
भगदड़ वाली जगह से सबसे नजदीकी स्वास्थ्य सुविधा केंद्र सिकंदराराऊ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के बाहर कई लोग देर रात तक अपने लापता परिवार के सदस्यों की तलाश करते नजर आए. कासगंज जिले में रहने वाले राजेश ने बताया कि वह अपनी मां को ढूंढ रहा जबकि शिवम अपनी बुआ को ढूंढते मिला. दोनों के हाथ में मोबाइल फोन थे, जिस पर उनके रिश्तेदारों की तस्वीरें थीं.

“मैंने एक समाचार चैनल पर अपनी मां की तस्वीर देखी…”
राजेश ने बताया, ‘‘मैंने एक समाचार चैनल पर अपनी मां की तस्वीर देखी और उन्हें पहचान लिया. वह हमारे गांव के दो दर्जन अन्य लोगों के साथ यहां सत्संग में शामिल होने आई थीं.” अंशु और पवन कुमार खाली दूध के कंटेनरों से लदे अपने छोटे पिकअप ट्रक में सीएचसी के पास इंतजार कर रहे थे, उन्हें उम्मीद थी कि वे अपने चचेरे भाई के लापता पिता गोपाल सिंह (40) को ढूंढ लेंगे.

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अंशु ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘वह कार्यक्रम के लिए गए थे, लेकिन अभी तक घर नहीं लौटे हैं. वह भोले-भाले व्यक्ति हैं. उनके पास मोबाइल फोन भी नहीं है.” उन्होंने बताया कि सिंह बाबा के अनुयायी नहीं थे, लेकिन किसी परिचित के कहने पर पहली बार कार्यक्रम में गए थे.

अपनी मां सुदामा देवी (65) को खोने वाली मीना देवी ने कहा, ‘‘मैं जिस इलाके (सादिकपुर) में रहती हूं, वहां बूंदाबांदी हो रही थी, अन्यथा मैं भी अपनी मां के साथ संगत में जाने की योजना बना रही थी.”

भूतल पर कई शव रखे हुए थे…
गमगीन मीना बागला संयुक्त जिला अस्पताल के टीबी विभाग के बाहर बैठी थी, जहां भूतल पर कई शव रखे हुए थे. उसने पीटीआई से कहा, ‘‘मेरे भाई और भाभी, उनके बच्चे मेरी मां के साथ संगत में गए थे. भीड़ में मेरी मां पीछे रह गईं और कुचल गईं.”

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सासनी तहसील के बरसे गांव में रहने वाले विनोद कुमार सूर्यवंशी ने अपनी 72 वर्षीय मौसी को खो दिया, जबकि उनकी मां सौभाग्य से बच गईं. ग्रेटर नोएडा से यहां आने वाली अपनी मौसी के बेटे का इंतजार करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं यहां तीन घंटे से हूं. शव अभी भी यहां है और मुझे बताया गया है कि इसे अब पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाएगा, लेकिन मुझे नहीं पता कि इसमें और कितना समय लगेगा.”

सूर्यवंशी ने कहा कि उनकी मौसी और मां करीब 15 साल से बाबा के प्रवचन का पालन कर रही हैं और भगदड़ को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण” बताया. जिला अस्पताल में कई शव रखे गए हैं. कुछ को घटनास्थल के पास सिकंदराराऊ इलाके के ट्रॉमा सेंटर में रखा गया है, जबकि कुछ को पास के एटा जिले के सरकारी अस्पताल में भेजा गया है.

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“शव को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल पा रही”
राजेश ने कहा, ‘‘मेरी मां का शव यहां है, लेकिन पोस्टमार्टम कराने के लिए शव को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल पा रही है.” इस बीच, आरएसएस और बजरंग दल के कार्यकर्ता और स्वयंसेवक भी दोपहर से अस्पताल में मौजूद हैं और पीड़ितों के रिश्तेदारों को पानी के पैकेट बांट रहे हैं और चिकित्सा प्रक्रियाओं के बारे में मार्गदर्शन दे रहे हैं. पीड़ितों के कई परिजन अब भी सदमे में हैं.

बजरंग दल के स्वयंसेवक अनिकेत ने टीबी विभाग की इमारत के गेट पर पसीने से लथपथ खड़े होकर बताया कि ‘‘आज हमने यहां जो शव देखे हैं, उनके लिए एंबुलेंस की संख्या अपर्याप्त थी.”

इससे पहले दिन में, जिले के सिकंदराराऊ ट्रॉमा सेंटर के बाहर दिल दहला देने वाले दृश्य सामने आए, जहां मृत या बेहोश पीड़ितों को एंबुलेंस, ट्रक और कारों में लाया गया.

एक महिला ट्रक में पांच या छह शवों के बीच बैठी रो रही थी, लोगों से अपनी बेटी के शव को वाहन से बाहर निकालने में मदद करने का आग्रह कर रही थी. अस्पताल के बाहर एक उत्तेजित युवक ने कहा, ‘‘लगभग 100-200 लोग हताहत हुए हैं और अस्पताल में केवल एक डॉक्टर था. ऑक्सीजन की कोई सुविधा नहीं थी. कुछ लोग अभी भी सांस ले रहे हैं, लेकिन उचित उपचार की सुविधा नहीं है.”





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