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बिहार में भीषण गर्मी और उमस के बाद भी काबू में रहा इन्सेफेलाइटिस, हॉस्पिटल से 38 मरीज ठीक होकर घर लौटे



Encephalitis Cases: बिहार में इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी और उमस के बावजूद एईएस यानी एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम काबू में रहा. इस साल भी हालांकि अस्पतालों में एईएस के मरीज पहुंचे, लेकिन सभी ठीक होकर वापस लौट गए. इस साल के आंकड़ों में अभी तक किसी की मौत दर्ज नहीं है. उत्तर बिहार के बच्चों के लिए यह बीमारी पिछले कई सालों से जानलेवा साबित हो रही थी. उमस भरी गर्मी के साथ ही यह बीमारी शुरू हो जाती थी और कई बच्चों की मौत का कारण बनती थी.

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जिला प्रशासन इसके लिए जागरूकता को बड़ा कारण मानता है. मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी सुब्रत सेन मानते हैं कि इस साल भी कई बच्चों को एईएस हुई, लेकिन सबका समय पर इलाज हुआ, किसी की जान नहीं गई. उन्होंने कहा कि यह शासन-प्रशासन की सतर्कता और चिकित्सा महकमे की सजगता का परिणाम है.

इस साल अभी तक इन्सेफेलाइटिस के 38 मरीज:

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल एईएस के कुल 38 मरीज सामने आए. इनमें से मुजफ्फरपुर जिले के 23, पूर्वी चंपारण के 6, सीतामढ़ी के 4, शिवहर के 3 और वैशाली तथा गोपालगंज के एक-एक मरीज शामिल थे. ये सभी मरीज श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) में भर्ती हुए और इलाज के बाद स्वस्थ होकर वापस लौट गए.

एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर सहनी ने बताया कि इस साल मात्र तीन-चार दिन ही उमस का असर रहा. उमस का प्रतिशत 48 से 72 घंटे तक लगातार 80 फीसद से ज्यादा बने रहने पर ही बच्चे एईएस का शिकार होते रहे हैं. इससे उनकी माइट्रोकांड्रिया डैमेज होती थी और उनकी मौत हो जाती थी.

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2019 में 431 बच्चे हुए थे शिकार:

उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में 431 बच्चों को एईएस ने अपनी चपेट में ले लिया था. इनमें 111 मासूमों की जान चली गई. साल 2020 में 43 बच्चे एईएस से पीड़ित हुए जिसमें सात की मौत हो गई. साल 2021 में 39 बीमार बच्चों में से सात की मौत हो गई. 2022 और 2023 में भी एक-एक बच्चे की मौत हुई.

इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित जिला मुजफ्फरपुर के सभी 385 पंचायतों को जिला स्तरीय अधिकारियों ने गोद ली. इस बीमारी से बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए. आशा, आंगनबाड़ी, एएनएम और जीविका सहित कई स्वयंसेवी संस्थान लोगों को जागरूक करने में जुटे. जिला प्रशासन का भी मानना है कि जागरूकता अभियान प्रभावी रहा और लोग खुद बीमारी से बचने का उपाय करते दिखे.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)




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